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Jharkhand News: झारखंड में कुड़मी को कब मिलेगा आदिवासी का दर्जा... जानिए, राजनीतिक गलियारे में क्या चल रही तैयारी

Jharkhand Politics झारखंड और पश्चिम बंगाल में कुड़मी जाति की आबादी अच्छी खासी है। झारखंड की राजनीति की दिशा बदलने में माहिर कुड़मी जाति अर्से से अपनी खोई हुई पहचान को वापस दिलाने की मांग कर रही है यानी आदिवासी का दर्जा पाने के लिए संघर्षरत है।

By M EkhlaqueEdited By: Published: Sun, 20 Mar 2022 12:11 PM (IST)Updated: Sun, 20 Mar 2022 12:14 PM (IST)
Jharkhand Politics: कुड़मी जाति को आदिवासी का दर्जा लोकसभा चुनाव से पहले मिलेगा या नहीं

रांची, डिजिटल डेस्क। Kudmi Caste Get Tribal Status झारखंड की राजनीति में मजबूत पकड़ रखने वाला कुड़मी समुदाय पड़ोसी पश्चिम बंगाल और ओडिशा में भी अच्छी संख्या में है। विशेषकर झारखंड की राजनीति को प्रभावित करने में सक्षम यह समुदाय कई वर्षों से अपने राज्य में खुद को आदिवासी का दर्जा पाने के लिए संघर्षरत है, लेकिन सरकार की ओर से अबतक इस दिशा में कोई पहल नजर नहीं आ रही है। पिछले दिनों जब केंद्र सरकार की ओर से भोगता और पुरान जाति को अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) का दर्जा देने के लिए सदन में संविधान संशोधन बिल पेश किया गया तो इस कुड़मी समुदाय के बीच भी उम्मीद की किरण जगी थी, लेकिन यह देर तक प्रकाशमय नहीं रही। अब भी समुदाय के लोग आदिवासी का दर्जा पाने के लिए आंदोलनरत हैं।

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झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के जिन इलाकों में कुड़मी समुदाय के लोग रहते हैं, वहां इनको लोग महतो सरनेम से लोग पुकारते हैं। राजनीतिक नजरिए से देखा जाए तो यह समुदाय भाजपा और आजसू के साथ खड़ा नजर आता है। यही वजह है कि भाजपा और आजसू जैसी पार्टियों के नेताओं ने पिछले दिनों राष्ट्रपति भवन पहुंचकर राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को ज्ञापन देकर आदिवासी का दर्जा देने की मांग की थी। खुद आजसू पार्टी के सांसद चंद्रप्रकाश चौधरी, भाजपा के सांसद विद्युत वरण महतो, पुरुलिया के सांसद ज्योतिर्मय सिंह महतो तथा गोमिया के विधायक लंबोदर महतो ने मुखर होकर आदिवासी का दर्जा देने की मांग की थी। लेकिन सत्ताधारी पार्टी के नेता होने के बावजूद इनकी आवाज उम्मीदों के मुताबिक मुखर नजर नहीं आई।

राजनीतिक गलियारों में ऐसी चर्चा है कि एकबार फिर महतो समुदाय के सभी नेताओं की गोलबंदी अंदरखाने हो रही है। इस मांग को लेकर झारखंड समेत तीनों राज्यों में मजबूत तरीके से आंदोलन चलाने की तैयारी हो रही है। आंदोलन से पहले तीनों राज्यों के कुड़मी नेताओं की बकायदा बैठक भी होगी, हालांकि अभी तक इसकी विधित घोषणा नहीं की गई है। माना जा रहा कि रणनीति तैयार होने के बाद इस बात की घोषणा की जाएगी। उधर, कुछ राजनीतिक पंडितों का यह भी कहना है कि आमागी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर कुड़मी समुदाय को इस राजनीतिक एजेंडे पर गोलबंद करने की तैयारी है, ताकि लोकसभा चुनाव में एकजुटता बनी रही। चुनाव में कुड़मी समुदाय के लोग जब सवाल पूछें तो उन्हें एहसास कराया जा सके कि उनकी बिरादरी के नेता हक के लिए अपनी सरकार से लड़ रहे हैं।

मालूम हो कि वर्ष 1913 से 1931 तक कुड़मी (महतो) समुदाय अनुसूचित जनजाति की सूची में ही शामिल था। बाद के वर्षों में यानी 1950 में कई सियासी कारणों से इस समुदाय को इस जाति की सूची से हटा दिया गया। तब से अब तक यह समुदाय अपने हक के लिए लगातार लड़ रहा है। झारखंड के कई जिलों में सियासत को प्रभावित करने वाले इस समुदाय की मांग अबतक किसी भी सरकार ने पूरी नहीं की है। अब देखना यह है कि इस बार लोकसभा चुनाव से पूर्व इस समुदाय की मांग पर सरकार ध्यान देती है या नहीं।

झारखंड की सियासत में इस समय यह समुदाय किस कदर अहम भूमिका में है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 32 विधानसभा क्षेत्रों समेत छह लोकसभा क्षेत्रों में यह समुदाय अपने वोट से हार और जीत तय करता है। यही वजह है कि कोई भी पार्टी खुलकर इस समुदाय की मांग का कभी विरोध नहीं करती है, भले ही वह अंदरखाने कुछ भी करती रहे। झारखंड में सक्रिय सभी दलों ने अपने एजेंडे में इस समुदाय की मांग को रखा है। सभी पार्टियां चुनाव में ताल ठोंक कर कहती रही हैं कि कुड़मी को आदिवासी का दर्जा मिलना चाहिए। पिछले चुनाव में इसी मांग के बहाने भाजपा से इस समुदाय की निकटता बढ़ी थी। यह समुदाय इसी वजह से भाजपा सरकार से ज्यादा उम्मीदें लगाए बैठा है। संभव है लोकसभा चुनाव से पहले कोई चमत्कारिक फैसला इस समुदाय का विश्वास पुन: जीत ले। मालूम हो कि कुड़मी समुदाय को आदिवासी का दर्जा देने की मांग सबसे पहले वर्ष 2005 में झारखंड की तत्कालीन अर्जुन मुंडा सरकार ने केंद्र सरकार से की थी। तब इस पर केंद्र सरकार ने कोई निर्णय नहीं लिया था। इसके बाद धीरे धीरे यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया।

बहरहाल, इस समय झारखंड में कुड़मी समुदाय ओबीसी में शामिल है। झारखंड विधानसभा के इस समुदाय के आठ विधायक और संसद में यहां से दो सांसद अभी मौजूद हैं। झारखंड की सरकारी नौकरियों में इस समुदाय की अच्छी भागीदारी है। पश्चिम बंगाल की अगर बात करें तो पुरूलिया, बांकुड़ा और मिदनापुर में इनकी अच्छी आबादी है, यह जिले झारखंड के पड़ोसी हैं। इसी तरह ओडिशा के मयूरभंज और क्योंझर जिले में इस समुदाय की अच्छी आबादी है, यह दोनों जिले भी झारखंड के पड़ोसी हैं।


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