मिलिये- बॉलीवुड एक्टर अक्षय कुमार से प्रेरित हरियाणा के रियल पैडमैन अरुण गुप्ता से
मशीन से मिलने वाली नैपकिन की कीमत मात्र 5 रुपये तय की गई है। इसके साथ लगी डिस्पोज करने वाली मशीन में नैपकिन डाल दी जाती है।
फरीदाबाद [प्रवीन कौशिक]। अक्षय कुमार अभिनीत फिल्म 'पैडमैन' से प्रेरित होकर सेनेटरी नैपकिन के प्रति अलख जगाने के लिए शहर के अरुण गुप्ता रियल पैडमैन की भूमिका में आ गए हैं। कपिल विहार निवासी इंजीनियर अरुण गुप्ता ने अपनी इंजीनियरिंग का सदुपयोग सेनेटरी नैपकिन की मशीनों को बनाने में लगाया है। स्वस्थ समाज के प्रति इनका इतना लगाव है कि इन्होंने ऐसी कई मशीनें 'नो प्रोफिट नो लॉस' के आधार बनाकर दी हैं। एक ऐसी ही सेनेटरी नैपकिन और इसे डिस्पोज करने वाली मशीन कपिल विहार में भी लगाई है। इससे न केवल इस सोसायटी में रहने वाले 216 परिवारों की महिलाएं-युवतियां लाभ ले रही हैं, बल्कि राह चलते कोई भी यहां से नैपकिन ले सकता है।
इस मशीन से मिलने वाली नैपकिन की कीमत मात्र 5 रुपये तय की गई है। इसके साथ लगी डिस्पोज करने वाली मशीन में नैपकिन डाल दी जाती है, जो कुछ देर में राख के रूप में तब्दील हो जाती है। फिर इस राख का प्रयोग पौधों में खाद देने के रूप में किया जा रहा है। इस तरह से स्वस्थ समाज के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण का भी संदेश दिया जा रहा है।
पुलिस थानों में लगवाई मशीनें
अरुण गुप्ता ने बताया कि तीनों महिला पुलिस थानों में सेनेटरी नैपकिन वाली मशीनें लगा दी गई हैं। जल्द एनआइटी के गर्ल्स सीनियर सेकेंडरी स्कूल में भी मशीन लग जाएगी। आगमन सोसायटी में भी ऐसी मशीन लग चुकी है। वे चाहते हैं कि शहर के हर सेक्टर, मार्केट, कॉलोनी व गांव तक ऐसी मशीनें लगाई जाएं। इसके लिए वे जागरूकता अभियान भी चलाते रहते हैं। उन्होंने बताया कि कपिल विहार में सुंदर कांड क्लब बनाया हुआ है, जिससे जुड़ी मीनाक्षी, शीतल, पूजा, प्रिया, उपासना, उर्वशी, मीनू हुड्डा ने यहां दोनों मशीन लगाने में काफी सहयोग किया है। समय-समय पर वे महिलाओं को जागरूक भी करती हैं।
दुकान पर जाने से झिझकती हैं महिलाएं
अरुण गुप्ता बताते हैं कि उन्होंने अक्सर देखा है कि युवतियां व महिलाएं अक्सर दुकानदार से नैपकिन को लेने में हिचकिचाती हैं। मुख्य रूप से ग्रामीण इलाकों में ऐसा अधिक देखने को मिलता है। इतना ही नहीं, नैपकिन को यूज करने के बाद इसे इधर-उधर खूले में या फिर शौचालय के अंदर फेंक दिया जाता था, जिससे सीवरेज लाइनें जाम हो जाती थी और बाहर भी पर्यावरण संरक्षण को नुकसान हो रहा था। इसी सोच के साथ उन्होंने सबसे पहले सेनेटरी नैपकिन की मशीन बनाई और इसके बाद इसे डिस्पोज करने वाली मशीन भी बनाई। उन्होंने बताया कि आज नैपकिन लेने के तो बहुत माध्यम हैं, पर इसे डिस्पोज करना बेहद जरूरी है। सेनेटरी नैपकिन वाली मशीनें गांव से लेकर सेक्टर व कॉलोनियों में भी जरूर लगनी चाहिए। यहां तक कि मुख्य चौराहों के पास भी ऐसी मशीनें होनी चाहिए, तभी हम स्वस्थ समाज की ओर अग्रसर हो सकते हैं।
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