Jharkhand Government: नई सरकार को बढ़ाने होंगे रोजगार के विकल्प, तब रुकेगी मानव तस्करी
झारखंड से हर वर्ष तकरीबन 10 हजार महिलाओं का असुरक्षित पलायन हो रहा है। पलायन और तस्करी की शिकार महिलाएं किसी न किसी रूप में शारीरिक व मानसिक शोषण की शिकार होती हैं।
खास बातें
- 20 वर्ष से कम उम्र की हैैं मानव तस्करी की शिकार ज्यादातर लड़कियां
- 10 प्रतिशत युवतियां पलायन के बाद नहीं लौट पाती हैैं अपने घर
- झारखंड से हर साल 10 हजार से अधिकार युवतियों व महिलाओं का हो रहा पलायन
- बिचौलियों के बहकावे में आकर होती हैैं शोषण और मुसीबतों की सरकार, दिखाए जाते हैैं सब्जबाग
रांची, राज्य ब्यूरो। मानव तस्करी झारखंड के लिए आज भी नासूर बनी है। रोजी-रोटी की तलाश में झारखंड से हर वर्ष तकरीबन 10 हजार महिलाओं का असुरक्षित पलायन हो रहा है। गैर सरकारी संगठन एक्शन अगेंस्ट ट्रैफिकिंग एंड सेक्सुअल एक्सप्लायटेशन (एटसेक) के आंकड़ों पर गौर करें तो इनमें से नौ फीसद बिचौलिये के बहकावे में, तीन फीसद युवतियां व महिलाएं पारिवारिक दबाव में, 37 फीसद सहेलियों के साथ, शेष 51 फीसद परिवार के अन्य सदस्यों के साथ पलायन करती हैं। इनमें से 67 फीसद 20 वर्ष से कम आयु वर्ग की, 15 प्रतिशत 20 से 25 तथा 18 फीसद 25 से अधिक आयु वर्ग की होती है। विभिन्न माध्यमों से दूसरे प्रदेशों के लिए पलायन करने वाली तकरीबन 10 प्रतिशत महिलाएं लौट कर नहीं आतीं। या यों कहेें कि उनका कुछ अता-पता नहीं चलता। पलायन और तस्करी की शिकार महिलाएं किसी न किसी रूप में शारीरिक व मानसिक शोषण की शिकार होती हैं।
इस समस्या के समाधान के लिए शासन-प्रशासन और जिम्मेदारों के अलावा समाज के हर वर्ग को सामने आना होगा। बड़े पैमाने पर इसके लिए जनजागरूकता भी जरूरी है। हालांकि इसका सबसे बड़ा समाधान स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन और स्वरोजगार को बढ़ावा देना ही है।
दिल्ली सबसे बड़ी मंडी, सर्वाधिक पलायन संताल से
दिल्ली इन महिलाओं की खरीदार की सबसे बड़ी मंडी है। इसके अलावा मुंबई, यूपी, कोलकाता, ओडिशा आदि राज्यों में भी इनकी बोली लगती है। सर्वाधिक पलायन संताल परगना के पाकुड़, साहिबगंज, दुमका, गोड्डा के अलावा सिमडेगा, गुमला, लोहरदगा, रांची तथा गिरिडीह जैसे आदिवासी बहुल इलाकों से हो रहा है। यह पलायन बेहतर रोजगार के सपने दिखाने के साथ साथ शादी का प्रलोभन देकर भी हो रहा है।
एक्सपर्ट व्यू
झारखंड में मानव व्यापार का कुत्सित धंधा प्रशासन की आंखों में धूल झोंक कर होता है। इस धंधे में संलिप्त लोगों की जानकारी न तो गांव वाले देते हैं और न ही अन्य स्रोतों से पता चलता है। और तो और नौकरी का झांसा देने वाली एजेंसियों का कहीं निबंधन तक नहीं रहता, ताकि तस्करी की शिकायत महिलाओं की जानकारी सहजता से मिल सके। एक विडंबना और, अगर शक के आधार पर भी किसी की धर-पकड़ करनी हो, तो उसके साथ कम से कम पांच बच्चे, मजदूर अथवा महिलाओं का होना जरूरी है। ऊपर से उन व्यक्तियों को यह बताना होगा कि अमुक व्यक्ति के साथ वह कहीं जा रहा है अथवा उसे जबरन ले जाया जा रहा है। पहले से ही सिखाई-पढ़ाई गई महिलाएं ऐसे मामले में सफेद छूट बोल जाती है। इससे सच्चाई का अंदाजा नहीं मिल पाता। मानव तस्करी पर रोक लगाने के लिए जरूरी है कि समाज का हर तबका जागरूक हो। पंचायत प्रतिनिधियों को भी इसमें अहम भूमिका निभानी होगी। संजय कुमार मिश्रा, राज्य समन्वयक, एटसेक।
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