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बासी रोटी और दो दिन का दही...यह मीठा जहर कबतक खाता इसलिए सल्फास खा ली; रुला देगी बुजुर्ग दंपती की कहानी

Elderly Couple Suicide चरखी दादरी में एक आईएएस अधिकारी के दादा-दादी ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली। 78 वर्षीय जगदीश चंद आर्य ने 77 साल की अपनी पत्नी भागली देवी को उनके बच्चे सही से खाना भी नहीं देते थे। अंत में उन्होंने अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लिया।

By Jagran NewsEdited By: Swati SinghPublished: Fri, 31 Mar 2023 02:04 PM (IST)Updated: Fri, 31 Mar 2023 02:13 PM (IST)
बासी रोटी और दो दिन का दही...यह मीठा जहर कबतक खाता इसलिए सल्फास खा ली; रुला देगी बुजुर्ग दंपती की कहानी
बुजुर्ग दंपत्ति की दर्दनाक कहानी, बेटे-बहू से मिली उपेक्षा तो मौत को लगा लिया गले

चरखी दादरी, जागरण डिजिटल डेस्क। मां-बाप का ये सपना होता है कि उनका बच्चा बड़ा होकर खूब पैसा कमाए। एक दिन बड़ा आदमी बने.. अपने पैरों पर खड़ा हो और एक दिन उनके बुढ़ापे का सहारा बने। हर मां-बाप अपने बच्चे को अच्छी परवरिश देने के लिए जी तोड़ मेहनत करते हैं। अच्छी शिक्षा देने के लिए खुद दिन रात काम करते हैं, लेकिन कभी-कभी वही बच्चा अपने मां-बाप को ही भूल जाता है।

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कभी-कभी बच्चे बड़े आदमी तो बन जाते है लेकिन एक अच्छा इंसान नहीं बन पाते। अब एक ऐसा ही दिल को दहलाने वाला मामला हरियाणा के चरखी दादरी से सामने आया है, जिसमें एक ऐसे मां-बाप ने आत्महत्या कर ली, जिनके बेटों के पास करोड़ों की प्रॉपर्टी है। यहां तक कि उनका पोता आईएएस अधिकारी था।

मामला चरखी दादरी का है। एक बुजुर्ग दंपतीने मौत को गले लगा लिया। इसके पीछे का कारण सुनकर किसी की भी आंखें नम हो जाएंगी। दरअसल, 78 वर्षीय जगदीश चंद आर्य ने 77 साल की अपनी पत्नी भागली देवी को उनके बच्चे सही से खाना भी नहीं देते थे। इसी कारण से उन्होंने अपनी जीवन लीला को समाप्त कर लिया। इस आत्महत्या के पीछे का कारण उनके बच्चों द्वारा की गई उनकी अवहेलना है।

इनके बेटों के पास बाढड़ा में 30 करोड़ रुपये की प्रॉपर्टी है लेकिन अपने मां-बाप को खिलाने के लिए दो-जून की रोटी नहीं है। पोता आईएएस अधिकारी है लेकिन उसको अपने दादा-दादी की देखभाल करना का समय नहीं है।

करोड़पति बेटों ने खाने को दी बासी रोटी

78 वर्षीय जगदीश चंद आर्य और उनकी 77 साल की पत्नी भागली देवी का भरा-पूरा परिवार था। दो बेटे, जिनके पास करोड़ों की संपत्ति है। पोता आईएएस अधिकारी है। उनके बेटों के पास अथाह पैसा है लेकिन बूढ़े मां-बाप को देने के लिए दो रोटी नहीं थी। चरखी दादरी जिले के गोपी गांव निवासी जगदीश चंद आर्य वर्तमान में बाढड़ा की शिव कॉलोनी में अपने बेटे वीरेंद्र के साथ रहते थे। वीरेंद्र की छह साल पहले मौत हो गई थी, जिसके बाद उसकी पत्नी ने कुछ दिनों तक तो उनकी सेवा की लेकिन बाद में उन्हें घर से बाहर कर दिया। दूसरे बेटे के पास रहने गए तो बहू ने अत्याचार किए और उन्हें खाने के लिए बासी रोटी दी।

29 मार्च की रात को जगदीश चंद्र और उनकी पत्नी ने जहरीला पदार्थ खा लिया था फिर पुलिस कंट्रोल रूम को जानकारी दी थी। जब मौके पर पहुंची पुलिस टीम तो दंपत्ति जीवित थे। उन्हें तत्काल अस्पताल पहुंचाया गया। अस्पताल में जगदीश ने पुलिस को अपना सुसाइड नोट सौंपा। उस नोट को पढ़ने के बाद पुलिस वालों ने उनके परिवार वालों पर केस दर्ज किया। पुलिस ने पति-पत्नी को सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया, लेकिन अंत में उनको बचाया नहीं जा सका।

सुसाइड नोट में सुनाई आपबीती

जगदीश चंद्र ने सुसाइड नोट में अपनी आपबीती सुनाई। उन्होंने लिखा कि वह दो वर्ष अनाथ आश्रम में रहे। फिर यहां आए तो बहू ने निकाल दिया और मकान को ताला लगा दिया। इस दौरान उनकी पत्नी लकवाग्रस्त हो गईं और वह दूसरे बेटे वीरेंद्र के पास रहने लगीं। अब वीरेंद्र ने भी रखने से मना कर दिया। उन्हें बासी रोटी और दो दिन का बासी दही दे रहा था। यह मीठा जहर कितने दिन खाता इसलिए सल्फास की गोली खा ली।

सुसाइड नोट में बेटे और बहू सहित चार लोगों को मौत का कारण बताया है। पुलिस ने उनके बेटे वीरेंद्र, बहु सुनीता, दूसरी बहु नीलम व विकास के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 306 व 34 के तहत मामला दर्ज किया गया है।

पोता है आईएएस अधिकारी

जगदीश चंद्र आर्य का पोता एक आईएएस अधिकारी है। जगदीश चंद्र आर्य 2021 बैच के आईएएस विवेक आर्य के दादा हैं। विवेक आर्य के दादा-दादी ने प्रताड़ना से परेशान होकर आत्महत्या कर ली। पोता आईएएस अधिकारी है लेकिन फिर भी उसके दादा-दादी को खाने के लिए खाना नहीं मिलता था।

लोगों से की ये अपील

जगदीश चंद्र आर्य नोट में लिखा है कि मेरी बात सुनने वालों से प्रार्थना है कि इतना जुल्म मां-बाप पर नहीं करना चाहिए। जिन बच्चों को हमने पाल कर बड़ा किया उन्होंने हमें दुत्कार दिया। सरकार और समाज इनको दंड दे। बैंक में मेरी दो एफडी और बाढ़ड़ा में दुकान है, वो आर्य समाज बाढ़ड़ा को दे दी जाए। बच्चों को इसका एक भी टुकड़ा न मिले। जगदीश आर्य ने कहा कि जब तक इन्हें दंड नहीं दिया जाता तब तक तक हमारी आत्मा को शांति नहीं मिलेगी।


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