बीएमएस की गुलाटी से श्रमिक जगत हतप्रभ
दिलीप सिन्हा, धनबाद : लाभप्रद सरकारी कंपनियों की पूंजी बेचने, आउटसोर्सिग पर रोक लगाने, श्रम काननू
दिलीप सिन्हा, धनबाद : लाभप्रद सरकारी कंपनियों की पूंजी बेचने, आउटसोर्सिग पर रोक लगाने, श्रम काननू में संशोधन पर रोक लगाने जैसे अहम मुद्दों को लेकर दो सितंबर की देशव्यापी हड़ताल से अंतिम समय में बीएमएस के अलग होने से श्रमिक जगत हतप्रभ है। इसके गुलाटी मारने की वजह को लेकर न सिर्फ संयुक्त मोर्चा बल्कि उसके समर्थक भी सकते में हैं। वे सवाल कर रहे हैं कि सीधे पीएम पर हमला बोलने वाले नेताओं को सरकार ने क्या सब्जबाग दिखाया कि वे अचानक खामोश हो गए।
बहरहाल, हड़ताल से खुद को अलग करने पर बीएमएस मजदूर राजनीति में अलग-थलग पड़ गया है। मजदूर हित में बड़ी-बड़ी बातें करने वाले इसके नेताओं को आज मजदूरों के बीच जवाब देते नहीं बन रहा है। उधर, बीएमएस को छोड़ अन्य चारों ट्रेड यूनियन इंटक, एटक, एचएमएस व सीटू एकजुट हैं। उनकी हड़ताल को एआइयूटीयूसी, यूटीयूसी, टीयूसीसी, एआइसीसीटीयू समेत दर्जनों श्रमिक संगठनों का समर्थन मिल रहा है। सभी बीएमएस को भगोड़ा साबित करने में लगे हुए हैं। बीएमएस शुरू से खुद को गैर राजनीतिक मजदूर संगठन साबित करने की कोशिश करता रहा है। वह इस बात का बराबर खंडन करता है कि भाजपा से उसका कोई लेना-देना है। मजदूरों के लिए वह यूपीए हो या एनडीए किसी भी सरकार के खिलाफ हड़ताल पर जाने से गुरेज नहीं करता है। लेकिन आज जब मजदूर हित में केंद्र की भाजपा सरकार के खिलाफ लड़ाई लड़ने की जरूरत हुई तो वह मैदान छोड़कर भाग गया। वह भी बिना किसी ठोस आश्वासन के। मोदी सरकार ने केंद्रीय ट्रेड यूनियनों को ऐसा कोई ठोस आश्वासन नहीं दिया है, जिसके भरोसे हड़ताल से पीछे हटना पड़े। यही कारण है कि बीएमएस को छोड़कर बाकी सभी केंद्रीय यूनियनों ने हड़ताल को एतिहासिक बनाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है।
अभी एक सप्ताह पूर्व बीएमएस के राष्ट्रीय नेता सुरेंद्र पांडेय ने इसी हड़ताल के समर्थन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ना सिर्फ अहंकार बताया था बल्कि यह भी कहा था कि मोदी सरकार को देश के किसान एवं मजदूर उखाड़ फेंकने का काम करेंगे। इसकी शुरूआत हो चुकी है। लेकिन अब बीएमएस के नेता हड़ताल को राजनीति से प्रेरित बताने लगे हैं।