Move to Jagran APP

Jammu Kashmir Lok Sabha Election 2024: जम्‍मू कश्‍मीर में हुआ बंपर मतदान, पिछले 35 साल का टूटा रिकॉर्ड

Anantnag Lok Sabha Election 2024 अनंतनाग-राजौरी संसदीय क्षेत्र में 53 प्रतिशत मतदान के साथ ही जम्मू-कश्मीर की पांचों सीटों पर मतदान प्रक्रिया भी संपन्न हो गई। प्रदेश की पांचों संसदीय सीटों पर कुल 58 प्रतिशत मतदान हुआ है जो वर्ष 1989 के बाद बीते 35 वर्ष में अब तक का सबसे ज्यादा है। 996 में 47.99 प्रतिशत और वर्ष 2014 में 49.58 प्रतिशत हुआ था।

By Jagran News Edited By: Himani Sharma Published: Sun, 26 May 2024 06:00 AM (IST)Updated: Sun, 26 May 2024 06:00 AM (IST)
जम्‍मू कश्‍मीर में हुआ बंपर मतदान, पिछले 35 साल का टूटा रिकॉर्ड

नवीन नवाज, श्रीनगर। अनंतनाग-राजौरी संसदीय क्षेत्र में शनिवार को रिकॉर्ड 53 प्रतिशत मतदान के साथ ही जम्मू-कश्मीर की पांचों सीटों पर मतदान प्रक्रिया भी संपन्न हो गई। चुनाव परिणाम चार जून को आएगा, लेकिन जम्मू-कश्मीर के लोगों ने अपना निर्णय सुना दिया है कि उनके पूर्वजों ने भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय जिस भारतीय लोकतंत्र में आस्था जताई थी, वह आज भी उसके प्रति समर्पित हैं।

1989 के बाद इस बार हुआ सबसे ज्‍यादा मतदान

प्रदेश की पांचों संसदीय सीटों पर कुल 58 प्रतिशत मतदान हुआ है, जो वर्ष 1989 के बाद बीते 35 वर्ष में अब तक का सबसे ज्यादा है। मतदान में यह बढ़ोतरी कश्मीर में शांति, सुरक्षा, विकास और विश्वास के वातावरण की बहाली, केंद्र सरकार के अनुच्छेद-370 हटाने के निर्णय और मौजूदा नीतियों पर मुहर का प्रतीक है। इससे पहले जम्मू-कश्मीर में लोकसभ चुनाव में सबसे ज्यादा मतदान वर्ष 1996 में 47.99 प्रतिशत और वर्ष 2014 में 49.58 प्रतिशत हुआ था।

दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित किए जाने के बाद पहला चुनाव

जम्मू-कश्मीर में शनिवार को संपन्न हुई मतदान प्रक्रिया बहुत मायने रखती है, क्योंकि पांच अगस्त, 2019 को अनुच्छेद-370 के निरस्तीकरण और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में पुनर्गठित किए जाने के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव है। हालांकि इस बीच, जम्मू-कश्मीर में जिला विकास परिषदों के चुनाव हुए हैं।

यह भी पढ़ें: Anantnag Lok Sabha Election 2024: दिव्‍यांग हो या बुजुर्ग सभी ने निभाई जिम्‍मेदारी, अनंतनाग सीट पर इतने लोगों ने किया मतदान

अनुच्छेद-370 के निरस्तीकरण के विरोध में जिस तरह से कुछ वर्गों ने दुनियाभर में दुष्प्रचार फैलाने का प्रयास किया, उसे देखते हुए कहा जा रहा था कि अलगाववादी चुनाव बहिष्कार का एलान करें या न करें, कहीं न कहीं उसका असर देखने को मिल सकता है, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।

इसका साफ संदेश यह है कि लोगों के दिल से उनका खौफ निकल चुका है। आजादी व अलगाववाद के नारे के पीछे खड़ी नजर आने वाली भीड़ खत्म हो चुकी है। कश्मीर में यह पहला चुनाव है जिसमें आजादी और अलगाववाद का कोई समर्थक नजर नहीं आया।

सभी प्रादेशिक, राष्ट्रीय दलों व निर्दलियों ने लिया भाग

नेशनल कान्फ्रेंस, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी, भाजपा, कांग्रेस, जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कान्फ्रेंस, जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी समेत विभिन्न राजनीतिक दलों के अलावा कई निर्दलियों ने मौजूदा चुनाव प्रक्रिया में भाग लिया। चुनाव प्रचार के दौरान कहीं भी आटोनामी, सेल्फ रूल या जनमत संग्रह जैसे नारों की बात नहीं हुई, जो 2019 तक कश्मीर में मुख्यधारा की राजनीति करने वाले दलों के लिए मुख्य एजेंडा रहे हैं।

यह भी पढ़ें: कश्मीर की अनंतनाग-राजौरी सीट पर दिखी लोकतंत्र की ताकत, आतंकियों के परिजनों ने भी डाले वोट

किसी ने भी सब्ज रुमाल, पाकिस्तानी नमक की बात नहीं की। हां, यह अपील जरूर की कि पांच अगस्त, 2019 के फैसल के प्रति नाराजगी जताने के लिए लोग वोट डालें। इसके साथ वोट मांगने वालों ने रोजगार, जमीन, विकास और पहचान के मुद्दे जमकर उठाए। लोगों ने खुलकर कहा कि वह अपनी आवाज संसद में पहुंचाना चाहते हैं, वह रोजगार चाहते हैं, यहां अमन और तरक्की चाहते हैं, इसलिए वोट डालने आए हैं।

जम्मू-कश्मीर में चुनाव प्रधानमंत्री की जीत

समाजसेवी सलीम रेशी ने कहा कि कश्मीर में जनमत संग्रह की वकालत करने वाले इंजीनियर रशीद ने भी चुनाव लड़ा, लेकिन उन्होंने ऐसी कोई बात नहीं की। बल्कि यही कहा कि वह कश्मीर में एक शांति, सुरक्षा और विकास का वातावरण चाहते हैं।

इसलिए मेरी राय में जम्मू-कश्मीर में यह चुनाव प्रधानमंत्री की जीत है, क्योंकि यह पहला चुनाव है जिसमें कोई भी प्रत्यक्ष-परोक्ष रूप से आजादी और अलगाववाद का समर्थक नहीं था। 


This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.