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अशोक अरोड़ा के लिए फिर से पार्टी संविधान बदलेगा इनेलो

पंजाबी समुदाय का प्रतिनिधित्व कर रहे अरोड़ा की इनेलो अध्यक्ष पद पर सातवीं बार ताजपोशी होगी। इसके लिए इनेलो पार्टी संशोधन की तैयारी में है।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sat, 23 Jun 2018 12:10 PM (IST)Updated: Sun, 24 Jun 2018 08:31 PM (IST)
अशोक अरोड़ा के लिए फिर से पार्टी संविधान बदलेगा इनेलो
अशोक अरोड़ा के लिए फिर से पार्टी संविधान बदलेगा इनेलो

चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा के प्रमुख विपक्षी दल इनेलो के पिछले 14 साल से प्रदेश अध्यक्ष पूर्व स्पीकर अशोक अरोड़ा की एक बार फिर इसी पद पर ताजपोशी संभव है। अरोड़ा को सातवीं बार अध्यक्ष बनाने के लिए इनेलो पार्टी के संविधान में फिर से संशोधन करने की तैयारी में है। इसके लिए कागजी प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

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हरियाणा की थानेसर (कुरुक्षेत्र) विधानसभा सीट से चार बार विधायक रह चुके अशोक अरोड़ा पूर्व मुख्यमंत्री ओमप्रकाश चौटाला, डॉ. अजय सिंह चौटाला और विपक्ष के नेता अभय सिंह चौटाला के सबसे विश्वासपात्रों में हैैं। चौटाला सरकार में परिवहन मंत्री रहने के बाद अरोड़ा विधानसभा स्पीकर भी रह चुके। गैर जाट खासकर पंजाबी बिरादरी में उनकी अच्छी पकड़ है।

जेबीटी शिक्षक भर्ती मामले में चौटाला और अजय सिंह के जेल जाने के बाद अशोक अरोड़ा ने जिस तरह से अभय चौटाला का साथ दिया और पार्टी को मजबूती के साथ खड़ा करने में अहम भूमिका निभाई, उसके मद्देनजर उन्हें फिर से पार्टी की कमान सौंपने की पूरी तैयारी है। पैरोल पर आए इनेलो सुप्रीमो ओमप्रकाश चौटाला भी अरोड़ा की ताजपोशी पर मुहर लगा चुके हैं।

2004 में पहली बार बने थे प्रदेश अध्यक्ष

अशोक अरोड़ा जून 2004 में पहली बार प्रदेश अध्यक्ष बने थे। इनेलो के पार्टी संविधान में प्रावधान था कि अध्यक्ष पद पर कोई भी व्यक्ति दो साल रह सकता है। फिर इसे बदलकर दो बार किया गया। अरोड़ा के लिए ही पूर्व में पार्टी संविधान बदलकर प्रावधान किया गया था कि कोई भी व्यक्ति छह बार तक प्रदेश अध्यक्ष रह सकता है, लेकिन अब संविधान में यह व्यवस्था की जा रही है कि कोई भी व्यक्ति कितनी बार भी अध्यक्ष रह सकता है।

वफादारी के साथ ही गैर जाट मतों पर भी पार्टी की नजर

अशोक अरोड़ा की देवीलाल परिवार से पुरानी नजदीकियां हैैं। पार्टी का शीर्ष नेतृत्व जाट समाज का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे में अशोक अरोड़ा के जरिये पार्टी गैर जाट मतों पर अपनी पकड़ मजबूत रखना चाहती है। पार्टी के पास दलित, सिख और पिछड़े नेताओं की भी लंबी फेहरिस्त है।

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