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जीवंत हो उठा द्वारका के अद्वितीय वैभव का विवरण, जानें क्यों पड़ा द्वारका नाम

महाभारत श्रीमद्भागवत विष्णु पुराण में द्वारका के अद्वितीय वैभव का विवरण दर्ज है 11वीं सदी की द्वारका सोने से बनी थी इसका निर्माण एक से अधिक बार किया गया।

By Babita kashyapEdited By: Published: Tue, 20 Aug 2019 09:41 AM (IST)Updated: Tue, 20 Aug 2019 09:45 AM (IST)
जीवंत हो उठा द्वारका के अद्वितीय वैभव का विवरण, जानें क्यों पड़ा द्वारका नाम
जीवंत हो उठा द्वारका के अद्वितीय वैभव का विवरण, जानें क्यों पड़ा द्वारका नाम

द्वारकापुरी, शत्रुघ्न शर्मा। 2005 में द्वारका के रहस्यों से पर्दा उठाने के लिए अभियान शुरू किया गया था, जिसमें भारतीय नौसेना ने भी मदद की। समुद्र के गर्भ में समाए पुरावशेष एक-एक कर सामने आए तो हजारों वर्ष पुराने पौराणिक विवरण जीवंत हो उठे। विशालकाय भवनों और लंबी दीवारों के ढांचे, तराशे गए पत्थरों के टुकड़े... अद्वितीय वैभव का वर्णन करने लगे। 200 अन्य नमूने भी एकत्र किए गए थे। इतिहासकारों ने महाभारत काल को कम से कम 9000 वर्ष पूर्व का बताया है, जबकि पुरावशेषों की कार्बन डेटिंग भी इसकी पुष्टि कर रही है।

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पौराणिक साक्ष्यों की बात करें तो महाभारत, श्रीमद्भागवत और विष्णु पुराण में द्वारका के वैभव का स्पष्ट विवरण दर्ज है। श्रीमद् भागवत (10,50, 50-52) में वर्णन है- यहां के विशाल भवन सूर्य और चंद्रमा के समान प्रकाशवान तथा मेरू के समान उच्च थे। नगरी के चतुर्दिक चौड़ी खाइयां थीं, जो गंगा और सिंधु के समान जान पड़ती थीं और जिनके जल में कमल के पुष्प खिले थे तथा हंस आदि पक्षी क्रीड़ा करते थे। सूर्य के समान प्रकाशित होने वाला एक परकोटा नगरी को सुशोभित करता था, जिससे वह श्वेत मेघों से घिरे हुए आकाश के समान दिखाई देती थी। रमणीय द्वारकापुरी की पूर्वदिशा में महाकाय रैवतक नामक पर्वत (वर्तमान गिरनार) उसके आभूषण के समान अपने शिखरों सहित सुशोभित था। नगरी के दक्षिण में लतावेष्ट, पश्चिम में सुकक्ष और उत्तर में वेष्णुमंत पर्वत स्थित थे और इन पर्वतों के चतुर्दिक अनेक उद्यान थे।

 

क्यों पड़ा द्वारका नाम 

महानगरी द्वारका के 50 प्रवेश द्वार थे...। 50 द्वारों के कारण ही शायद इसका नाम द्वारका या द्वारवती पड़ा। महाभारत का सभा पर्व (38) कहता है- द्वारकापुरी चारों ओर गहरे सागर से घिरी हुई थी। सुंदर प्रासादों से भरी हुई द्वारका श्वेत अटारियों से सुशोभित थी। तीक्ष्ण यंत्र, शतघ्नियां, अनेक यंत्रजाल और लौहचक्रद्वारका की रक्षा करते थे। द्वारका की लंबाई बारह योजना तथा चौड़ाई आठ योजन थी तथा उसका उपनिवेश (उपनगर) परिमाण में इसका द्विगुण था। द्वारका के आठ राजमार्ग और सोलह चौराहे थे, जिन्हें शुक्राचार्य की नीति के अनुसार बनाया गया था। द्वारका के भवन मणि, स्वर्ण, वैदूर्य तथा संगमरमर आदि से निर्मित थे। श्रीकृष्ण संबंधी पुरावशेषों की शोध में जुटे भ्रमणकथा पुस्तक के संपादक व लेखक नरोत्तम पलाण बताते हैं कि 11वीं सदी के प्रारंभ में यहां पहुंचा फारसी आगंतुक अलबेरुनी द्वारका के किले को स्वर्णनिर्मित व नदी के पूर्व स्थित बताता है। आप इससे अनुमान लगा सकते हैं कि यदि 11वीं सदी की द्वारका सोने से बनी थी तो हजारों साल पहले बनी उस द्वारका नगरी का वैभव तो कल्पना से परे है। इससे यह सिद्ध होता है कि द्वारका एक से अधिक बार बनाई गई।

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कब हुआ निर्माण  

भारतीय पुरातत्व विभाग जामनगर में पांच-पांच हजार साल पुराने 60 स्थल होने की पुष्टि करता है, इनमें द्वारका के अलावा बालंभा, अलियाबाडा, टींबडी, पीठड, रसनाल आदि शामिल हैं, जबकि समुद्र में मिले पुरावशेष 9000 हजार वर्ष पुराने प्रमाणित हुए हैं। संभव है कि 9000 वर्ष से भी कई हजार वर्ष पहले इसका निर्माण हुआ और फिर अनेक कालखंडों में पुनरोद्धार होता गया। गुजरात सरकार अब इन स्थलों को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित कर रही है।

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