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Terror Funding: कश्‍मीर के बाद अब झारखंड में सामने आए बड़े अफसरों के नाम, NIA कर सकती है अहम खुलासा

रांची से गिरफ्तार व्यवसायी सुदेश केडिया और टांसपोर्टर ने एनआइए को टेरर फंडिंग से जुड़े कई राज बताए हैं। राज्‍य के ब्यूरोक्रेट्स और सफेदपोश की इसमें अहम भूमिका है।

By Alok ShahiEdited By: Published: Mon, 13 Jan 2020 08:58 PM (IST)Updated: Tue, 14 Jan 2020 01:28 PM (IST)
Terror Funding: कश्‍मीर के बाद अब झारखंड में सामने आए बड़े अफसरों के नाम, NIA कर सकती है अहम खुलासा
Terror Funding: कश्‍मीर के बाद अब झारखंड में सामने आए बड़े अफसरों के नाम, NIA कर सकती है अहम खुलासा

रांची, राज्य ब्यूरो। चतरा के टंडवा स्थित आम्रपाली व मगध कोयला परियोजना से खनन, व्यवसाय व ट्रांसपोर्टिंग में टेरर फंडिंग मामले की जांच कर रही राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआइए) को कई अहम जानकारियां हाथ लगी हैं। शुक्रवार को गिरफ्तार व्यवसायी सुदेश केडिया व ट्रांसपोर्टर पूर्वी सिंहभूम निवासी अजय कुमार सिंह से एनआइए को कुछ बड़े अधिकारियों के नाम भी मिले हैं, जो उन्हें सहयोग किया करते थे।

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सुदेश केडिया को तो सरकारी अंगरक्षक भी मिला हुआ था, इसका खुलासा हो चुका है। टेरर फंडिंग की राशि कहां-कहां बंटती थी, इसकी भी जानकारी एनआइए को मिल चुकी है, जिसकी पड़ताल जारी है। सुदेश केडिया के करीबी अधिकारी उसकी गिरफ्तारी के बाद से ही विचलित हैं। बड़े नाम सामने आने के बाद एनआइए इस मामले में फूंक-फूंक कर कदम उठा रही है। व्यवसायी और ट्रांसपोर्टर को रिमांड पर लिए जाने की तैयारी है।

टेरर फंडिंग के इस बहुचर्चित मामले में 23 अगस्त 2019 को आधुनिक पावर कंपनी के महाप्रबंधक संजय जैन, ट्रांसपोर्टर सुधांशु रंजन उर्फ छोटू, सीसीएलकर्मी सुभान खान, तृतीय सम्मेलन प्रस्तुति कमेटी (टीएसपीसी) का नक्सली बिंदेश्वर गंझू उर्फ बिंदू गंझू, प्रदीप राम, अजय सिंह भोक्ता, विनोद गंझू, मुनेश गंझू व बीरबल गंझू के खिलाफ आरोप तय किया गया था।

एनआइए ने इस मामले में कुल 14 आरोपितों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था। इस मामले में पांच आरोपित फरार थे, जिनमें फरार सुदेश केडिया व अजय कुमार सिंह गिरफ्तार किए गए थे। अब भी तीन अन्य की तलाश तेज है। पूछताछ में कई अहम खुलासा होना बाकी हैं। 

प्रति ट्रक 2300 रुपये की वसूली का भी हुआ था खुलासा

एनआइए की जांच शुरू होने से पूर्व मगध व आम्रपाली कोयला परियोजना से 2300 रुपये प्रति ट्रक लिए जाने की बात सामने आई थी। इसमें 900 रुपये टोकन व ब्रोकर चार्ज के नाम पर व 1400 रुपये पेपर वर्क के नाम पर ली जाती थी। यह राशि लोडिंग, बिलिंग व ट्रांसपोर्टिंग में सुविधा के रूप में ली जाती थी। लोडिंग चार्ज का कुछ प्रतिशत विस्थापित व प्रभावित क्षेत्र के मजदूरों को दिया जाता था। वसूली का बड़ा हिस्सा उग्रवादी संगठनों के साथ-साथ जिले के सरकारी/गैर सरकारी/व्यक्तियों के बीच बंटती थी।  

एनआइए के पास हैं नक्सलियों-उग्रवादियों से जुड़े आधा दर्जन मामले

झारखंड में राष्ट्रीय जांच एजेंसी के पास नक्सलियों-उग्रवादियों से जुड़े आधा दर्जन मामले हैं। लेवी-रंगदारी से जुटाई गई राशि (टेरर फंडिंग) के मामलों की जांच कर रही एनआइए ने गत 21 अक्टूबर 2019 को उग्रवादी संगठन पीपुल्स लिबरेशन फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएलएफआइ) सुप्रीमो दिनेश गोप सहित 11 लोगों पर चार्जशीट दाखिल की थी। आरोपितों में उसके सहयोगी-व्यवसायी व निवेशक शामिल हैं। 

खामोशी से चल रहा पूरा खेल

झारखंड में कोयला के खनन में ही नहीं बल्कि बालू खनन, पत्थर खदान, लौह अयस्क व बाक्साइट अयस्क खनन में भी बिना चढ़ावा (फंडिंग) के काम नहीं होता। जिस फंडिंग में नक्सली-उग्रवादी शामिल हो गए, वह मामला उजागर हुआ और उसका नाम टेरर फंडिंग दे दिया गया। राष्ट्रीय जांच एजेंसी भी ऐसे ही मामलों की जांच कर रही है। लेकिन सभी खनन क्षेत्रों का हाल बुरा है।

व्यवसायी और ट्रांसपोर्टर खामोशी से लेवी या चढ़ावा दे रहे हैं ताकि उनका व्यवसाय चलता रहे। विरोध नहीं होने के कारण मामला जांच एजेंसिंयों तक पहुंचता ही नहीं। एक अनुमान के मुताबिक 90 फीसद खनन क्षेत्र इससे प्रभावित हैं। ब्यूरोक्रेट्स और सफेदपोश की इसमें अहम भूमिका है। पूर्व मंत्री कांग्रेस के नेता योगेंद्र साव इस मामले में जेल की हवा खा चुके हैं। अदालत में यह मामला चल रहा है।

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