'नई पीढ़ी सोशल मीडिया के छिछले भंवर में उलझी है, अपनी भाषाओं की नींव से दूर न हों'
कविता व शायरी की समझ किताबें पढ़ने से आती है और आज की पीढ़ी सोशल मीडिया के छिछले भंवर में इस कदर उलझी है कि साहित्य की गहराइयों तक पहुंच ही नहीं पाती।
गुरुग्राम [प्रियंका दुबे मेहता]। प्रिंट मीडिया व साहित्य से दूरी बना लेने और भाषागत कमजोरी नौजवानों को जड़ों से दूर कर रही है। यही वजह है कि नौजवान अपनी तहजीब से कटता जा रहा है। यह कहना है जाने-माने शायर राहत इंदौरी का।
दैनिक जागरण की तरफ से आयोजित कवि सम्मेलन में शामिल होने गुरुग्राम आए राहत इंदौरी से बातचीत में नई पीढ़ी में कविताओं, शायरी, नज्मों व किताबों के प्रति जुड़ाव घटने की कसक उनकी बातों में साफ नजर आ रही थी।
साहित्य की गहराइयों तक नहीं है पहुंच
राहत के अनुसार कि कविता व शायरी की समझ किताबें पढ़ने से आती है और आज की पीढ़ी सोशल मीडिया के छिछले भंवर में इस कदर उलझी है कि साहित्य की गहराइयों तक पहुंच ही नहीं पाती। राहत कहते हैं कि उन्हें अफसोस होता है कि साहित्य की महिमा व भाषा की मजबूती को देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग जुबानों को लेकर चलने वाली राजनीति ने कम किया है। साहित्य को वह स्थान नहीं मिल पाया जिसका वह हकदार है।
प्रशंसकों के प्यार से अभिभूत
राहत इंदौरी ने कहा कि गुरुग्राम जैसे आधुनिकता पसंद शहर के लोगों में शायरी की इतनी कद्र व समझ को देखकर हैरानी हुई और खुशी है कि इस वैभसंपन्न शहर के श्रोताओं के मन में शायरों के लिए इतनी इज्जत है। उन्होंने कहा कि उनसे पहले उनकी शायरी यहां तक पहुंच गई, यह बहुत कम जगहों पर देखने को मिलता है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से दैनिक जागरण लोगों को साहित्य से जोड़ने का जो काम कर रहा है, उससे निश्चित रूप से बदलाव आएगा व युवा भी इससे जुड़ेंगे।
आज के संगीत में नहीं है गहराई
राहत के मुताबिक आज की फिल्मों में संगीत व डायलॉग्स में वह गहराई ही नहीं तो युवा कहां से अच्छे साहित्य को समझेगा। राहत का कहना है कि फिल्में भाषा की गरिमा को गिरा रही हैं। इनका साहित्य, हिंदी व उर्दू से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं रहा है। आज अच्छे सुर, ताल व शब्दों की जगह 'ढिंकाचिका-ढिंकाचिका' ने ले ली है। ऐसे में साहित्य संवर्धन के लिए अगर कोई माध्यम बचा है तो वह है प्रिंट मीडिया।
सरकार को करनी होंगी कोशिशें
राहत का कहना है कि ऐसा नहीं है कि अब नए व अच्छे शायर या कवि नहीं हो रहे हैं। बिहार, मध्यप्रदेश व उत्तर प्रदेश के कुछ नौजवान शायर बेहतरीन लिख रहे हैं, लेकिन उन्हें पहचान नहीं मिल पा रही है। सरकार के स्तर पर साहित्य को बचाने के लिए कोशिशें नहीं की गईं तो वह दिन दूर नहीं जब शायर व शायरी बीते जमाने की बात हो जाएगी।
संस्कारों के लिए पढ़ने की आदत डालें
राहत कहते हैं कि अच्छी किताबें व अखबार पढ़ने से नई पीढ़ी में संस्कार डाले जा सकते हैं। ऐसे में स्कूलों व माता-पिता को बच्चों में पढ़ने की आदत डालनी चाहिए। अंग्रेजी पढ़ाएं लेकिन अपनी भाषाओं की नींव से दूर न हों। हिंदी, संस्कृत व उर्दू जैसी भाषाओं के साहित्य विचारों व व्यक्तित्व में गहराई लाते हैं।
चुनिंदा फिल्मों में ही करते हैं काम
राहत इंदौरी ने हाल ही में बेगमजान फिल्म के लिए गाने लिखे हैं। इसके अलावा विधु विनोद चोपड़ा की कश्मीरी पंडितों पर बन रही फिल्म के लिए भी गाने लिख रहे हैं। राहत के मुताबिक वो चुनिंदा कहानी पर आधारित फिल्मों के लिए ही काम करना पसंद करते हैं।
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