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Custard Apple Jharkhand: झारखंड के इस गांव में आलू से भी सस्ता शरीफा, 10 रुपये में एक किलो

Jharkhand Custard Village बड़े-बड़े शहरों में शरीफा इस समय 70-80 रुपये किलो बिक रहा है लेकिन झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले में यह महज दस से 12 रुपये किलो की दर से उपलब्ध है। यह जिला शरीफा का सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र बनकर उभर रहा है।

By M EkhlaqueEdited By: Published: Wed, 21 Sep 2022 04:01 PM (IST)Updated: Wed, 21 Sep 2022 05:02 PM (IST)
Jharkhand Custard Village: झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम में शरीफा सिर्फ दस रुपये किलो।

चाईबासा, (मो. तकी)। Custard Village In Jharkhand झारखंड सिर्फ जंगलों और पहाड़ों के लिए ही मशहूर नहीं है। यहां धरती के नीचे खनिज संपदा का अकूत भंडार है, तो धरती के ऊपर भी बहुत कुछ है। यह दीगर बात है कि इन इलाकों की अभी तक ठीक तरह से शिनाख्त नहीं हो पाई है। झारखंड के पश्चिमी सिंहभूम जिले के कुछ गांव ऐसे हैं जिनकी पहचान अब शरीफा उत्पादक के रूप में विकसित हो गई है। यहां बड़े पैमाने पर शरीफा का उत्पादन हो रहा है। यहां से हर साल बड़े पैमाने पर दूसरे शहरों व राज्यों में शरीफा का निर्यात हो रहा है। कारोबारी नजरिए से इलाके विकसित नहीं होने के कारण यहां औने-पौने दाम में लोग शरीफा बेच देते हैं।

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धरती के नीचे लौह अयस्क, ऊपर शरीफा का गांव

पश्चिम सिंहभूम जिला आदिवासी हो बहुल इलाका है। यहां सारंडा का जंगल फेमस है। धरती के नीचे लौह अयस्क का खजाना है। बड़ी बड़ी कंपनियां यहां लौह अयस्क निकालने के काम में जुटी हुई हैं। पिछले कुछ वर्षों में यह क्षेत्र शरीफा फल का भी सबसे बड़ा उत्पादक क्षेत्र बन गया है। यहां सीजन में हर साल करीब पांच सौ टन शरीफा का उत्पादन हो रहा है। नक्सल प्रभावित टोंटो प्रखंड के सुदूर गांवों में हर घर में शरीफा का पेड़ मिल जाएगा। अभी शरीफा का मौसम है। ऐसे में गांवों के हाट बाजार में इसकी खुशबू महसूस कर सकते हैं। झींकपानी और टोंटो प्रखंड में होनेवाले शरीफा की अलग पहचान भी है। बेहतर क्वालिटी के कारण कारोबारी रांची, कोलकाता, जमशेदपुर, धनबाद, पटना और बोकारो जैसे बड़े शहरों में ले जाकर बेचते हैं।

मात्र 10 से 12 रुपये किलो यहां बिकता है शरीफा

आलम यह है कि उत्पादक तीन सौ रुपये टोकरी के हिसाब से शरीफा बेच देते हैं। प्रत्येक टोकरी में 25 से 30 किलो शरीफा होता है। इस तरह देखा जाए तो 10 से 12 रुपये किलो की दर से उत्पादक इसे बेच देते हैं। जबकि, शहरों में यह 70-80 रुपये प्रति किलो बिकता है। एक अनुमान के मुताबिक प्रत्येक वर्ष 40 से 50 लाख रुपये का कोराबार जिले में होता है। उत्पादक चाहते हैं कि जिले में यदि नियोजित तरीके से बाजार उपलब्ध करा दिया जाए तो उन्हें फायदा होगा। अभी गांवों में बिचौलिए घूम कर औने-पौने दाम में फल खरीद लेते हैं।

अगस्त से अक्टूबर महीने तक मिलता है यह फल

उत्पादक बताते हैं कि यह फल अगस्त के दूसरे सप्ताह में पकने लगता है। अक्टूबर के पहले सप्ताह तक यह मिलता रहता है। चूंकि इसकी लाइफ कम होती है, इसलिए इसे ज्यादा दिनों तक नहीं रखा जा सकता है। चाईबासा से गुजरते समय हाटगम्हरिया तक सड़क किनारे छोटे बच्चे व महिलाएं पके हुए शरीफ बेचते दिख जाएंगे। शरीफा के शौकिन लोग चाईबासा-हाटगम्हरिया मुख्य सड़क पर सफर करते हुए इसका लुत्फ उठाते हैं।

क्षेत्र में प्रोसेसिंग प्लांट लगाने की बन रही योजना

झींकपानी और टोंटो प्रखंड में बड़े तादाद में शरीफा के मार्केट को देखते हुए जिला प्रशासन द्वारा शरीफा का प्रोसेसिंग प्लांट लगाने की घोषणा की गई है। इसके लिए जेएसएलपीएस को जिम्मेदारी दी गई है, लेकिन लगभग 6 माह गुजरने के बावजूद इस पर कोई आगे का काम नहीं हो पाया है। जिससे स्थानीय लोगों को कच्चा शरीफा खुले मार्केट में बेचना पड़ता है। प्रोसेसिंग प्लांट लगने से ग्रामीणों को शरीफा का अच्छा दाम भी मिलेगा। इससे स्थानीय लोगों को रोजगार का अवसर भी। लेकिन जिला प्रशासन अभी तक इसको शुरू नहीं कर पाई है।

सेहत के लिए क्यों फायदेमंद है शरीफा

वैज्ञानिक शोध के अनुसार, सीताफल में कैल्शिम और फाइबर की मात्रा अधिक होती है। यह आर्थराइटिस और कब्ज जैसी समस्या दूर करने में सहायक होता है। इसमें पोटेशियम भी पाया जाता है। यह मांसपेशियों की कमजोरी दूर करता है। शरीफा खाने से रक्त संचार बढ़िया रहता है। इससे थकान महसूस नहीं होती है। शरीफा का फल शरीर को डिटॉक्स करता है। शरीफा खाने से आंखों की रोशनी बढ़ती है। शरीफा खानेवालों का दिल स्वस्थ्य रहता है। अगर आप गठिया के मरीज हैं तो शरीफा जरूर खाएं।

सीता ने भगवान राम को भेंट किया था यह फल

शरीफा को बोलचाल में लोग सीताफल के नाम से भी पुकारते हैं। इसे अंग्रेजी में custard apple और Sugar-apple भी कहा जाता है। इसका वानस्पतिक नाम अन्नोना स्क्वामोसा है। लोक मान्यता है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम को माता सीता ने यह फल उपहार स्वरूप भेंट किया था। तभी से इसका नाम सीताफल रख दिया गया।


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