आसान नहीं है हरियाणा में नगर निगमों को स्वायत्त संस्था बनाना, फिर भी कवायद में जुटी सरकार
हरियाणा सरकार राज्य के नगर निगमों को स्वायत्त संस्था बनाने की कवायद में जुटी हुई है। लेकिन नगर निगमों को स्वयत्तशासी बनाना आसान नहीं है।
नई दिल्ली, [बिजेंद्र बंसल]। हरियाणा की मनोहरलाल सरकार राज्य में नगर निगमों को स्वायत्त संस्था बनाना चाहती है और इनको शहरी निकाय विभाग से अलग करने की तैयारी में बताई जाती है। सरकार इसके लिए कवायद में जुटी हुई है। इसके बावजूद नगर निगमों को स्वायत्त संस्था बनाना इतना आसान नहीं है। इसके कई कारण हैं। सबसे अहम कारण है कि नगर निगम एक्ट-1994 के तहत अभी तक निगम सदन के अधिकारों को अमलीजामा पहनाने वाले बिजनेस बायलॉज ही नहीं बने हैं।
नगर निगम एक्ट बनने के 26 साल बाद भी नहीं बने हैं बिजनेस बायलॉज
हरियाणा का सबसे पहला नगर निगम फरीदाबाद में बना था। 26 साल पहले 1994 में तब नगर निगम एक्ट बनाने का काम भी तत्कालीन शहरी स्थानीय निकाय मंत्री एसी चौधरी ने किया था। एसी चौधरी के साथ तत्कालीन सरकार में राज्यमंत्री धर्मबीर गाबा ने भी इस एक्ट को बनाने में सहयोग किया था।
खुद एसी चौधरी मानते हैं कि बिना बिजनेस बायलॉज के नगर निगम को स्वायत्त संस्था बनाना आसान नहीं है। इतना ही नहीं चौधरी तो यह भी कहते हैं कि मौजूदा भाजपा सरकार बेशक नगर निगम को भरपूर अधिकार दे दे, मगर इस आधार को कतई स्वीकार नहीं किया जाएगा कि राज्य सरकार एक भी पैसे का सहयोग नगर निगम या स्थानीय निकाय संस्थाओं को नहीं करेगी।
एसी चौधरी के अनुसार, जिस तरह केंद्र सरकार अपने खजाने से राज्यों को विकास के लिए धनराशि देती है उसी तरह राज्य सरकारों को भी नगर निगम के विकास के लिए धनराशि तो देनी ही होगी। बता दें, नगर निगम को स्वायत्त संस्था बनाने के लिए मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने आज चंडीगढ़ में अपने निवास पर राज्य के सभी 10 नगर निगम के आयुक्त और मेयरों को बुलाया हुआ है।
इस बैठक में न सिर्फ नगर निगम की आय बढ़ाने बल्कि चुने हुए प्रतिनिधियों को ज्यादा अधिकार देने के विषयों पर मंथन होगा। हरियाणा के पहले नगर निगम के मेयर बने सूबेदार सुमन भी कहते हैं कि मेयर का सीधे चुनाव से उनके व पार्षदों के अधिकारों में भी इजाफा होगा।
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'' राज्य सरकार यह सोच रही है कि नगर निगम की आय किस तरह बढ़े, यह सबसे अच्छी बात है। मैं यह बता देना चाहता हूं कि प्रदेश में शहरी स्थानीय निकाय संस्थाओं की हालत तब से खराब हुई है जब से 1996 में भाजपा-हविपा सरकार ने चुंगी खत्म कर दी और इसके विकल्प के रूप में निकाय संस्थाओं को आमदनी का कोई भी संसाधन नहीं दिया। इसलिए राज्य सरकार को चुंगी के रूप में होने वाली आय जितनी राशि तो प्रत्येक स्थानीय निकाय संस्था को देनी ही चाहिए। अन्यथा राज्य सरकार अपनी कर वसूली में से हिस्सा निकाय संस्था को दे।
- सूबेदार सुमन, पूर्व मेयर, फरीदाबाद।
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'' नगर निगम या अन्य स्थानीय निकाय बिना राज्य सरकार के सहयोग के नहीं चल सकते। मैं खुद मुख्यमंत्री मनोहर लाल को इस विषय पर कुछ सुझाव देना चाहता हूं। मेरा मानना है कि मेयर या चुनी हुई टीम को प्रशासनिक अधिकारियों से ज्यादा अधिकार दिए जाने चाहिए मगर राज्य सरकार को निगम की स्थायी आमदनी के लिए कुछ व्यवस्था करनी चाहिए। चुंगी हटने के बाद निश्चित तौर पर स्थानीय निकाय संस्थाओं की आर्थिक हालत पर फर्क पड़ा है।
- एसी चौधरी, पूर्व शहरी स्थानीय निकाय मंत्री, हरियाणा।
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