Sirsa: सातवीं कक्षा की किताबों का सैट 7680 रुपये में तो चौथी का सैट इतने में बिक रहा, उपभोक्ताओं की जेब पर पड़ रहा असर
लोकसभा चुनाव के कारण अभी के ज्यादातर अधिकारी व्यस्त हैं। जिस कारण से बाकी चीजों पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। इसी का परिणाम है कि सातवीं कक्षा की किताबों का सैट 7680 रुपये में तो चौथी का सैट 5860 रुपये में बिक रहा है। निजी स्कूलों तथा पुस्तक विक्रेताओं के बीच सेटिंग होने से उपभोक्ताओं की जेब पर इसका सीधा असर पड़ रहा है।
संवाद सहयोगी, डबवाली (सिरसा) लोकसभा चुनावों (Lok Sabha Election 2024) में प्रशासनिक अधिकारी इस तरह से मशगूल हैं कि अन्य व्यवस्थाओं पर ध्यान नहीं दे रहे। तभी तो निजी स्कूल तथा बुक्स सेलर बेलगाम हो गए हैं। हालांकि इन दिनों स्कूलों में जो माहौल है, वह चुनाव जैसा ही है। क्योंकि एडमिशन शुरु हो चुके हैं।
अभिभावक अपने बच्चों को दाखिला दिलाने के लिए भाग-दौड़ कर रहे हैं। किताबें, वर्दी दिला रहे हैं। डबवाली में अभिभावकों की टेंशन का फायदा खूब उठाया जा रहा है। स्कूलों के आगे बूथ स्थापित हो गए हैं। यहां से किताबें, वर्दी, जूते तक मिल रहे हैं लेकिन इन सबका कोई बिल नहीं दिया जा रहा।
बिल के नाम पर कंप्यूटर प्रिंट स्लिप दी जा रही है। उस पर कोई मोबाइल नंबर, यहां तक कि संबंधित डिपो का पता तक नहीं है। ऐसे में स्कूलों और बुक्स सेलर के बीच सेटिंग का संदेह उत्पन्न हो गया है। डबवाली निवासी राजेश कुमार ने बताया कि उसने बठिंडा रोड पर स्थित एक बूथ से तीन कक्षाओं की किताबें खरीदी।
उसे बिल के नाम पर एक कागज थमा दिया गया। उसने आनलाइन पेमेंट करनी थी लेकिन उससे 13761 रुपये नकद देने का दबाव बनाया गया। मजबूरन उसे बिल का भुगतान करना पड़ा क्योंकि स्कूल प्रबंधकों ने उसे बूथ पर भेजा था। बूथ के अलावा शहर में किसी अन्य दुकान पर संबंधित स्कूल की किताबें नहीं हैं।
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राजेश के मुताबिक एलकेजी की 2731 रुपये, दूसरी कक्षा की 5170 तथा चौथी कक्षा की किताबें 5860 रुपये की मिली। एक अन्य अभिभावक हर्ष ने बताया कि उक्त डिपो की एक अन्य ब्रांच है। उसने बच्चे के लिए सातवीं कक्षा की किताबें खरीदी। उसे जो स्लिप दी गई, उस पर डिपो का नाम है, लेकिन उसका पता नहीं है।
सातवीं कक्षा की किताबों का सैट 7680 रुपये मंे आया है। उपभोक्ता भजन, सुरेश, मोहित, अंग्रेज आदि ने बताया कि पूरे शहर में महज एक दुकान पर स्कूल की किताबें उपलब्ध हैं, तो इसका मतलब कि स्कूल और किताबें बेचने वाले की सेटिंग है। जिसका खामियाजा उपभोक्ता भुगतने को मजबूर हैं।
समय नहीं होता, इसलिए पूरी जानकारी लिखना संभव नहीं
इस संबंध में बुक्स डिपो संचालक से बातचीत की गई। उसने बताया कि एक उपभोक्ता पर 10 मिनट लगते हैं। अगर स्लिप में बच्चे के नाम के अतिरिक्त मोबाइल नंबर, उसका पता लिखने लगे तो आधा घंटा लगेगा। इसलिए यह सब डिटेल स्लिप में नहीं दी जाती। उनकी कोई दूसरी ब्रांच नहीं है। हां, एक जानकार है, वह उसे चलाता है। हम कोई गलत काम नहीं कर रहे। उपभोक्ता एकाउंट में पेमेंट कर सकता है। स्कैनर मौजूद रहता है। 13761 रुपये नकद देने के मामले की मुझे जानकारी नहीं है।
बिना बिल के किताबें नहीं बेची जा सकती। अगर ऐसा हो रहा है, तो गलत है। हम मामले की जांच करेंगे। फील्ड टीम को अलर्ट किया जाएगा। यहां कहीं ऐसा होता पाया गया तो संबंधित के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। उपभोक्ता भी जागरूक हों, ऐसे मामले की सूचना विभाग को अवश्य दें।
-सुरेंद्र गोदारा, ईटीओ, डबवाली
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