प्राकृतिक खेती ने प्रवीण को दिखाई आत्मनिर्भरता की राह, एक से ज्यादा फसलें उगा की आर्थिकी मजबूत
Self Dependent By Farming देहरा विकास खंड के प्रवीण कुमार ने खेती से आत्मनिर्भरता की राह पकड़ ज़िला के किसानों के लिए मिसाल पेश की है। प्रवीण कुमार ने बताया वर्ष 2018 में गांव में कृषि विभाग ने प्राकृतिक खेती पर एक शिविर आयोजित किया था।
धर्मशाला, जागरण संवाददाता। Self Dependent By Farming, देहरा विकास खंड के प्रवीण कुमार ने खेती से आत्मनिर्भरता की राह पकड़ ज़िला के किसानों के लिए मिसाल पेश की है। प्रवीण कुमार ने बताया वर्ष 2018 में गांव में कृषि विभाग ने प्राकृतिक खेती पर एक शिविर आयोजित किया था। शिविर में कृषि अधिकारियों ने प्राकृतिक खेती के बारे में बताया और इस खेती में प्रयोग होने वाली तकनीक का व्यावहारिक ज्ञान भी दिया। इन तकनीकों के आधार पर घर पर ही प्राकृतिक खेती में प्रयोग होने वाले तमाम स्तंभों का प्रयोग करना अपनी खेती में शुरू कर दिया। प्राकृतिक खेती के प्रयोग करने से अब वह अनाज वर्गीय फ़सलों के अलावा बहुतायत में सब्ज़ियां भी उगा रहे हैं और एक खेत में एक से ज़्यादा फ़सलें उगा कर मुनाफ़ा कमा रहे हैं।
प्रवीण कुमार ने बताया कि शुरुआत में उन्हें अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए रसायनों का प्रयोग करना पड़ा; जिससे उनके खेतों की उर्वरक क्षमता साल-दर-साल गिरने लगी और कुछ समय बाद उपज में बढ़ोतरी दर्ज होना बंद हो गई। वर्ष 2018 में प्रवीण कुमार ने आतमा परियोजना द्वारा आयोजित सुभाष पालेकर के छह दिवसीय प्रशिक्षण शिविर में भाग लिया और प्राकृतिक खेती के बारे में जानकारी प्राप्त की। उसके बाद प्रवीण कुमार ने दो दिवसीय कृषि भ्रमण में सुभाष पालेकर प्राकृतिक खेती की ओर से लगाए प्रदर्शन प्लॉट देखे और किसानों से बातचीत करके तीन कनाल भूमि में प्राकृतिक खेती शुरू की। जिसमें उन्हाेंने एक से ज़्यादा सब्जियां व सह फसलें उगाईं। उन्होंने बताया जब उन्होंने प्राकृतिक खेती से मिक्सिंग करके फसलें उगाईं तो उनकी पैदावार दोगुनी हो गई। गेहूं की एक देसी क़िस्म ‘बंसी चना’ और सरसों की मिक्सिंग करने पर उनको काफी बेहतर परिणाम मिले।
साहीवाल देसी नस्ल की गाय भी पाली है
प्रवीण कुमार ने बताया कि उन्होंने ‘‘साहीवाल’’ नामक देसी नस्ल की एक गाय भी पाली है। वह समय-समय पर प्राकृतिक खेती के संबंध में आतमा परियोजना के अधिकारियों से जानकारी लेते रहते हैं और प्राकृतिक खेती के चार स्तंभों बीजामृत, जीवामृत, अच्चाधन तथा वापसा का पूरा ध्यान रखते हैं; जिससे खेती की लागत कम करने और स्वस्थ एवं पोषणयुक्त्त भोजन उगाने में मदद मिलती है। वह इसके परिणामों से बेहद संतुष्ट हैं और अब वह प्राकृतिक खेती की मदद से बिना रसायनों के खेती करते हैं और मटर, गोभी, मूली, धनिया, पालक, शलगम, भिंडी, फ्रेंचबीन, प्याज़, अदरक, बैंगन और सरसों इत्यादि फ़सलें सफलतापूर्वक उगा रहे हैं। अब वह प्रतिमाह कम से कम 25 हज़ार रुपये कमा रहे हैं।