कंडम वाहन भी बन रहे हैं हादसों का सबब
जागरण संवाददाता, सोनीपत: जिले में वाहनों की सटीक फिटनेस जांच के लिए विभाग के पास उत्कृ
जागरण संवाददाता, सोनीपत:
जिले में वाहनों की सटीक फिटनेस जांच के लिए विभाग के पास उत्कृष्ट संसाधनों का अभाव है। साथ ही सुरक्षा मानकों का भी ध्यान नहीं रखा जा रहा है। ऐसे में सड़कों पर कंडम व बेतरतीब दौड़ रहे वाहन हादसों का सबब बन रहे हैं। व्यावसायिक वाहनों को फिटनेस प्रमाण पत्र लेने के लिए वर्ष में एक बार अपने वाहन को क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकरण से पास करवाना पड़ता है। इसके लिए भी सप्ताह में एक ही दिन सुनिश्चित किया गया है। वहीं निजी वाहनों को तो शुरुआती 15 वर्ष तक फिटनेस प्रमाण पत्र लेने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती है। उन्हें 15 वर्ष के लिए फिटनेस प्रमाण पत्र उपलब्ध करवा दिया जाता है। हालांकि इसके विपरीत विभाग वाहनों की संपूर्ण फिटनेस जांच करने का दावा कर रहा है।
जिले में व्यावसायिक वाहनों की संख्या 28206 है, जबकि हजारों निजी वाहन दौड़ रहे हैं। सड़कों पर चल रहे व्यावसायिक वाहनों को देखकर आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि इनके फिटनेस जांच में सार्थक प्रयास नहीं हो रहे हैं। साथ ही उन्हें फिटनेस प्रमाण पत्र देने में बारीकी से जांच नहीं की गई। सड़कों पर दौड़ते ज्यादातर व्यावसायिक वाहनों में फॉग लाइट, पार्किंग लाइट व कलर रिफ्लेक्टर का अभाव आसानी से दिख जाता है, जो कि हादसों को न्योता देता है। वाहन की फिटनेस से छेड़छाड़ करना सरासर अपराध है, लेकिन कुछ लोग मनमानी कर रहे हैं। पुलिस भी वाहनों के दस्तावेजों की जांच तो करती है, लेकिन उनकी फिटनेस की तरफ ध्यान नहीं देती।
वाहनों की फिटनेस जांच में अनदेखी
अधिकारी और कर्मचारी केवल पा¨सग के समय ही फिटनेस पर ध्यान देते हैं। व्यवसायिक वाहन के लिए तो एक वर्ष में एक बार ही फिटनेस प्रमाण पत्र लेना होता है। उस समय भी शीशे पर काली पट्टी आदि की अनदेखी कर दी जाती है। पुराने वाहनों की खरीद-फरोख्त होते समय विभाग द्वारा वाहनों की फिटनेस जांचने में अनदेखी की जाती है। कई बार तो वाहन को देखे बिना ही दूसरे के नाम पर ट्रांसफर कर दिया जाता है।
एक बार फिटनेस प्रमाण पत्र लेने के बाद नहीं जांच की आवश्यकता
परिवहन प्राधिकरण द्वारा निजी वाहनों को तो शुरू में पा¨सग के दौरान ही एकमुश्त 15 वर्ष तक के लिए फिटनेस प्रमाण पत्र मिल जाता है। इस दौरान उन्हें फिटनेस जांच करवाने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। 15 वर्ष के बाद भी निजी वाहनों को कंडीशन के आधार पर पांच वर्ष तक के लिए फिटनेस प्रमाण पत्र मिल जाता है।
अधिकतर वाहनों पर नहीं लगे हैं रिफ्लेक्टर
सड़कों पर अधिकतर वाहन ऐसे भी दौड़ते हैं जिन पर रिफ्लेक्टर नहीं लगे होते हैं। रिफ्लेक्टर न होने से धुंध में अधिक हादसे भी होते हैं। अधिकतर वाहनों में फॉग लाइट की सुविधा ही नहीं है। वाहन निर्माता कंपनियों ने भी अनेक वाहनों में फॉग लाइटों की व्यवस्था नहीं की है। बहुत कम संख्या में ट्रैक्टर-ट्राली, तिपहिया वाहन, मोटरसाइकिल, कारों सहित अनेक वाहनों पर रिफ्लेक्टर ही लगे नजर नहीं आते हैं।
पा¨सग के बाद लगवा लेते हैं अतिरिक्त सीट
कई सवारी वाहनों के चालक वाहन पा¨सग के बाद अधिक सवारी बैठाने के मामले में वाहन की सीट से छेड़छाड़ करते अतिरिक्त सीटें लगवा लेते हैं। ऑटो, जीप, क्रूजर, मैक्सी कैब व अन्य सवारी वाहनों में अतिरिक्त सीटें लगी देखी जा सकती हैं। कई बार तो वाहन के चालक के लिए बैठने के लिए पर्याप्त जगह तक नहीं बचती है।
विभाग का नहीं जुगाड़ वाहनों की तरफ कोई ध्यान
सड़कों पर अनेक जुगाड़ के वाहन दौड़ते हुए नजर आते हैं। ये वाहन सड़क हादसों का कारण भी बनते हैं। पुलिस न तो ऐसे वाहन चालकों के खिलाफ कार्रवाई करती है और न ही वाहनों में जुगाड़ करने वालों पर नकेल कसी जा रही है।
गन्ने व धान के सीजन में चलती है एक साथ तीन से चार ट्रालियां
गन्ने व धान की फसल को मंडी में ले जाने का सीजन आते ही ट्रैक्टर के पीछे तीन से चार ट्रालियां जुड़ी दिख जाती हैं। किसान इस तरह की घोर लापरवाही बरत कर फसल को बेचने के लिए ले जाते हैं, जिससे हादसा होने की संभावना बढ़ जाती है। पुलिस इनकी जांच करती है, लेकिन मात्र व्यावसायिक प्रयोग के दौरान ही इनके चालकों की जांच की जाती है और चालान काटे जाते हैं।
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व्यावसायिक वाहनों की लगातार चे¨कग की जाती है। अगर वह नियमों का पालन नहीं करता तो उसका चालान करने के साथ उसे जब्त भी किया जाता है। साथ ही नए वाहनों को दो साल व पुराने को एक साल का फिटनेस प्रमाण-पत्र दिया जाता है। बीच में भी वाहनों की जांच होती है।
जगबीर ¨सह, अतिरिक्त सचिव, आरटीए।