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Ramlila 2020: चौपाईयों के साथ रामलीला के संवाद उर्दू में, छटा गंगा-जमुना तहजीब की

जब प्रभु राम की लीला के मंचन के दौरान संगीतकार मनमोहन भारद्वाज गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग के अनुरूप चौपईयों सुनाते हैं और दूसरी ओर उर्दू के संवादों का उच्चारण होता है तब गंगा-जमुना तहजीब की छटा बिखरती नजर आती है।

By Mangal YadavEdited By: Published: Sat, 24 Oct 2020 09:00 PM (IST)Updated: Sat, 24 Oct 2020 09:00 PM (IST)
Ramlila 2020: चौपाईयों के साथ रामलीला के संवाद उर्दू में, छटा गंगा-जमुना तहजीब की
श्री श्रद्धा रामलीला कमेटी के मंच पर सीता स्वयंवर प्रसंग के दौरान परशुराम-लक्ष्मण संवाद का दृश्य। जागरण

फरीदाबाद(सुशील भाटिया)। कहा जाता है कि उर्दू के लफ्जों यानी शब्दों का जब कोई उच्चारण करता है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि हर लफ्ज चाशनी में घुला हुआ है। श्री श्रद्धा रामलीला कमेटी के मंच पर राम-लक्ष्मण, सीता, रावण, हनुमान और अंगद का किरदार निभाने वाले कलाकार ऐसे ही मिश्री घुले शब्दों से बने संवादों की बौछार कर रहे हैं। इस तरह जब प्रभु राम की लीला के मंचन के दौरान संगीतकार मनमोहन भारद्वाज गोस्वामी तुलसीदास प्रसंग के अनुरूप चौपईयों सुनाते हैं और दूसरी ओर उर्दू के संवादों का उच्चारण होता है, तब गंगा-जमुना तहजीब की छटा बिखरती नजर आती है।

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इन हिंदी-उर्दू शब्दों के मिश्रण से बने संवादों का ज्यादा इस्तेमाल इसलिए भी होता है कि मंच से जुड़े पटकथा लेखक, मुख्य निर्देशक व कलाकारों का संबंध देश बंटवारे के समय उत्तरी-पश्चिमी सीमांत प्रांत(अब पाकिस्तान में) के विभिन्न शहरों बन्नू, डेरा इस्माइल खान, कोहाट, पेशावर से है, जो वर्ष 1948 से 50 के बीच न्यू इंडस्ट्रियल टाउन यानी एनआइटी व पड़ोसी जिले पलवल में जवाहर नगर कैंप में आकर बसे। तब इन कलाकारों के बुजुर्ग लखीराम, टेकचंद और जेठाराम रामलीला की पटकथा भी अपने साथ भारत ले आए।

70 साल पहले शुरू की गई रामलीला के लिए जो पटकथा लिखी, उसी को अगली पीढ़ियां आगे बढ़ाती चली गई। इसमें राधेश्याम और जसवंत सिंह टोहानवी की लिखी रामायण के अंश भी संवादों में डाले गए। कमेटी के मुख्य निर्देशक अनिल चावला के अनुसार उनकी रामलीला का रजिस्टर करीब 44 वर्ष 12 नवंबर-1976 को स्वर्गीय उस्ताद खेम चंद खुराना की स्मृति में उस्ताद टेक चंद सचदेवा की सहायता से जवाहर नगर पलवल के नंद लाल बत्रा ने लिखा था, वही अब तक चला आ रहा है। जरूरत के अनुसार उसमें थोड़ा बहुत फेरबदल किया गया है, चूंकि सीमांत प्रांत में आंचलिक भाषा के साथ-साथ उर्दू भी प्रमुखता से बोली जाती थी, इसलिए पटकथा व संवादों में उर्दू लफ्जों का भरपूर प्रयोग किया गया है। सभी युवा कलाकारों को भी उर्दू शब्दों के अर्थ पता हैं। उच्चारण में कोई दिक्कत नहीं आती। पूर्वाभ्यास के दौरान भी इन संवादों के सटीक उच्चारण पर जोर रहता है।

उर्दू लफ्जों वाले संवाद की बानगी

राम बनवास प्रसंग के दौरान जब लक्ष्मण अपने भाई भरत को वन में मिलने आता देखता है, तो उनके मुख से निकलता है

''कुटिल नीति तेरी तुझ को यहां तक खेंच लाई है, मुकम्मल राज करने की हवस दिल में समाई है।

खबर करके चले आए, तुझे तख्ते अयोध्या दें, मिलेगा तख्त के बदले, तुझे तख्ता भरत अब तो, यकीं कर आप ही तूने कजा अपनी बुलाई है''।

अब इस शेर में मुकम्मल, तख्त, जालिम, यकीं, कजा, कलम जैसे शब्द उर्दू के हैं।

इसी तरह से सीता हरण प्रसंग के दौरान रावण सीता से मुखातिब होते हुए कहते हैं कि कर दिया बेबस है रघुवीर को तकदीर ने कर दिया बस में मेरे, तुझ को मेरी तदबीर ने, भुलाओ राम का चिंतन, करो सत्कार रावण का, खड़ा है रथ तुम्हारे वास्ते, तैयार रावण का''।

परशुराम-लक्ष्मण संवाद में लक्ष्मण की बानगी देखिए-कुल्हाड़े ऐसे ऐसे तो हजारों बार देखे हैं, छुरी के घाव देखे हैं, तंवर के वार के देखे हैं, बड़े योद्धा, बड़े बलवान, और खूंखार देखे हैं, जो मरने से नहीं डरते, वही सरदार देखे हैं।'वहीं परशुराम भी इस अंदाज में जवाब देते हैं कि तू अगर काल से बढ़ कर सितमगर होगा, बजर से सख्त या फौलाद से बदतर होगा, नाहर होगा, शरर होगा या पत्थर होगा। आतिशे कहर या तूफान का मंजर होगा।'

एक अन्य प्रसंग में 'हो न अंधे इस कदर इस मोह के जंजाल में, इक दिन आना पड़ेगा काल के गाल में, इस रुखे ताबा पे होगी मुर्दानी छाई हुई, तेरी शान होगी वक्त की ठोकर से ठुकराई हुई।'

इन शब्दों का भी होता है खूब प्रयोग

इन सबके अलावा विभिन्न संवादों में कत्लेआम, आबरू, नुमाइश, गुस्ताख, नाहक, दुहाई, गुनाहगार, गुफ्तगू, मुतस्सर, जौहर, बेहूदा अल्फाज, कायरपन, बुजदिली, शुमार, जुमले, जुल्म, हलक, पैगाम, अफसोस, तिलमिलाना जैसे लफ्जों का बखूबी प्रयोग करते हैं।

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