कर्मचारी ने ट्रांसफर के लिए दिया पूर्व सीएम का फर्जी अनुशंसा पत्र, जांच में खुलासा हुआ तो मिला निलंबन
झारखंड में सरकारी कर्मियों और पदाधिकारियों के दुस्साहस के कई किस्से हैं। अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। जब इनका फर्जीवाड़ा पकड़ा जाता है तो नई कहानियां सामने आती है।
रांची, प्रदीप सिंह: झारखंड में सरकारी कर्मियों और पदाधिकारियों के दुस्साहस के कई किस्से हैं। अधिकारियों पर दबाव बनाने के लिए ये किसी भी हद तक जा सकते हैं। जब इनका फर्जीवाड़ा पकड़ा जाता है तो नई कहानियां सामने आती है। एक ऐसे ही सरकारी कर्मचारी ने अपना ट्रांसफर कराने के लिए ऐसा जुगत भिड़ाया कि अधिकारी चक्कर खा गए।
बिजली वितरण निगम के एक कर्मचारी आशीष कुमार आचार्या ने कुछ ऐसा ही कारनामा कर दिखाया। आचार्या ने खुद का स्थानांतरण कराने के लिए गलत तरीके से पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास का अनुशंसा पत्र तैयार किया। इस मामले में आचार्या को निलंबित किया गया है।
सिफारिशी पत्र को लेकर सतर्कता बरतने के निर्देश
पूर्व मुख्यमंत्री के जमशेदपुर स्थित पते पर उसके आचार्या द्वारा स्थानांतरण के लिए दिए गए अनुशंसा पत्र के हस्ताक्षर की संपुष्टि का अनुरोध किया गया है। फर्जीवाड़ा करने वाले कर्मचारी के खिलाफ आरोप पत्र गठित करने की प्रक्रिया चल रही है। स्थानांतरण के लिए सिफारिशी पत्र देते वक्त आशीष कुमार आचार्या विद्युत उपभोक्ता फोरम, चाईबासा में पत्राचार लिपिक के पद पर तैनात थे।
उन्हें हटाते हुए विद्युत आपूर्ति क्षेत्र, रांची में तैनात किया गया। इस कारनामे से बिजली महकमे के अधिकारी सन्नाटे में हैं। सिफारिशी पत्र को लेकर सतर्कता बरतने का निर्देश दिए गए हैं। एक पदाधिकारी के मुताबिक, ऐसे कर्मियों को सचेत भी किया गया है तो स्थानांतरण आदि के लिए अनुशंसा पत्र के जरिए दबाव बनाने की कोशिश करते हैं।
जमानत के बाद निलंबन मुक्त, फिर उसी तिथि में हुए निलंबित
भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई में बिजली वितरण निगम ने शून्य सहनशीलता का फार्मूला अपनाया है। विद्युत आपूर्ति प्रमंडल, धनबाद में तैनाती के दौरान सुकुमार मैती को भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने 3000 रुपये घूस लेने के आरोप में गिरफ्तार किया। धनबाद में इससे संबंधित प्राथमिकी दर्ज कराई गई। सेवा संहिता के नियम के तहत जमानत पर जेल से रिहा होने के बाद उन्हें निलंबन मुक्त करते हुए उसी तिथि को फिर से निलंबित कर दिया गया।
बहरहाल पूरे प्रकरण की जांच में पाया गया कि सुकुमार मैती विभागीय कार्रवाई में सहयोग कर रहे हैं। उन्होंने अपना जवाब भी विभाग में दाखिल किया है। निगम में कर्मियों की कमी को देखते हुए सुझाव दिया गया है कि उन्हें निलंबन मुक्त कर दिया जाए। यह अनुशंसा की गई है कि जहां तक संभव हो, मैती और आरोपकर्ता को एक ही आपूर्ति क्षेत्र कार्यालय में पदस्थापित नहीं किया जाए।