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घूंघट की ओट से निकल Volleyball में दमखम दिखाने को तैयार दिल्ली की बेटी व हरियाणा की ये बहू

Volleyball Player Shashi Nagarशशि और उनकी टीम के अन्य खिलाड़ी अभी से जमकर पसीना बहा रहे हैं। शशि का कहना है कि जापान में होने वाले गेम्स में मुकाबला कड़ा होगा।

By JP YadavEdited By: Published: Thu, 10 Sep 2020 12:14 PM (IST)Updated: Thu, 10 Sep 2020 12:14 PM (IST)
घूंघट की ओट से निकल Volleyball में दमखम दिखाने को तैयार दिल्ली की बेटी व हरियाणा की ये बहू

फरीदाबाद [हरेंद्र नागर]। Volleyball Player Shashi Nagar: साल 2019 में इटली में आयोजित हुए यूरोपियन मास्टर्स गेम्स में भारतीय महिला वालीबॉल टीम का प्रतिनिधित्व कर चुकीं शशि नागर की नजर अब मई 2021 में जापान में होने वाले वर्ल्ड मास्टर्स गेम्स पर टिकी हैं। इसके लिए शशि और उनकी टीम के अन्य खिलाड़ी अभी से जमकर पसीना बहा रहे हैं। शशि का कहना है कि जापान में होने वाले गेम्स में मुकाबला कड़ा होगा। इटली में यूरोप और एशिया महाद्वीप के कई देशों के खिलाड़ियों ने ही हिस्सा लिया था, मगर जापान में पूरे वर्ल्ड की टीमें हिस्सा लेंगी। उनकी कोशिश इटली जैसी सफलता जापान में भी दोहराना है, इसलिए अभी से तैयारी शुरू कर दी है। वर्ल्ड मास्टर्स गेम्स साल 2020 में ही होने थे, मगर कोरोना संक्रमण के कारण इन्हें मई 2021 के लिए स्थगित कर दिया गया। इसको लेकर शशि का कहना है कि उनकी टीम को तैयारी के लिए और अधिक समय मिल गया है।

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ग्रामीण महिलाओं के लिए प्रेरणा हैं शशि नागर

शशि यमुना के नजदीक बसे छोटे से गांव सहरावक की बहू हैं। आस-पास गांवों में जो लोग उनकी प्रगतिशील सोच को लेकर नकारात्मक टिप्पणी करते थे, आज वही अपनी बहू बेटियों से शशि के जैसा बनने की अपेक्षा करने लगे हैं। शशि कहती हैं कि यह एक दिन में संभव नहीं हुआ। यहां तक पहुंचने के लिए उन्हें लगातार परिस्थितियों से संघर्ष करना पड़ा और साहसिक निर्णय लेने पड़े।

घर से बाहर खेलने जाने पर हुई टोका-टाकी

दिल्ली के गांव घड़ौली में शशि का मायका है। उनके पिता महेंद्र सिंह भारतीय खाद्य निगम से सेवानिवृत्त हैं। वे शूटिंग बॉल के भी खिलाड़ी रहे हैं। शशि को उनसे ही खेल की प्रेरणा मिली। वे गांव के पास स्टेडियम में खेलने जाती थीं। जब छोटी थीं तो कोई समस्या नहीं हुई, मगर किशोरावस्था में आते ही उनके बाहर खेलने जाने पर सवाल उठने लगे। गांव के लोग महेंद्र से कहते थे- 'बेटी को अकेले बाहर भेजना ठीक नहीं है।' ऐसे में खेल के दौरान उन्हें ट्रैकशूट पहनना पड़ता था। इस पर भी लोग खूब आपत्ति करते थे। हालात यह हो गए कि परिवार वाले भी उन्हें खेलने जाने से मना करने लगे। शशि को और लोगों की परवाह नहीं थी, मगर परिवार वालों की तरफ से रोक लगने पर वे परेशान हो गईं। उस दौरान स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया की कोच स्वर्णजीत कौर ने उनकी सहायता की और परिवार वालों को समझाया। शशि को खेलने की अनुमति मिली। इसके बाद वे दिल्ली में जिला स्तर व कॉलेज की टीम में खेलीं।

शादी के बाद घूंघट नहीं करने का निर्णय

करीब 17 साल पहले उनकी शादी गांव सहरावक में होशियार नागर से हुई। शादी से पहले ही उन्होंने कहा कि वे ससुराल में घूंघट नहीं करेंगी। ससुर सुलेख चंद शिक्षा विभाग से सेवानिवृत्त हैं और प्रगतिशील विचारधारा के हैं। इस पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी, मगर 17 साल पहले किसी बहू का घूंघट नहीं करने का निर्णय ग्रामीण क्षेत्र के लिए बड़ी बात थी। उनका यह निर्णय गांव सहरावक ही नहीं, बल्कि आस-पास के गांवों में भी चर्चा का विषय बना रहा। वहीं, शशि ने कभी इन बातों की परवाह नहीं की। ससुराल में भी उन्होंने पढ़ाई जारी रखी और बीपीएड, एमपीएड के बाद एमफिल की डिग्री हासिल कीं।

कई सर्जरी के बाद मैदान में हुई वापसी

शशि बताती हैं कि डिग्री व खेल में पुराने रिकॉर्ड के बूते उन्हें दिल्ली के एक नामी-गिरामी स्कूल में कोच की नौकरी मिली, पर बच्चे व चार सर्जरी के कारण वे करीब 10 साल खेल से दूर रहीं। बावजूद इसके खेल में कुछ अच्छा करने की कसक हमेशा रही। आखिर साल 2015 से उन्होंने फिर से प्रैक्टिस शुरू कर दी। परिवार वालाें ने समझाया कि अब शरीर में पहले जितना दमखम नहीं है, इसलिए खेले नहीं। वहीं, शशि ने ठान लिया कि वे फिर से वापसी करेंगी। चूंकि उम्र 30 से अधिक हो चुकी थी, इसलिए रेगुलर टीम में उनका चयन संभव नहीं था, इसलिए उन्होंने मास्टर्स टीम को चुना। उनके प्रयास रंग लाए और महिला मास्टर्स नेशनल वॉलीबॉल टीम में उनका चयन हो गया। पहले साल 2018 में उनकी टीम मलेशिया से गोल्ड मेडल जीतकर लौटी और अब इटली में यूरोपियन मास्टर्स गेम्स में गोल्ड जीता। उन्होंने अमेरिका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड जैसी टीमों को हराया। टीम में शशि अटैकर की भूमिका निभाती हैं। टीम की जीत में उनका अहम योगदान रहता है।

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