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हरियाणा की हवा में उत्तर-पूर्व और दक्षिण भारत की खुशबू लेकर आई कई बहुएं

हरियाणा की हवा में उत्तर-पूर्व और दक्षिण भारत की खुशबू लेकर आई हैं कई हरियाणा की हवा में उत्तर-पूर्व और दक्षिण भारत की खुशबू लेकर आई कई बहुएं। वे भिन्न-भिन्न संस्कृतियों और रहन-सहन आने के बावजूद अपनी मूल संस्कृति के सम्मिश्रण से इसे अधिक समृद्ध भी बना रही हैं...

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sun, 01 Nov 2020 07:32 AM (IST)Updated: Sun, 01 Nov 2020 10:37 AM (IST)
हरियाणा की हवा में उत्तर-पूर्व और दक्षिण भारत की खुशबू लेकर आई कई बहुएं
विशिष्ट संस्कृति का प्रदेश है हरियाणा और अब इसी की धरती पर मिश्रित संस्कृति की पौध भी पनप रही

प्रियंका दुबे मेहता। विशिष्ट संस्कृति का प्रदेश है हरियाणा और अब इसी की धरती पर मिश्रित संस्कृति की पौध भी पनप रही है। जी हां, यहां देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों और दक्षिण भारत से आई बहुएं सभ्यता-संस्कृति से लेकर वहां की रसोई के स्वाद तक साझा कर रही हैं। इन बहुओं ने यहां खेतों में हंसिया चलाना और घरों में रसोई तो संभाली ही, साथ ही हरियाणा की हवा में अपनी संस्कृति की खुशबू भी बिखेरी है। हरियाणा के कई गांवों और कुछ शहरों में तो नगालैंड और असम से आई बहुओं ने संस्कृतियों का नया सम्मिश्रण तैयार किया है। यूं कहा जाए कि उन्होंने एक साझा संस्कृति ‘हसमी’ को पल्लवित किया है, तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। प्रदेश की संस्कृति में यह बहुएं अनुकूलन और बदलाव की जो तस्वीर पेश कर रही हैं, उसमें धर्म, जाति और भौगोलिक सीमाओं की लकीरें गौण साबित होती हैं।

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हरियाणवी ठुमकों में असमी नजाकत

करीब डेढ़ दशक पहले कैथल के गांव डीग में बहू बनकर आई मुनमुन हजारिका को यहां की सांस्कृतिक भिन्नता का बखूबी अंदाजा था। वैवाहिक जीवन के शुरुआती अनुभवों के बारे में मुनमुन बताती हैं कि संदीप से प्रेमविवाह करने के बाद वे ससुराल पहुंचीं तो उन्हें न तो यहां का भोजन बनाना आता था और न ही यहां के हिसाब से परिधान पहनने आते थे। उन्होंने सास की तरह परिधान पहनने शुरू किए। वक्त के साथ सलवार-सूट कब ऑल्टर होकर स्कर्ट और टॉप बन गया, उन्हें खुद भी याद नहीं। पारिवारिक आयोजनों में बिहू की नजाकत और हरियाणा के ठुमके मुनमुन को प्रशंसा दिलवाते हैं। उनकी मासूम हंसी बताती है कि कितनी सहजता से परिवार उनकी और वे परिवार और प्रदेश की संस्कृति में रच-बस गई हैं। जब कभी अपने प्रदेश की याद आती है तो वे अपने बगीचे में उन असमी पौधों से गुफ्तगू कर लेती हैं जो उनके बचपन की यादों के साथी रहे हैं। खास असम से लाए गए मधुकुलेन, लेमनग्रास, हार्टलीफ जैसे पौधे उनके बगीचे को हरा-भरा और खुशनुमा बनाते हैं तो वहीं असमी मिर्च खाने में जायका दोगुना कर देती है।

अन्नू बेटे रिक्की के साथ

त्योहार पर फ्यूजन का स्वाद

कैथल के इस परिवार में बिहू भी मनाया जाता है और मुनमुन उसी शिद्दत से सासू मां के साथ दीवाली पूजन भी करती हैं। हरियाणा की दीवाली में असम के लड्डू प्रसादस्वरूप अर्पित किए जाते हैं। मुनमुन के मुताबिक, उनकी रसोई में चावल के ज्यादा व्यंजन बनते हैं। वे समान तरीके से बनने वाली चीजों में असमी फ्यूजन करना नहीं भूलतीं। स्वाद में उम्दा होने के कारण ससुरालवालों ने इस बदलाव को सहर्ष स्वीकार किया है। नतीजतन अब परिवार में हरियाणा और असम की व्यंजन विधियों को सम्मिश्रित कर ‘हसमी’ डिशेज बनती हैं। वे गुलगुलों और मालपुए में असमी गोरपीठा, गीलापीठा, और अंगुलीपीठा का मिश्रण कर देती हैं। कढ़ी हरियाणा की, चावल असम के और तैयार हो जाता है लाजवाब स्वाद। हालांकि वे लस्सी खालिस हरियाणवी ही पसंद करती हैं क्योंकि यहां लस्सी भैंस के दूध से बनती है और असम में गाय के दूध का अधिक इस्तेमाल होता है।

ओलेविया सिंह सोन पति दीपक अत्री के साथ

भा गए भल्ले, जंच गया भात

गुरुग्राम के दीपक अत्री की पत्नी नगालैंड की ओलेविया सिंह सोन को यहां के दही-भल्ले और पनीर बहुत पसंद है। वे अपनी डिशेज में इन चीजों को जरूर शामिल करती हैं। हरियाणा के हिसार जिले के गांव सुलखनी में रमेश सांगा की पत्नी आयतु यहां से 2,300 किलोमीटर दूर सोनितपुर (असम)के मिस्सामारी गांव की रहने वाली हैं। अब आयतु का हरियाणवी नाम अन्नू हैं। परिवार में असमी व्यंजन बनाए जाते हैं। मीठा भात, मळ्र्गा-चावल, भिगोए चने को पीसकर तीखी मिर्च, नींबू, नमक डालकर पकौड़ी, सर्दियों में सप्ताह में दो बार मछली बनाना घर की परंपरा हो गई है। इसके अलावा दूध-दही, लस्सी, कढ़ी, प्याज-टमाटर-लहसुन की चटनी, हलवा आदि भी बनता है। हरियाणा आकर ओलेविया ने अपने खानपान में बदलाव कर लियार्। ंहदी उन्हें पहले से आती थी और खानपान में उन्होंने कढ़ी-चावल, लस्सी, पनीर आदि खाना और बनाना शुरू कर दिया। इसी तरह दीपक पर भी नगालैंड के व्यंजनों का प्रभाव पड़ा है। अब वे उत्तर-पूर्व में ग्रीन गोल्ड कहे जाने वाले बीन योंचक को फरमेंटेड सोया के साथ साइड डिश के तौर पर खाना बहुत पसंद करते हैं।

मुनमुन हजारिका पति संदीप के साथ

भाषा में मिठास, लहजे का प्रयास

अपने परंपरागत पहनावे से पहचानी जाने वाली असम की बेटियों ने यहां की संस्कृति में अपने को ढालना शुरू किया और सूट पहनना स्वीकार कर लिया लेकिन घूंघट के विरोध में रहीं। मुनमुन इसका उदाहरण हैं। अन्य बहुओं तन्नू, मन्नू और फूल देवी ने भी शौक से ग्रामीण पारंपरिक परिधान धारण किए, मगर किसी बंदिश में नहीं रहीं। वे खेतों में भी गईं और घर आकर चूल्हा भी जलाया। हरियाणवी बोली इन बहुओं को अब अपनी लगती है। उनकी भाषा और वाक्य विन्यास में कोई चूक नहीं, लेकिन लहजा थोड़ी चुगली कर जाता है। मुनमुन का कहना है कि रंग-रूप, बोली और अंदाज उन्हें स्थानीय लोगों से अलग जरूर कर देता है, लेकिन इससे कोई परेशानी नहीं। वे हरियाणा को भी उतना ही अपना मानती हैं, जितना असम को। सुलखनी गांव की बहुओं तन्नू और फूल देवी के मुताबिक, शुरू में भाषा सीखने में दिक्कतें आईं। अब वे हरियाणवी सीखकर उसे समझने तो लगी हैं मगर उतने अच्छे से बोल नहीं पातीं।

बच्चे सीख पा रहे तीन भाषाएं

इन घरों में पल-बढ़ रहे बच्चों को दो अलग-अलग सांस्कृतिक क्षेत्रों की भाषाओं का ज्ञान मिल रहा है। दीपक अत्री बताते हैं, ‘मेरा बच्चा मां (ओलेविया के पास ज्यादा रहता है तो वह उनकी भाषा ज्यादा जल्दी सीख रहा है। इसके अलावा घर के लोगों से वह अंग्रेजी में भी बात करता है।’ सुलखनी गांव निवासी किसान सतबीर सिंह की बड़ी बेटी रिया और छोटे बेटे विक्की को उनकी मां तन्नू असमिया भाषा का ज्ञान भी दे रही हैं। तन्नू का कहना है कि जाहिर सी बात है कि बच्चों को मां की ममता तो मां की बोली में ही मिलती है और माहौल में हरियाणा की बोली है। ऐसे में बच्चे दोनों भाषाएं सीख रहे हैं। अन्नू के सात वर्ष के बेटे रिक्की को हरियाणवी, असमी और्र ंहदी सहित तीन भाषाएं आती हैं। अन्नू के मुताबिक वे बेटे के लिए भावनाएं अपनी भाषा में बेहतर तरीके से व्यक्त कर पाती थीं। इस तरह बच्चा समानांतर रूप से अलग-अलग भाषाएं सीखता गया और अब तीनों भाषाओं में बोल सकता है।

फूल देवी परिवार के साथ

हाथ में है स्वाद का दम

हरियाणा के यमुनानगर के वेटलिफ्टर राजेश त्यागी की शादी वेट लिफ्टिंग में ओलंपिक ब्रांज मेडलिस्ट और राजीव गांधी खेल रत्न सम्मान प्राप्त कर्णम मल्लेश्वरी से हुई है। मल्लेश्वरी आंध्र प्रदेश से हैं और राजेश हरियाणा से। दोनों ही उत्तर भारत में रहे हैं इसलिए भाषा और खानपान में खास अंतर महसूस नहीं हुआ। राजेश त्यागी बताते हैं कि उन्हें दक्षिण भारतीय व्यंजन बहुत पसंद हैं तो घर में वह भी बनते हैं, लेकिन कर्णम मल्लेश्वरी के हाथ के परांठे उत्तर भारतीय महिलाओं की कुकिंग को भी मात देते हैं। राजेश त्यागी बड़ी खुशी से कहते हैं, ‘उनके हाथ के परांठे लाजवाब होते हैं। त्यागी परिवार दो राज्यों के संगम के बावजूद उत्तर और दक्षिण की परिधियों से परे समरसता की अलग ही परिभाषा लिखता है। यहां की संस्कृति और रसोई से उत्तर और दक्षिण दोनों की सुगंध बराबर बिखरती है।’

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