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बैठक में हंगामे के चार दिन बाद नगर निगम कमिश्नर का तबादला

आयुक्त के तबादले का सबसे अधिक असर विकास कार्यो पर पड़ेगा। आम जनता की परेशानी बढ़ना तय है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 08 Mar 2021 06:11 AM (IST)Updated: Mon, 08 Mar 2021 06:11 AM (IST)
बैठक में हंगामे के चार दिन बाद नगर निगम कमिश्नर का तबादला

जागरण संवाददाता, पानीपत : नगर निगम में हुए हंगामे के चार दिन बाद निगम के आयुक्त डा. मनोज कुमार का तबादला जींद में कर दिया गया है। तीन मार्च को हुई हाउस की बैठक को उन्होंने बीच में छोड़ दिया था। उनके तबादले को इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। आयुक्त के तबादले का सबसे अधिक असर विकास कार्यो पर पड़ेगा। आम जनता की परेशानी बढ़ना तय है। कमिश्नर पद के अलावा बतौर एडीसी भी उन्हें बदल दिया गया है। अब जसप्रीत कौर एडीसी होंगी। वत्सल वशिष्ठ निगम के कमिश्नर होंगे।

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निगम में तीन दलालों की शिकायत पुलिस में पहुंच चुकी है। साथ ही पार्षद पवन गोगलिया द्वारा कर्मचारी मोनू को कथित थप्पड़ मारने का मामला भी पुलिस तक पहुंच गया। नगर निगम कर्मचारियों में भी रोष बढ़ता जा रहा है। इधर, निगम में दरार आ चुकी है। सभी पार्षद भाजपा के होने के बाद भी दो गुट बन चुके हैं। एक गुट जो बात रखता है, दूसरा गुट उसके विरोध में आ जाता है।

सीनियर डिप्टी मेयर और डिप्टी मेयर का चुनाव होने के बाद से निगम की स्थिति बदली है। डिप्टी मेयर नगर निगम की मेयर के साथ खड़े होते हैं। पार्षदों और अधिकारियों के इस पावर गेम के बीच जनता पीस रही है। आयुक्त डा. मनोज कुमार ने निगम में सुधार करने के भरसक प्रयास किए। उनके प्रयास से 25 करोड़ से अधिक प्रापर्टी टैक्स इकट्ठा हुआ है। पानीपत के इतिहास में पहली बार इतना टैक्स इकट्ठा हुआ है।

आयु्क्त के तबादले के बाद गुरुग्राम के अधिकारी को पानीपत का भी चार्ज दिया गया। वे कितना समय पानीपत को दे पाएंगे। यह देखना है। फिलहाल पार्षदों की खींचातानी का असर जनता पर पड़ना तय है।

नए आयुक्त को इन समस्याओं को जूझना होगा

1. 135 करोड़ का बजट पास करवाना

2. शहर में स्ट्रीट लाइटें लगवाना

3. हाली पार्क का बंद काम शुरू करवाना

4. प्रापर्टी आइडी, प्रापर्टी बिल ठीक करवाना

5. टैक्स की रिकवरी बढ़ाना आयुक्त का बैठक छोड़कर जाना अपमानजनक था

मेयर अवनीत कौर का कहना है कि जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी में आयुक्त का बैठक छोड़कर जाना दुर्भाग्यपूर्ण और अपमानजनक था। इससे जनप्रतिनिधियों के आत्मसम्मान को चोट लगी थी और जनता की भावनाओं का अपमान हुआ था। यद्यपि यह एक प्रशासनिक प्रक्रिया है, परंतु सरकार ने स्पष्ट संदेश दे दिया है।


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