कैट ने ई-कॉमर्स कंपनियों के खिलाफ सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से की खास अपील, जानिए
कैट के अधिकारियों का दावा है कि ई कॉमर्स की बड़ी कंपनियां अपने पोर्टल पर बेचे जाने वाले सामान को वास्तविक बाजार कीमत से काफी कम दामों पर बेचते हुए केंद्र व राज्य सरकार को जीएससटी राजस्व में बड़ी चोट पहुंचा रही है।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर। कंफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) ने सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को एक पत्र भेजा है। इसमें सभी बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा अपने ई-कॉमर्स पोर्टल पर बेचे जाने वाले सामान की कीमत को कृत्रिम रूप से कम करके सरकार को मिलने वाले जीएसटी राजस्व से बचने की ओर उनका ध्यान आकृष्ट कराया है। कैट के अधिकारियों का दावा है कि ई कॉमर्स की बड़ी कंपनियां अपने पोर्टल पर बेचे जाने वाले सामान को वास्तविक बाजार कीमत से काफी कम दामों पर बेचते हुए केंद्र व राज्य सरकार को जीएससटी राजस्व में बड़ी चोट पहुंचा रही है। इस मामले में सभी राज्य सरकार को अविलंब ध्यान देने की जरूरत है।
कैट ने उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित ई-कॉमर्स नियमों को भी तुरंत लागू किये जाने पर मुख्यमंत्रियों से समर्थन भी मांगा है ताकि देश के वर्तमान ई-कॉमर्स व्यापार को प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनियों के एकाधिकार से मुक्त किया जा सके। इस संबंध में कैट ने सभी मुख्यमंत्रियों से इस विषय पर विस्तृत बातचीत करने के लिए समय भी मांगा है। जल्द ही कैट के प्रतिनिधिमंडल सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों से इस विषय पर मिलकर अपनी बात रखेंगे। कैट के राष्ट्रीय महामंत्री प्रवीण खंडेलवाल और राष्ट्रीय सचिव सुरेश सोंथालिया ने सभी मुख्यमंत्रियों को भेजे पत्र में कहा है कि प्रमुख ई-कॉमर्स पोर्टलों पर बेचे जा रहे सामान को कंपनी लागत से भी कम मूल्य पर बेचती है। जिनकी कीमत वास्तविक बाजार कीमत से काफी कम होती है। इसके लिए ई-कॉमर्स कंपनियां ग्राहकों को बड़े-बड़े डिस्काउंट देती है। जिसके कारण राज्य और केंद्र सरकार को जीएसटी राजस्व का नियमित रूप से बड़ा नुकसान हो रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि कई विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियां प्रति वर्ष विभिन्न प्रकार के सेल्स फेस्टिवल आयोजित कर रही हैं जिनमें अविश्वसनीय छूट दी जाती है। जो बाजार कीमतों की तुलना में कीमत को कृत्रिम रूप से कम कर देती है।
इस तरफ भी खींचा ध्यान
उन्होंने यह भी कहा कि ई-कॉमर्स में एफडीआई नीति के तहत ये विदेशी कंपनियां केवल बिजनेस टू बिजनेस (बी2बी) व्यापार के लिए ही अधिकृत हैं। जबकि वे पूरी तरह सरकार के नियमों का उल्लघंन करते हुए बिजनेस टू कंज्यूमर (बी2सी) बिक्री कर रही हैं। दोनों व्यापारी नेताओं ने कहा कि हालांकि नीति बनाना केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता है लेकिन उसे क्रियान्वित करना राज्यों के अधिकार क्षेत्र में है। इसलिए राज्यों को छोटे व्यापारियों एवं उपभोक्ताओं को इन कंपनियों के चंगुल से मुक्त करने और निष्पक्ष ई-कॉमर्स व्यापार सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार से तुरंत बात करनी चाहिए।
लगाम कसने की मांग
प्रवीण खंडेलवाल और सुरेश सोंथलिया ने प्रमुख ई-कॉमर्स कंपनियों द्वारा जीएसटी की कर वंचना पर तुरंत लगाम कसने की मांग करते हुए कहा कि विशेष रूप से विदेशी ई-कॉमर्स कंपनियों के पोर्टल पर बड़ी संख्या में वस्तुओं की बिक्री उस वस्तु के बाजार मूल्य से कम है। जीएसटी कानून के अनुसार सरकार व बाजार मूल्य पर जीएसटी लेने की हकदार है लेकिन यह वैश्विक ई-टेलर्स शिकार कृत्रिम रूप से माल की कीमतों को बेहद कम कर देते हैं और वास्तविक कीमत पर जीएसटी लेने के बजाय कृत्रिम बिक्री मूल्य पर जीएसटी लगाते हैं। उदाहरण के लिए यदि बाजार में किसी मोबाइल का वास्तविक बिक्री मूल्य 10,000 रुपये है तो सरकार उसी बाजार दर पर जीएसटी प्राप्त करने की हकदार है। जबकि इन कंपनियों के पोर्टलों पर उसी मोबाइल को कृतिम रूप से बहुत कम दर पर बेचती और इसी राशि पर ये पोर्टल जीएसटी चार्ज करते हैं। इस तरह सरकारों को सीधे तौर पर जीएसटी राजस्व की चोट पहुंचाते हैं। कैट ने आश्चर्य जताया कि अभी तक केंद्र या राज्य सरकार के जीएसटी विभाग ने जीएसटी राजस्व के इस तरह की कर वंचना पर कोई ध्यान ही नहीं दिया है।