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Haryana News: वृद्ध मां और दिव्यांग बहन को छोड़ने की पति से उम्मीद करना पत्नी की क्रूरता- हाईकोर्ट

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab Haryana High Court) ने तलाक के आदेश को जारी करते हुए बड़ी ही अहम बात कही है। हाईकोर्ट ने कहा कि वृद्ध मां और दिव्यांग बहन को छोड़ने की पति से उम्मीद करना पत्नी की क्रूरता है। इसके साथ ही तलाक के आदेश को चुनौती देने वाली पत्नी की याचिका को कोर्ट ने खारिज कर दिया है।

By Anurag Aggarwa Edited By: Deepak Saxena Published: Tue, 07 May 2024 10:03 PM (IST)Updated: Tue, 07 May 2024 10:03 PM (IST)
हाईकोर्ट ने तलाक याचिका पर दी अपनी प्रतिक्रिया (फाइल फोटो)।

राज्य ब्यूरो, चंडीगढ़। हिंदू विवाह अधिनियम के तहत तलाक के आदेश को चुनौती देने वाली पत्नी की याचिका को पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि अपने पति से 75 वर्षीय वृद्ध मां और मानसिक रूप से कमजोर बहन को लावारिस छोड़ने की अपेक्षा रखना पत्नी की क्रूरता है।

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बूढ़ी सास और दिव्यांग ननद के साथ रहने को तैयार नहीं पत्नी

याचिका दाखिल करते हुए हरियाणा निवासी पत्नी ने हाईकोर्ट को बताया कि उसका विवाह 1999 में हुआ था और इसके बाद दोनों के बीच रिश्ते बिगड़ने लगे। 2016 में याची के पति ने फैमिली कोर्ट में तलाक के लिए आवेदन कर दिया था। 2019 में फैमिली कोर्ट ने याची के पति के हक में फैसला सुनाते हुए तलाक का आदेश दिया था। याची ने बताया कि वह अपने पति से अलग अपनी दो बेटियों के साथ 2016 से रह रही है।

2016 से अलग रह रहे पति-पत्नी

हाईकोर्ट ने कहा कि पति-पत्नी 2016 से अलग रह रहे हैं और इस दौरान कभी उनके रिश्ते सुधरे नहीं, ऐसे में यह उम्मीद नहीं है कि यदि वह साथ रहें तो सामान्य वैवाहिक जीवन जी पाएंगे। याची अपनी बूढ़ी सास और मानसिक रूप से विक्षिप्त ननद के साथ रहने को तैयार नहीं है और अपने पति से अपेक्षा रखती है कि वह अपनी मां और बहन को छोड़ दे, जो क्रूरता है।

यह मानने का हर कारण मौजूद है कि याची व उसके पति का वैवाहिक रिश्ता भावनात्मक रूप से खत्म हो चुका है। पत्नी अपने कारणों से अलग रहना चाहती है, अन्यथा वह पति के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश कर सकती थी।

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हाईकोर्ट ने कही ये बात

हाईकोर्ट ने कहा, ऐसा प्रतीत होता है कि पत्नी को दांपत्य सुख में कोई रुचि नहीं है। यह स्पष्ट है कि दोनों पक्षों के बीच विवाह विफल हो गया है और वैवाहिक गठबंधन में सुधार नहीं हो सकता। यदि तलाक रद कर दिया जाता है तो यह उन्हें आगे एक साथ रहने के लिए मजबूर करने जैसा होगा जो मानसिक तनाव और क्रूरता को कायम रखने के बराबर होगा।

स्थायी गुजारा भत्ता के लिए देने होंगे पांच लाख रुपये

इसके अलावा तलाक को बरकरार रखते हुए कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने महिला को कोई गुजारा भत्ता नहीं दिया है। ऐसे में पत्नी के लिए स्थायी गुजारा भत्ता का दावा करने का अधिकार देते हुए हाईकोर्ट ने पति को तीन महीने के भीतर अंतरिम स्थायी गुजारा भत्ता के लिए पांच लाख रुपये का भुगतान करने के निर्देश दिए हैं।

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