सफेद सच: विज के बोल- ऊंचाई पर मेरी पतंग, मेरे देश की जीडीपी, पढ़ें हरियाणा की और भी रोचक खबरें
कई ऐसी खबरें या टिप्पणियां होती हैं जो अक्सर सुर्खियों में नहीं आती लेकिन इनके बहुत कुछ राजनीतिक मायने निकलते हैं। आइए हरियाणा के साप्ताहिक कालम सफेद सच के तहत राज्य की कुछ ऐसी ही रोचक खबरों पर नजर डालते हैं।
हिसार [जगदीश त्रिपाठी]। अनिल विज। अक्खड़ हैैंं। फक्कड़ हैैं। देशभर के प्रदेशों के स्वास्थ्य मंत्रियों में सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य मंत्री हैं, कुछ दिन बाद शायद सर्वश्रेष्ठ गृह मंत्री का खिताब भी मिल जाए। पतंगबाजी का शौक बचपन से है, लेकिन जब एक हाथ में डंडा, दूसरे में इम्युनिटी बूस्टर देने की जिम्मेदारी हो तो पतंग उड़ाने का समय कहां मिलता है। हां त्योहारों की बात अलग है और वसंत पंचमी को उन्होंने दोस्तों के साथ पतंगबाजी कर ही ली। ट्वीट किया- हमारी पतंग ऊंचाई पर है और हमारे देश की जीडीपी भी। जाहिर है उनका यह ट्वीट कांग्रेसियों को जलाने के लिए था। वैसे यह तो कुछ नहीं। वह राहुल-सोनिया और प्रियंका पर भयंकर ट्वीट प्रहार करते हैं। कृषि कानून सुधार विरोधी आंदोलन को गलत दिशा में ले जाने का प्रयास करने वाली दिशा के बारे में ट्वीट किया तो ट्विटर ने विज को चेतावनी जारी कर दी, लेकिन बाद में बैकफुट पर आ गया।
दिल के अरमां पटरियों पर बह गए
कृषि सुधार कानूनों के विरोध में आंदोलनकारी संगठनों के नेताओं ने 18 फरवरी को रेल यातायात बाधित करने की घोषणा की। दोपहर 12 बजे से आंदोलनकारियों को पटरियों पर बैठना था, लेकिन नेतागण दूर ही रहे। पेशबंदी करते हुए उन्होंने पहले ही कह दिया था कि स्थानीय लोग पटरियों पर घरना देंगे। उन्हेंं डर था कि यदि जरा भी तोड़फोड़ हुई तो उनके लिए जवाब देना मुश्किल हो जाएगा। रेल पटरियों पर पहुंचे लोगों ने भी सोचा कि एकाध ट्रेन आएगी। रुकेगी। इंजन पर खड़े होकर फोटो खिंचवा लेंगे और अखबारों में फोटो छपवा लेंगे। लेकिन उनके दिल के अरमान पटरियों पर बह गए। रेलवे ने उस दौरान ट्रेनें स्टेशनों पर ही रोके रखीं। बाद में कुछ स्टेशन पर पहुंच गए, सोचा ट्रेन के साथ ली गई फोटो ट्राफी की तरह घर में सजाएंगे, लेकिन सबकी किस्मत रूबानी दिलैक नहीं होती, जब तक वे पहुंचे ट्रेन स्टेशन छोड़ चुकी थी।
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बिल आए न दिल घबराए
सरकारी विभागों पर कई सौ करोड़ का बिजली का बिल बकाया है। अब ऊर्जा विभाग उन बिलों की वसूली में अपनी ऊर्जा का अपव्यय कर रहा है। वैसे यह परंपरा है। नोटिस मिलेगा। पत्रावली ऊपर जाएगी। तब राशि स्वीकृत होगी। सरकार को भी कोई खास फर्क नहीं पड़ता। इस जेब का पैसा उस जेब में ही तो जाना है। लेकिन कोई यह नहीं सोचता कि ऐसी व्यवस्था क्यों न बना दी जाए कि शासकीय विभागों के खाते से तय तिथि पर बिल का पैसा बिजली निगमों के खाते में ट्रांसफर हो जाए। वैसे ऊर्जा विभाग नोटिस देकर या कोर्ट की धमकी देकर उनसे वसूली कर लेगा, लेकिन उनका क्या जो कुंडी मारकर बिजली जलाते हैं। वे मस्त हैं। बिल आए न दिल घबराए। बिजली वाले भी अन्जान बने रहते हैं, क्योंकि थानेदार साहब खेत का बदला मेड़ पर ले लेंगे। न जाने कब किसकी बाइक से अफीम बरामद हो जाए।
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कि पैसा बोलता है
हरियाणा में कृषि सुधार कानूनों के विरोध में धरने मुख्य रूप से सिंघु बार्डर पर और टीकरी बार्डर पर चल रहे हैं। लेकिन आंदोलन के नेतृत्व का दावा करने वाले नेता सिंघु बार्डर पर रहते हैं। वहां सुविधाएं भी अधिक हैं। वैसे टीकरी बार्डर पर भी जरूरत की वस्तुएं उपलब्ध हैं, लेकिन सिंघु बार्डर जैसी चमक-दमक यहां नहीं है। इसका कारण बताते हुए हरियाणा के किसान कहते हैं कि पैसा बोलता है। वह बताते हैं- सिंघु बार्डर पर पंजाब से जो लोग आ रहे हैं वे जमींदार टाइप के हैं। बड़ी जोत वाले हैं। वे खेती करते नहीं कराते हैं। खुद आलीशान भवनों में रहते हैं। दूसरी तरफ टीकरी बार्डर पर आने वाले पंजाब के उसे इलाके से आते हैं जो उतना संपन्न नहीं है, वे कम जोत वाले हैं। अंतर स्वाभाविक है। हालांकि अब देखा-देखी टीकरी बार्डर वालों ने भी सिंघु बार्डर वालों से प्रतिस्पर्धा शुरू कर दी है।
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