बार-बार डूबने और हर बार बनने की कहानी, छह से अधिक बार जलमग्न हुई कृष्ण की नगरी
भूगर्भशास्त्री का मानना है कि द्वारका नगरी एक से अधिक बार बनी और समुद्र में समाई समुद्र तल में मिले अंश और वर्तमान जगत मंदिर के नीचे की खोदाई से प्राप्त अवशेष इसकी पुष्टि करते हैं।
द्वारकापुरी, शत्रुघ्न शर्मा। श्रीकृष्ण के गमन के बाद समग्र द्वारका समुद्र में समा गई जैसा कि विष्णु पुराण के इस उल्लेख में वर्णित है- प्लावयामास तां शून्यां द्वारकां च महोदधि:। ऐतिहासिक द्वारका नगरी समुद्र में 36 मीटर की गहराई पर स्थित है। यहां पर पानी की तेज धारा बहती है, जिसके चलते शोधकर्ताओं को अध्ययन में समस्याओं का सामना करना पड़ा।
द्वारका की रिसर्च से जुड़े वैज्ञानिकों का मानना है कि सुनामी की ऊंची लहरों के प्रभाव में आकर ही द्वारका नगरी समुद्र में समा गई या फिर समुद्र का जलस्तर बढ़ने के कारण भी ऐसा हो सकता है, लेकिन वास्तविकता में क्या हुआ था इस बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता। खोदाई से पहले किए गए हवाई सर्वेक्षण में एक मानचित्र की तरह प्रतीत होने वाली तस्वीरें सामने आईं। पांचमील लंबे तथा दो मील चौड़े
क्षेत्रफल में व्यस्थित तरीके से मानव निर्मित संरचनाएं दिखाई दीं। नौसेना के गोताखोरों ने 40 हजार वर्गमीटर के दायरे में यह उत्खनन किया और वहां पड़े भवनों के खंडों के नमूने एकत्र किए, जिन्हें आरंभिक तौर पर चूना पत्थर बताया गया था। ये पत्थर हजारों वर्ष पुराने निकले।
बनावट के आधार पर पुरातत्व विशेषज्ञों ने बताया कि ये खंड बहुत ही विशाल और समृद्धशाली नगर, प्रासादों और मंदिरों के अवशेष हैं। कार्बन डेटिंग (पुरावशेष के काल निर्धारण की वैज्ञानिक पद्धति) 9000 वर्ष पहले तक का संकेत देती है, लेकिन संभव है कि आने वाले शोधों में ये 32 हजार वर्ष पीछे तक जा पहुंचे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के समुद्री पुरातत्व विशेषज्ञों ने इन दुर्लभ नमूनों को देश-विदेश की पुरा प्रयोगशालाओं को भेजा, ये इतने प्राचीन थे कि सभी दंग रह गए। पूरी सच्चाई आना फिलहाल शेष है।
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भूगर्भशास्त्री हालांकि यही मानते हैं कि द्वारका नगरी एक से अधिक बार बनी और समुद्र में समाई। द्वारका के प्राचीन अवशेष की कार्बन डेटिंग, राडार स्केन से समुद्र के तल में मिले अंश और वर्तमान जगत मंदिर के नीचे की खोदाई से प्राप्त विविध अवशेष इस बात की पुष्टि करते हैं कि द्वारका कम से कम 6 बार अवश्य जलमग्न हुई। छह परतों में की गई खोदाई में अलग-अलग कालखंड के अवशेष मिले हैं। जगत मंदिर 7वीं द्वारका का अंश है, यह उसी प्राचीन नगरी पर बना हुआ है। यहां छह नदियां गोमती, ओखा, मीठी, खारी, चरणगंगा व चंद्रभागा का उल्लेख मिलता है, संभावना है कि नदियों की घेरेबंदी के कारण भी जलस्तर बढ़ा हो।
अदाणी इंस्टीट्यूट ऑफ इंफ्रास्ट्रक्चर इंजीनियरिंग के प्राचार्य डॉ. विक्रम पटेल जो गुजरात के भूकंप संशोधन केंद्र के साथ भी काम कर चुके हैं, बताते हैं कि इस क्षेत्र में इंट्रा प्लेट सक्रिय है। द्वारका उसी प्लेट के आखिरी छोर पर है, जिससे यहां सुनामी का खतरा हमेशा रहता है। उनका मानना है कि द्वारका के बार- बार जलमग्न होने के पीछे सुनामी ही बड़ा कारण हो सकता है।