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सरकारी पैसा अपने खाते में जमा कर अफसर खा रहे मोटा ब्याज, कार्रवाई में बंधे सरकार के हाथ

अफसर सरकारी पैसा अपना खाता खोलकर उसमें जमा करवा रहे हैं। इस पर मिलने वाला मोटा ब्याज अफसर खा रहे हैं। लेकिन, सरकार कार्रवाई नहीं कर पा रही।

By Kamlesh BhattEdited By: Published: Sat, 31 Mar 2018 12:29 PM (IST)Updated: Sun, 01 Apr 2018 04:36 PM (IST)
सरकारी पैसा अपने खाते में जमा कर अफसर खा रहे मोटा ब्याज, कार्रवाई में बंधे सरकार के हाथ
सरकारी पैसा अपने खाते में जमा कर अफसर खा रहे मोटा ब्याज, कार्रवाई में बंधे सरकार के हाथ

चंडीगढ़ [अनुराग अग्रवाल]। हरियाणा में सरकारी विभागाध्यक्षों द्वारा अपने खुद के नाम से बैंक खाते खोलने का कोई नियम आज तक नहीं बना है। इसके बावजूद विभागाध्यक्ष बरसों से अपने नाम से बैंक खाते खुलवाकर उनमें जमा सरकारी रकम पर मोटा ब्याज खा आ रहे हैं। पिछली हुड्डा सरकार में यह खेल खूब हुआ, जो मौजूदा मनोहर सरकार के कार्यकाल में भी जारी रहा।

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वित्तीय अनियमितताओं के उजागर होने के बाद पहली बार इसी सरकार ने अफसरों के तमाम खातों को बंद कराने की पहल की है, लेकिन नियमों के विपरीत जाकर खाते खुलवाने वाले ऐसे तमाम अधिकारियों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज कराने में सरकार कतरा रही है। दिलचस्प यह है कि मौजूदा सरकार और पिछली सरकार दोनों के वित्तमंत्री सेना के कैप्टन रह चुके हैं। अफसरों द्वारा किए जा रहे इस गड़बड़झाले की जिम्मेदारी दोनों कैप्टन (अभिमन्यु और अजय यादव) एक-दूसरे पर डाल रहे हैं।

हरियाणा में 85 सरकारी विभाग और 83 बोर्ड-निगम चल रहे हैं। बैंक अधिकारियों से मिलने वाले मोटे कमीशन तथा ब्याज के चक्कर में अधिकतर विभागाध्यक्षों ने अपने कार्यकाल में निजी नामों से बैंक खाते खुलवा लिए। यह सिलसिला लगातार चलता रहा। वित्त विभाग के सूत्रों के अनुसार ऐसे खातों की संख्या 400 से अधिक है, जो अफसरों के नाम से खोले गए, लेकिन इनमें कितनी रकम जमा थी, यह बताने के लिए विभाग के अधिकारी तैयार नहीं।

कैग (महालेखा परीक्षक एवं नियंत्रक) ने अपनी रिपोर्ट में बैंक अधिकारियों तथा सरकारी विभागाध्यक्षों के इस गोरखधंधे को उजागर किया है। नए आदेशों के तहत मौजूदा सरकार ने सभी सरकारी विभागाध्यक्षों के नाम से संचालित खाते बंद कराने के आदेश जारी कर दिए हैं। दावा यह भी किया जा रहा कि अब अधिकतर खाते बंद हो चुके हैं तथा उनकी रकम सरकारी खातों में ट्रांसफर कराई जा चुकी है।

सार्वजनिक उपक्रमों, बोर्ड एवं निगमों में यह सिस्टम अभी गति नहीं पकड़ पाया है। इस पर भी सरकार की निगाह है। हालांकि हुड्डा सरकार ने 2 दिसंबर 2011 को विभागाध्यक्ष के नाम से संचालित खातों पर आपत्ति जताते हुए उन्हें बंद करने के आदेश जारी किए। उसके बाद जून 2014 में भी ऐसे ही आदेश जारी हुए मगर उन पर अमल नहीं हुआ, साफ है कि इस काम में कहीं न कहीं सरकारी सिस्टम पूरी तरह से इनवाल्व था।

वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु ने स्पष्ट किया कि उन्होंने 9 मार्च 2018 को अपने बजट भाषण में इस बात का उल्लेख किया कि अफसरों के नाम से निजी खाते नहीं चलेंगे। उनका कहना है कि पहले क्या होता रहा, यह तो वे नहीं बता सकते, मगर अब यदि कानून में कोई प्रावधान हुआ और आदेश के बावजूद निजी खाते संचालित पाए गए तो एफआइआर की संभावनाएं तलाशी जा सकती हैं। पिछले मामलों में एफआइआर पर उन्होंने चुप्पी साध ली।

वित्त मंत्री कैप्टन अभिमन्यु से सीधी बात

दैनिक जागरण-  क्या ऐसा कोई नियम है कि सरकारी विभागाध्यक्ष अपने नाम से बैंक खाता खुलवाकर उसमें सरकारी रकम जमा करा सकते हैं?

मंत्री - ऐसा नियम न पहले कभी था और न ही अब है। जिन अफसरों ने अपने नाम से खाते खुलवाए, उन्होंने नियमों के विपरीत जाकर काम किया। हमारी जानकारी में जब यह आया तो उस पर रोक लगाने की पहल की।

दैनिक जागरण-  2 दिसंबर 2011 को शासनादेश जारी होता है कि निजी नाम से संचालित खातों को बंद करा दिया जाए। शासनादेश क्यों जारी हुआ? सीधे एफआइआर दर्ज कराने के आदेश क्यों जारी नहीं किए गए?

मंत्री - मैं पिछली सरकार की बात नहीं करता। हमारी जानकारी में जब से आया, हम सख्त हो गए। सभी को निजी खाते बंद कराने के आदेश जारी हो चुके हैं तथा अधिकतर खाते अब ट्रांसफर हो चुके। जहां तक मुझे लगता है कि अब किसी सरकारी विभागाध्यक्ष का खाता उसके नाम से नहीं है।

दैनिक जागरण - 2 दिसंबर 2011 के बाद जून 2014 में फिर इसी तरह के आदेश जारी होते हैं मगर फिर भी कोई कड़ी कार्रवाई नहीं? आपने भी आदेश जारी कर दिया मगर कार्रवाई से तो अफसर बच ही गए?

मंत्री - मुझे लगता है कि कानून में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है कि हम एफआइआर दर्ज कर सकें। फिर भी कानूनविदों से राय ली जाएगी। यदि कानून में कोई ऐसा प्रावधान हुआ तो भविष्य में इस पर अमल होगा। अब आपका सवाल होगा कि क्या पुरानी एफआइआर दर्ज होंगी तो मेरा जवाब यही रहेगा कि आगे कुछ भी गलत नहीं होने देंगे।

दैनिक जागरण - तो यह मान लिया जाए कि सरकार (शासन) की ही रजामंदी पर अधिकारियों को निजी खातों के संचालन की अनुमति दी गई थी, जिसे बाद में शासनादेश के जरिये रद करने की रस्म निभाई जाती रही?

मंत्री- बिल्कुल पिछली सरकार में कहीं कोई न कोई बदनीयती रही होगी। हमने लीकेज बंद किया है तो जाहिर है कि हमारी मंशा साफ है। अब हम सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों, बोर्ड एवं निगमों को भी वित्तीय अनुशासन में लाएंगे।

हुड्डा सरकार में वित्त मंत्री रह चुके कैप्टन अजय सिंह यादव से सीधी बातचीत

दैनिक जागरण - कैप्टन साहब, आप वित्त मंत्री रहे और आपके कार्यकाल 2011 में सरकारी अफसरों को अपने निजी नाम से बैंक खाते खुलवाने की छूट मिलती रही?

अजय यादव - आप गलत कह रहे हैं। हमने तो निजी नाम से खुले बैंक खाते बंद कराने के आदेश जारी किए थे। मैं अगर अधिक दिन इस विभाग को संभालता तो शायद तब सारे निजी खाते बंद हो चुके होते।

दैनिक जागरण - तो क्या यह मान लिया जाए कि आपका निजी खाते बंद कराने का शासनादेश सिर्फ रस्म अदायगी था?

अजय यादव - ऐसा क्यों मान लिया जाए। हमने पूरी जिम्मेदारी से आदेश जारी किया। तब काफी खाते बंद भी हुए। हो सकता है कि बाद में खुल गए होंगे। मेरे बाद भी कोई न कोई वित्त मंत्री रहा होगा। अब भाजपा सरकार के कार्यकाल में भी खाते खुले हुए हैं। कैग ने अपनी रिपोर्ट में असलियत उजागर कर दी है।

दैनिक जागरण - भाजपा सरकार के वित्त मंत्री कह रहे कि पिछली हुड्डा सरकार में जरूर कहीं न कहीं कोई खामी रही थी। तभी यह स्थिति बनी हुई है?

अजय यादव - हमारी नीयत साफ थी, तभी हमने आदेश जारी किए। समस्त बुराई को जड़ से खत्म करने में समय तो लगता ही है। पहले बिजली विभाग बिना किसी मंजूरी के खुद ही लोन ले लेता था, मगर हमने वित्त विभाग की मंजूरी के बिना लोन लेने पर रोक लगाई। यह हमारा बड़ा सुधार था। अब राज्य पर कर्जा बढ़ रहा है। सरकार उसकी अधिक चिंता करे।

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