नए शिखर पर शंकर महादेवन
इस पखवाड़े मराठी फिल्म ‘कटयार कलजत घुसली’ की रिलीज के साथ ही अभिनेता भी बन गए हैं गायक-संगीतकार शंकर महादेवन। लीक से हटकर सोचने वाले इस अनूठे कलाकार का दायरा अब देश से बढ़कर पूरी दुनिया में है
इस पखवाड़े मराठी फिल्म ‘कटयार कलजत घुसली’ की रिलीज के साथ ही अभिनेता भी बन गए हैं गायक-संगीतकार शंकर महादेवन। लीक से हटकर सोचने वाले इस अनूठे कलाकार का दायरा अब देश से बढ़कर पूरी दुनिया में है...
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सुना है कि आप गाने के साथ ही खाने के भी उस्ताद हैं?
हां, मुझे खाना बनाना बहुत पसंद है। म्यूजिक और कुकिंग दोनों में मुझे बहुत सिमिलैरिटी दिखती है। म्यूजिक में मात्राएं मिलाने से उसका टेस्ट बढ़ जाता है, उसी तरह खाने में मसाले मिलाने से स्वाद। जिस तरह एक जैसा खाना बनाने से स्वाद चला जाता है, उसी तरह से एक जैसा म्यूजिक बजाने से मजा खत्म हो जाता है।
तो बतौर अभिनेता अपनी पहली मराठी फिल्म ‘कटयार कलजत घुसली’ में आपने कितने मसाले मिलाए हैं?
शुद्धता का ध्यान रखते हुए जितने जरूरी थे। इस फिल्म में मैंने पंडित भानुशंकर शास्त्री का किरदार निभाया है। इसमें म्यूजिक भी मैंने दिया है और एक्टिंग भी की है। दरअसल, ये एक बहुत पुराना मराठी नाटक है, जो शास्त्रीय संगीत पर केंद्रित है।
ये नाटक महाराष्ट्र में बहुत मशहूर है। लोग इसकी फिल्म से तुलना नहीं करेंगे?
जब इसका पहला गाना रिलीज हुआ तो हमें लगा कि इसे लोग किस तरह से लेंगे। पर, हमने इस फिल्म के लिए पुराने गानों के साथ-साथ उसी स्टाइल में नए गाने भी बनाए। गणपति का एक गाना बनाया, जो ओरिजनल प्ले में नहीं था। उस दौर में ये सार्वजनिक उत्सव के रूप में भी तो नहीं था न। हमें डर था कि लोग क्या रिएक्शन देंगे, पर जब गाना आया तो बहुत सराहा गया। तब अहसास हुआ कि हम सही रास्ते पर चल रहे हैं।
‘ब्रेथलेस’, ‘बैठक बॉलीवुड’, ‘बंटी और बबली’, ‘भाग मिल्खा भाग’ में म्यूजिकल एक्सीलेंस और अब अभिनेता के तौर पर भानुशंकर शास्त्री की भूमिका। आपकी सफलता में बी का कोई कनेक्शन लगता है?
पता नहीं, शायद हो भी सकता है।
शंकर महादेवन-एहसान नूरानी-लॉय मेन्डोसा। तीन अलग-अलग तरह की क्रिएटिव शख्सियतें कैसे अपना पर्सनल और प्रोफेशनल बैलेंस बनाकर चलती हैं?
एक्चुअली, हम तीनों बहुत अलग बंदे हैं। हम तीनों की पसंद भी अलग है। पर, हम एक-दूसरे की बहुत इज्जत करते हैं। एक-दूसरे के नजरिए की इज्जत करते हैं। ये शादी की तरह है, जहां आप अलग-अलग बैकग्राउंड से आते हैं, पर एक-दूसरे का ख्याल रखना होता है। जिस दिन आप उसे भूलने लगते हैं, गलत रास्ते पर चलने लगते हैं। आप अगर अपनी पर्सनल लाइफ से प्रोफेशनल लाइफ को अलग रखें तो सब कुछ अच्छा रहता है।
जब आपने ‘दिल चाहता है’ का संगीत दिया तो म्यूजिक कंपनी ने उसे ये कहकर रिजेक्ट कर दिया था कि एड फिल्म जैसा है...
हां, पर जब इसे दूसरी म्यूजिक कंपनी ने लिया तो उसने करोड़ों रुपए कमाए। ये पहली वाली का बैड लक था। ‘दिल चाहता है’ ने बॉलीवुड म्यूजिक में बहुत बदलाव ला दिया। मुंबई में एक क्लब था, जो सिर्फ इंग्लिश गीत ही बजाता था, वहां हिंदी गाने नहीं बजते थे। जब ‘दिल चाहता है’ के गीत आए तब उन्होंने इसके गाने बजाए। उसने वहां भी बदलाव ला दिया।
2011 में आपने ऑनलाइन म्यूजिक स्कूल ‘शंकर महादेवन अकादमी’ को लॉन्च किया था। उसका कितना विस्तार हुआ है?
इससे हम दुनिया भर में बच्चों को संगीत सिखा पा रहे हैं। ये इस समय 37 देशों में चल रही है और हजारों स्टूडेंट्स जुड़ गए हैं।
आपका बेटा सिद्धार्थ भी काफी अच्छा काम कर रहा है...
मैं इस बात से अधिक खुश हूं कि उसका टेम्प्रामेंट बहुत अच्छा है। मुझे इससे मतलब नहीं कि वो कितना अच्छा गा रहा है पर तब मेरा दिल खुश हो जाता है जब कोई म्यूजिक कंपोजर कहता है कि सिद्धार्थ का मिजाज बहुत अच्छा है। हां, ये मैं भी मानता हूं कि उसको म्यूजिक की अच्छी समझ है। वो लंबी रेस का घोड़ा है!
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