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Kargil vijay diwas 2020: रगों में जोश भर देती है तोलोलिंग, टाइगर हिल्स व मुसको की जांबाजी की गाथा

कारगिल विजय की आज 21वीं वर्षगांठ है। इतने साल बाद भी हमारे वीर जवानोें की बेमिसाल वीरता की कहानी रगों मेें जोश भर देती है। तोलोलिंग टाइगर हिल्‍स और मुसको की यादें आज भी ताजा हैं।

By Sunil Kumar JhaEdited By: Published: Sun, 26 Jul 2020 09:47 AM (IST)Updated: Sun, 26 Jul 2020 09:47 AM (IST)
Kargil vijay diwas 2020: रगों में जोश भर देती है तोलोलिंग, टाइगर हिल्स व मुसको की जांबाजी की गाथा
Kargil vijay diwas 2020: रगों में जोश भर देती है तोलोलिंग, टाइगर हिल्स व मुसको की जांबाजी की गाथा

चंडीगढ़, [अनुराग अग्रवाल]। Kargil vijay diwas 2020: 21 साल बीत गए। कारगिल युद्ध के दौरान तोलोलिंग, टाइगर हिल्स और मुसको क्षेत्र में हुई तीन मुख्य लड़ाइयों में हरियाणा के जवानों की जांबाजी के किस्से चौपालों पर ऐसे सुनाए जाते हैं जैसे कि कल की ही बात हो। उस लड़ाई में शामिल रहे अधिकतर जवान अब रिटायर हो चुके, लेकिन जब वे शहादत पाने वाले शूरवीरों के पराक्रम की दास्तां सुनाते हैं तो बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।

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कारगिल युद्ध में पांच परमवीर चक्र, एक महावीर चक्र व14 सेना मेडल हैं हरियाणा के शूरवीरों की वीरता के साक्षी

ऑपरेशन विजय में पूरे देश में कुल 527 सैनिक शहीद हुए थे, जिनमें 74 अकेले हरियाणा के थे। इस लड़ाई में प्रदेश के जवानों को मिले पांच परमवीर चक्र, एक महावीर चक्र और 14 सेना मेडल इस बात के साक्षी हैं कि कैसे शौर्य की पराकाष्ठा दिखाते हुए मां भारती के लालों ने पाकिस्तानी सैनिकों और घुसपैठियों को खदेड़ा।  

हिमालय से भी ऊंचा साहस था हरियाणा के इन जांबाजों का

वर्ष 1999 में बर्फ से ढकी पहाडिय़ों पर दो महीने चली जंग में शहीद हुए अधिकतर जवान ऐसे थे, जिन्होंने अपने जीवन के 30 सावन भी नहीं देखे थे। इनमें सबसे कम उम्र के थे अंबाला के गांव कांसापुर के मनजीत सिंह, जिन्होंने 17 साल की उम्र में ही सेना में भर्ती होने के बाद डेढ़ साल के भीतर ही शहादत हासिल कर ली थी।

किसान गुरचरण सिंह के घर जन्मे आठ सिख रेजीमेंट अल्फा कंपनी के इस जवान ने 7 जून 1999 को टाइगर हिल में कई दुश्मनों को ढेर किया। गोलियों से छलनी होने के बावजूद वह अंतिम सांस तक लड़ते रहे। इसी तरह नारनौंद के गांव मिलकपुर के पवित्र सिंह ने बुरी तरह जख्मी होने के बावजूद पाकिस्तान के 11 जवानों को ढेर कर दिया और फिर वीरगति को प्राप्त हो गए।

 

सिरसा के तरकांवाली के कृष्ण कुमार ने टाइगर हिल्स पर आठ पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया। भीषण गोलीबारी और भारी बर्फबारी के कारण उनका पाॢथव शरीर शहादत के 45 दिन बाद मिल पाया था। महेंद्रगढ़ के गांव गुवानी के सूबेदार लाल सिंह द्रास सेक्टर में 11 दिन की जिद्दोजहद के बाद 18 हजार फीट ऊंची चोटी को आजाद कराने के लिए 17 हजार फीट तक पहुंच गए थे।

अचानक दुश्मन की गोलियों ने सूबेदार लाल सिंह की सीना छलनी कर दिया और वे शहीद हो गए। झज्जर के जिंदरान के शहीद बलवान हों या फिर गांव नेवी के महावीर सिंह वर्मा या फिर समुंदर और कृष्ण लाल, सभी ने दुश्मनों के छक्के छुड़ा दिए।

भारत की सेना में हर दसवां जवान हरियाणा का

कारगिल की लड़ाई के बाद से सेना में हरियाणा का प्रतिनिधित्व लगातार बढ़ा है। आज सेना में हर दसवां जवान हरियाणा का है। यह स्थिति तब है, जब हरियाणा की आबादी देश की आबादी का कुल दो फीसदी है। पाकिस्तान और चीन से तीन निर्णायक लड़ाइयों के बाद कारगिल युद्ध ने एक बार फिर साबित किया कि हरियाणा वीरों की जननी है। हर साल 26 जुलाई को शहीदों की यादें सभी की आंखें नम करती हैं। शहीदों के परिवारों को उनके बिना आज भी सब कुछ सूना लगता है, लेकिन गर्व है कि उनके बहादुर बेटे ने भारत माता की रक्षा करते हुए अपने प्राणों का बलिदान दिया।

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