दंगों पर मोदी-वाजपेयी के पत्र दिखाने से इन्कार

प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुए पत्राचार को 11 साल बाद भी सार्वजनिक करने से इन्कार कर दिया है। सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत दिए एक आवेदन के जवाब में पीएमओ ने पारदर्शिता कानून की धार

By Edited By: Publish:Sun, 15 Dec 2013 08:35 PM (IST) Updated:Mon, 16 Dec 2013 12:50 AM (IST)
दंगों पर मोदी-वाजपेयी के पत्र दिखाने से इन्कार

नई दिल्ली। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच वर्ष 2002 के गुजरात दंगों के दौरान हुए पत्राचार को 11 साल बाद भी सार्वजनिक करने से इन्कार कर दिया है।

सूचना के अधिकार (आरटीआइ) के तहत दिए एक आवेदन के जवाब में पीएमओ ने पारदर्शिता कानून की धारा 8(1)(एच) का उल्लेख किया है। इसमें ऐसी सूचना को सार्वजनिक करने से छूट है जिससे जांच प्रक्रिया में बाधा पड़े या उसकी आशंका हो या अपराध करने वाले पर मुकदमा चलाने में व्यवधान आए। सरकार के इस जवाब से यह सवाल उठता है कि मोदी और वाजपेयी के बीच हुए पत्राचार में क्या दंगाइयों या उन दिनों हुई सामूहिक हत्याओं के पीछे के लोगों से जुड़ी कोई सूचना तो नहीं है? गोधरा कांड के बाद हुए गुजरात दंगों में करीब दो हजार लोग मारे गए थे।

आरटीआइ आवेदक ने पीएमओ और गुजरात सरकार के बीच 27 फरवरी 2002 से 30 अप्रैल 2002 के बीच राज्य की विधि-व्यवस्था के बारे में सभी पत्राचारों की प्रति देने की मांग की थी। इसमें उस अवधि में वाजपेयी और मोदी के बीच हुए पत्राचार की प्रति देने की भी मांग शामिल थी क्योंकि उस अवधि में राज्य में बहुत तनावपूर्ण वातावरण देखा गया था। जब से गुजरात में दंगे हो रहे थे तब भी वाजपेयी ने मोदी को जाति और धर्म का भेदभाव किए बगैर लोगों को न्याय देने के लिए 'राजधर्म' का पालन करने को कहा था। मोदी का कहना है कि वाजपेयी ने तब उन्हें कहा था कि वह राजधर्म का पालन कर रहे हैं। पीएमओ ने सूचना देने से इन्कार के साथ कोई कारण नहीं बताया है कि इस सूचना को सार्वजनिक करने पर धारा(1)(एच) किस तरह लागू होती है जबकि दिल्ली हाई कोर्ट ने स्पष्ट कर दिया है कि इस धारा के तहत सूचना देने से इन्कार करते समय उचित कारण बताना होगा।

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