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Holi 2020: कोरोना का खौफ, सेरी मंच पर नहीं उड़ेगा अबीर गुलाल; कई कार्यक्रम रद

Holi 2020 कोरोना वायरस के चलते छोटी काशी मंडी में रंगोत्सव का कार्यक्रम रद कर दिया गया है यहां सेरी मंच पर पिछले 17 साल से रंगोत्सव का आयोजन किया जा रहा है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Sat, 07 Mar 2020 09:00 AM (IST)Updated: Sat, 07 Mar 2020 09:00 AM (IST)
Holi 2020: कोरोना का खौफ, सेरी मंच पर नहीं उड़ेगा अबीर गुलाल; कई कार्यक्रम रद
Holi 2020: कोरोना का खौफ, सेरी मंच पर नहीं उड़ेगा अबीर गुलाल; कई कार्यक्रम रद

मंडी, जेएनएन। हिमाचल प्रदेश की सांस्कृतिक राजधानी छोशी काशी के ऐतिहासिक सेरी मंच पर इस बार अबीर गुलाल नहीं उड़ेगा। कोरोना वायरस के चलते नौ मार्च को होने वाला रंगोत्सव का कार्यक्रम रद कर दिया गया है। हालांकि प्रशासन ने आयोजकों को कार्यक्रम आयोजित करने की मंजूरी प्रदान कर दी थी, लेकिन जनहित को ध्यान में रखते हुए कार्यक्रम रद कर दिया। 

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सेरी मंच पर 17 साल से रंगोत्सव का आयोजन हो रहा है। यहां हर साल डीजे की धुनों पर होली मनाई जाती थी। कार्यक्रम के आयोजक धर्मेंद्र राणा का कहना है रंगोत्सव में भाग लेने पड़ोसी राज्य पंजाब, चंडीगढ़ और हरियाणा तक के लोग आते हैं। हजारों की भीड़ जुटती है। अगर एक भी व्यक्ति कोरोना से ग्रसित हुआ तो स्थानीय लोगों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है। लोगों की स्वास्थ्य सुरक्षा को देखते हुए कार्यक्रम रद करने का फैसला लिया गया है। 2003 में कार्यक्रम की शुरुआत के पीछे यही सोच थी कि शहर के सभी युवा अपने स्जवनों के सामने शहर के एक स्थान पर होली उत्सव मनाएं और होली पर होने वाले हुड़दंग को रोका जा सके। 

छोटी काशी में अलग ही होता था होली का उल्लास

छोटी काशी में होली का उल्लास अलग ही होता है। देश के अन्य हिस्सों के बजाय यहां एक दिन पहले रंग उड़ाए जाते हैं। शिवरात्रि के बाद होली पर राजदेवता माधो राय की शोभायात्रा निकली है। मंडी की होली देश में मनाई जाने वाली होली से एक दिन पूर्व मनाई जाती है। इस दिन सुबह से ही होली खेलने वालों की टोलियां शहर के मुख्य बाजारों में उमड़ने लगती हैं। मंडी की होली की खासियत यह है कि यहां गैरों पर रंग नहीं डाला जाता, बिना जान-पहचान के किसी पर रंग नहीं डालते और महिलाएं भी बाजार में होली खेलने आती हैं। होली की यह मस्ती मंडी में माधोराय की जलेब निकलने के पश्चात समाप्त हो जाती है। अबीर गुलाल के अलावा प्राकृतिक रगों की होली खेली जाती रही है।

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