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सृजनात्मक कौशल विकसित करने के लिए प्रतिभागियों ने गुर सीखे

सांस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र नई दिल्ली एवं विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 451वें ओरिएंटेशन कोर्स में सृजनात्मक कौशल विकसित करने के लिए तीन प्रकार के समूहों में अलग-अलग विषयों का चयन करके प्रयोगात्मक प्रशिक्षण दिया गया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 05 Oct 2019 07:00 AM (IST)Updated: Sat, 05 Oct 2019 08:23 AM (IST)
सृजनात्मक कौशल विकसित करने के लिए प्रतिभागियों ने गुर सीखे

जागरण संवाददाता, कुरुक्षेत्र: सांस्कृतिक स्त्रोत एवं प्रशिक्षण केंद्र नई दिल्ली एवं विद्या भारती संस्कृति शिक्षा संस्थान के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 451वें ओरिएंटेशन कोर्स में सृजनात्मक कौशल विकसित करने के लिए तीन प्रकार के समूहों में अलग-अलग विषयों का चयन करके प्रयोगात्मक प्रशिक्षण दिया गया। मृदाकला के समूह में चाक व हाथों की सहायता से मिट्टी द्वारा विभिन्न प्रकार की वस्तुएं बनाना सिखाया गया। दूसरे समूह में कलाकार सीसीआरटी की सीनियर फेलोशिप प्राप्त वीपी वर्मा ने चित्रकला का प्रशिक्षण गया। इसमें कक्षाकक्ष में शिक्षण के दौरान ब्लैकबोर्ड पर चित्र बनाना, साथ ही सहायक सामग्री के उपयोग में आने वाली कलाकृतियों में रंग भरने का प्रशिक्षण प्रदान किया गया।

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तीसरे समूह में मल्टी आर्ट कल्चरल सैंटर से फाइन आर्ट समन्वयक सीमा कांबोज ने बेकार की वस्तुओं से सुंदर वस्तुएं बनाकर प्रयोग में लाना बताया। उन्होंने शिक्षकों को कई तरह के फ्लावर पोट बनाना, कपड़े व कागज के फ्लावर, पैन-पैंसिल बॉक्स, थर्माेकोल के गिलास, धागों का झूमर बनाना सिखाया। उन्होंने बताया कि किस प्रकार घर में पड़े वेस्ट मटीरियल से अच्छी कलाकृतियां एवं प्रयोग में लाई जाने वाली वस्तुएं तैयार की जा सकती हैं। प्रतिभागियों ने विद्या भारती के संस्कृति एवं सरस्वती संग्रहालय का अवलोकन किया। साहित्य प्रदर्शनी लगाई गई, जिसमें संस्थान की 124 पुस्तकें एवं सहयोगी प्रकाशन की 159 पुस्तकों तथा 122 चित्रों का प्रतिभागियों ने अवलोकन किया। प्रतिभागियों ने पुस्तकालय का अवलोकन किया, जिसमें 14 हजार से अधिक पुस्तकों का संग्रह है। संस्थान के निदेशक डॉ.रामेंद्र सिंह ने कहा कि जन समुदाय के सदस्यों के साथ, विशेषकर युवा पीढ़ी द्वारा अपनी सांस्कृतिक विरासत तथा विविध प्रकार की भौगोलिक विशिष्टताओं व उन प्रजातीय, धार्मिक, भाषायी समूहों के बारे में समझा जाना जरूरी है, जिन्होंने हमारी संस्कृति की समृद्धि और सौंदर्यात्मक गुणवत्ता को बढ़ाने में योगदान दिया है। यही जागरूकता संपूर्ण मानव जाति के लिए प्रेम की भावना संजोनी तथा अच्छे नागरिक बनाने में मदद करती है।


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