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Himachal Statehood Day: छोटे राज्‍य ने पार किया चुनौतियों का पहाड़, जानिए हिमाचल के बारे में

Himachal Statehood Day मैं हिमाचल हूं...25 जनवरी 1971 को पहाड़ सी चुनौतियों के बीच मेरा जन्म एक पूर्ण राज्य के रूप में हुआ।

By Rajesh SharmaEdited By: Updated: Sat, 25 Jan 2020 02:58 PM (IST)
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Himachal Statehood Day: छोटे राज्‍य ने पार किया चुनौतियों का पहाड़, जानिए हिमाचल के बारे में

शिमला, रोहित नागपाल। मैं हिमाचल हूं...25 जनवरी 1971 को पहाड़ सी चुनौतियों के बीच मेरा जन्म एक पूर्ण राज्य के रूप में हुआ। यह उस दिन की बात है जब, आसमान से चांदी बरस रही थी। मुझे बनाने की घोषणा भी ऐसी महिला प्रधानमंत्री ने की, जिसे देश ही नहीं दुनिया में भी अपने फैसलों के लिए जाना जाता था। जब चलना सीखा तो रास्ते नहीं थे, तरक्की के लिए कोई साधन नहीं था। महज पहाड़ी होने के नाते हर हिमाचली में कुछ करने का जज्बा था। इसी के दम पर ऊंचाइयां हासिल करने का सफर शुरू किया।

25 जनवारी 1971 को शिमला आने पर देश की तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का स्वागत करते हुए लोग।

छोटा राज्य होने के बावजूद चुनौतियों का पहाड़ पार किया। लेकिन यहां के सियासतदानों को भी यकीन नहीं था कि 49 साल का होने पर मैं शिक्षा ही नहीं स्वास्थ्य के क्षेत्र में पहाड़ी ही नहीं बल्कि बड़े राज्यों के लिए आदर्श बनूंगा। उस दौरान मेरी आबादी थी 12 लाख, 228 किलोमीटर सड़कें और 331 शिक्षण संस्थान थे। हर बच्चे को स्कूल पहुंचाना और हर गांव तक का सड़क पहुंचाने का सपना तो मेरे लोगों की आंखों में था, लेकिन पूरा कैसे होगा, ये सोचना भी चुनौती था। मैं कैसे पढ़ूंगा और कैसे बढ़ूंगा, ये सोचना भी उस समय काफी कठिन था।

25 जनवारी 1971 को शिमला के रिज मैदान पर उमडी भीड़। इसी दिन तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने हिमाचल को पूर्ण राज्‍य का दर्जा देने की घोषणा की थी।

समय के साथ पहाड़ी प्रदेश ने पहाड़ सी चुनौतियों को पार करने के लिए जब एक बार ठाना तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। 331 की मुकाबले हिमाचल में आज 15 हजार से ज्यादा शिक्षण संस्थान हैं। इसमें दस लाख से ज्यादा छात्रों का भविष्य सुधारने के लिए 70 हजार से ज्यादा शिक्षक तैनात हैं। पढऩे के साथ मुझे पांव पर खड़ा करना बड़ी चुनौती थी। इस तरह कई क्षेत्रों में काम तो शुरू हुआ, लेकिन मेरी आबादी बढ़ती गई। इससे जरूरतें भी लगातार बढऩे लगी।

मेरे पास उस महज बागवानी क्षेत्रफल 792 हेक्टेयर (1951-52) ही था। आज बढ़कर 2,20706 हेक्टेयर हुआ। बागवानी से मुझे होने वाली कमाई भी 4000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। इसमें अभी और बाधाएं पार कर मंजिलों को हासिल करने की चुनौती बची है। जिन्हें मुझे हासिल करना है। पहले मेरा सेब पर एकाधिकार था, लेकिन अब विदेशों से लेकर पड़ोसी राज्यों के सेब से चुनौती मुझे मिल रही है।

25 जनवारी 1971 को शिमला आने पर देश की तत्‍कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का स्वागत करते हुए हिमाचल प्रदेश निर्माता व प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री डॉक्‍टर यशवंत सिंह परमार।

सड़कों से रखी विकास की बुनियाद

यह हर पहाड़ी के जज्बे का ही कमाल है कि मेरे पास आज 33 हजार किलोमीटर सड़कों का जाल है। इन्हीं सड़कों के दम पर ही विकास की बुनियाद रखी गई। कोई बच्चा जब दादा-दादी की अंगुली पकड़कर सड़क से गुजरता है तो इस बात का सुकून मिलता है कि मेरे गांव के भाग्य की रेखा बदल गई है। यह सही है कि विकास पढ़ाई के साथ आगे बढ़ेगा। जब मैं बना तो मेरी साक्षरता दर 4.8 फीसद रही। इसे 50 फीसद यानी आधे हिमाचल को पढ़ा लिखा बनाना भी चुनौती था। समय के चक्र के साथ साक्षरता दर बढ़ती रही। बड़े राज्यों को शिक्षा के क्षेत्र में पछाडऩे के बाद आज 49 वर्ष का होने पर मैं साक्षरता दर में देश में दूसरे नंबर पर हूं। साक्षरता दर 80 फीसद से ज्यादा है, लेकिन मुझे पूरा पढऩा है यानि साक्षरता दर को 100 फीसद पहुंचना ही मेरा लक्ष्य है। पहाड़ी राज्य होने के नाते पानी नदियों में था, लेकिन गांव नदियों से दूर थे। 300 बस्तियां ही ऐसी थीं, जहां पानी पहुंचता था। हर घर में नल लगाने का मेरा सपना कब पूरा होगा, यही सोचता था। आज हिमाचल में 7500 से ज्यादा पेयजल और इससे भी कहीं ज्यादा सिंचाई की योजनाएं हैं।

मेरी बिजली से रोशन है उत्तर भारत

पहाड़ों को चीरते हुए नदियों के पानी दूसरे राज्य नहीं बल्कि देशों तक पहुंच जाता था। मेरे विकास में इसकी क्या भूमिका हो सकती है। इस पर काफी मंथन के बाद बिजली प्रोजेक्ट लगाना शुरू किया है। देश का सबसे बड़ा बिजली प्रोजेक्ट नाथपा-झाखड़ी एक समय हिमाचल में ही लगा। 1500 मेगावाट क्षमता का प्रोजेक्ट आज भी देश के कई राज्यों को रोशन करता है। बिजली से रोशनी भले ही दूसरे राज्यों को मिली, लेकिन खजाना मेरा ही बढ़ा। हर साल बिजली बेच कर ही मैं 1000 करोड़ रुपये से ज्यादा कमाता हूं। आज हिमाचल का हर गांव बिजली से जुड़ा है।

केंद्र पर निर्भरता अधिक

छोटा राज्य होने के नाते केंद्र पर निर्भरता अधिक रहती है। इसके बावजूद मैं टैक्स राजस्व के रूप में 7000 करोड़ रुपये कमाता हूं। बिजली बेच कर भी 1000 करोड़ रुपये की कमाई हो जाती है। कमाई के और संसाधन तलाशने के लिए सियासतदानों को ध्यान देने की जरूरत है। आज मेरा योजना आकार 8000 करोड़ के करीब पहुंच गया है। इसे हासिल करने के लिए खुद ही मेहनत करनी होगी।

25 जनवरी 1971 को मिला था पूर्ण राज्य का दर्जा

15 अप्रैल 1948 को 30 रियासतों को मिलाकर हिमाचल राज्य का गठन हुआ। तब इसे मंडी, महासू, चंबा और सिरमौर चार जिलों में बांट कर प्रशासनिक कार्यभार एक मुख्य आयुक्त को सौंपा गया। बाद में इसे पार्ट-सी कैटेगरी का राज्य बनाया गया। 25 जनवरी 1971 को हिमाचल को पूर्ण राज्य का दर्जा दिया गया। 25 जनवरी का दिन हिमाचल के लोगों के लिए एक यादगार दिवस है। वर्ष 1971 में इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने शिमला के ऐतिहासिक रिज मैदान से हजारों प्रदेशवासियों को संबोधित करते हुए हिमाचल को पूर्ण राज्यत्व का दर्जा प्रदान किया था। इसके साथ हिमाचल भारतीय गणतंत्र का 18वां राज्य बना था।

उपलब्धियां बहुत, चुनौतियां भी कम नहीं

पूर्ण राज्यत्व का दर्जा मिलने के बाद मैंने कई क्षेत्रों में तरक्की की है, लेकिन मेरी चुनौतियां अब भी कम नहीं हुई हैं। 68 लाख की आबादी वाले पहाड़ी प्रदेश हिमाचल के सामने कर्ज से पार पाना बड़ी चुनौती बना है। पचास हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के कर्ज का बोझ हो गया है। बेशक हर क्षेत्र में विकास की बयार बह रही हो लेकिन अपने खर्चों पर नियंत्रण करने के साथ ही आय के साधन बढ़ाने की जरूरत है।