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सफेद सच: गठबंधन की सरकार, गुटबंधन का विपक्ष, पढ़ें हरियाणा की राजनीति से जुड़ी और भी खबरें

सफेद सच राजनीति में ऐसा बहुत कुछ होता है जो अक्सर सुर्खियों में नहीं आता। आइए हरियाणा के साप्ताहिक कालम सफेद सच के जरिये राज्य की राजनीति से जुड़ी कुछ ऐसी ही चुटीली खबरों पर नजर दौड़ाते हैं।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Tue, 09 Feb 2021 12:24 PM (IST)Updated: Tue, 09 Feb 2021 12:24 PM (IST)
हरियाणा की राजनीति से जुड़ी रोचक खबरें।

हिसार [जगदीश त्रिपाठी]। विपक्ष में बैठी कांग्रेस के कुछ संजीदा नेताओं का दर्द यह है कि धुर विरोधी गठबंधन कर सरकार चला रहे हैं और हम एक ही दल के होकर गुटबंधन भी नहीं कर पा रहे हैं। वैसे कांग्रेस का कोई गुट चाहे भूपेंद्र सिंह हुड्डा का हो या प्रदेश अध्यक्ष सैलजा का, कैप्टन अजय यादव का हो या किरण चौधरी का, कुलदीप बिश्नोई  का हो या रणदीप सुरजेवाला का, सरकार के प्रति नरम रुख नहीं रखता। लेकिन भीतर ही भीतर वह अपने विरोधी गुटों के लिए अपेक्षाकृत अधिक कठोर होता है। भाजपा-जजपा की गठबंधन वाली सरकार का विरोध दिखाने वाले मौकों पर कांग्रेस के सभी गुट एकजुट जरूर दिखते हैं, लेकिन गठबंधन के नेता इसे गंभीरता से नहीं लेते। वे कहते हैं, ये गुटों का बंधन है, मजबूरी का। फिर मुस्कराते हुए कहते हैं- हर गुट का एक-दूसरे के साथ छत्तीस का आंकड़ा है जो तिरसठ का हो ही नहीं सकता।

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महम ने किया चौटाला को अभय

वैसे तो विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रह चुके पूर्व विधायक अभय चौटाला वास्तव में नाम के अनुरूप अभय रहते हैं। बिंदास बोलते हैं। जो सही लगता है, दोटूक कहते हैं। लेकिन युवावस्था में उन पर महम में उपचुनाव के दौरान हिंसा और बूथ कैप्चरिंग का आरोप लगा था। खैर, मुकदमा चला, वह बरी हो गए। एक इस्तगासा भी दायर हुआ। कोर्ट से वह भी खारिज हो गया, लेकिन महम से उनके रिश्ते सामान्य नहीं हुए। इस बीच केंद्र की तरफ तीनों कृषि कानूनों का विरोध शुरू हुआ। अभय ने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया। उसके बाद तो हर जगह उनका सम्मान होने लगा। महम ने भी उन्हेंं अभय कर दिया। अब वहां 11 फरवरी को उनका सम्मान होने जा रहा है। यह बात अलग है कि महम के कुछ नेताओं को यह रास नहीं आ रहा, लेकिन उन्हेंं भय है कि विरोध करेंगे तो दाव उलटा पड़ सकता है।

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छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी

महम ने जैसे अभय चौटाला को अभय किया वैसे ही जींद के कंडेला ने राकेश टिकैत का तिलक कर उनके पिता चौधरी महेंद्र सिह टिकैत के साथ हुई कड़वी घटना को भुला दिया। बीस साल पहले कंडेला में घासीराम नैन के नेतृत्व में किसान आंदोलनरत थे। तत्कालीन मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला ने किसानों को मनाने के लिए महेंद्र सिंह टिकैत से आग्रह किया। टिकैत कंडेला पहुंचे, लेकिन किसानों ने उनकी एक न सुनी थी। उनके साथ हाथापाई तक हुई। वाहन क्षतिग्रस्त कर दिया। मजबूरन टिकैत को वहां से निकलना पड़ा था, लेकिन राकेश टिकैत के आंसू क्या टपके, कंडेला पिघल गया। राकेश के सम्मान में हुई पंचायत में बंपर भीड़ हुई। टिकैत जब मंच पर पहुंचे तो मंच ही टूट गया। खैर, इससे क्या होता है, राकेश पिता के अपमान को तो भूल ही गए, कंडेला ने भी उन्हेंं अपना लिया। ठीक भी है-छोड़ो कल की बातें, कल की बात पुरानी।

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बुरे फंसे व्यापारी नेता

वैसे नेता तो वह व्यापारियों के हैं, लेकिन कांग्रेस में भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी मिली हुई है। भूपेंद्र सिंह हुड्डा के पहले मुख्यमंत्री काल में उनका व्यापारी नेता के रूप में उदय हुआ। दस वर्ष हुड्डा के साथ रहे। फिर भाजपाई हो गए। लेकिन सत्तासुख नहीं मिला तो फिर घर वापसी कर ली। अब कांग्रेस में हैं तो कृषि सुधार कानूनों का विरोध करना ही है। एक दिन धरनास्थल पर पहुंच गए। वहां मंच से पहले तो एक वक्ता ने कहा-चार वैश्य देश को लूट रहे हैं। वैसे उसने वैश्य की जगह देसज शब्द का इस्तेमाल किया था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, केंद्रीय मंत्री अमित शाह और अंबानी-अदानी के नाम भी गिनाए। उसके बाद जो भी मंच पर आया, वह किसी का नाम लेने के बजाय सीधे वैश्यों पर आक्रमण करता रहा। अब नेता जी वैश्य। बुरे फंसे। उठकर जाते तो लोग बुरा मान जाते और आगे सुनने में डर लग रहा था।

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