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Surma Bhopali In Sholay: सिर्फ 1000 रुपये की वजह से शोले को छोड़ने वाले थे सूरमा भोपाली... जानें- क्या है पूरा मामला?

Surma Bhopali In Sholay एक बार 1000 रुपये की वजह से जगदीप ने अपना सामान बांधकर मुंबई वापस आने का फैसला कर लिया था।

By Mohit PareekEdited By: Published: Fri, 10 Jul 2020 02:55 PM (IST)Updated: Sat, 11 Jul 2020 07:56 AM (IST)
Surma Bhopali In Sholay: सिर्फ 1000 रुपये की वजह से शोले को छोड़ने वाले थे सूरमा भोपाली... जानें- क्या है पूरा मामला?
Surma Bhopali In Sholay: सिर्फ 1000 रुपये की वजह से शोले को छोड़ने वाले थे सूरमा भोपाली... जानें- क्या है पूरा मामला?

नई दिल्ली, जेएनएन। सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी ऊर्फ जगदीप ने चार सौ से ज्यादा फिल्मों में काम किया। फिल्म 'भाभी' और 'बरखा' में बतौर हीरो काम किया। हालांकि पहचान कॉमिक किरदारों ने दी। फिल्म 'शोले' में सूरमा भोपाली की छोटी सी भूमिका ने उन्हें शोहरत दी। उनका भोपाली अंदाज में बोला गया डायलॉग 'हमारा नाम भी सूरमा भोपाली ऐसे ही नहीं है' यादगार है। जगदीप को सूरमा भोपाली बनाने में 'शोले' के सिनेमेटोग्राफर द्वारका दिवेचा का भी अहम योगदान रहा है। वरना जगदीप इस रोल को छोडऩे का मन बना चुके थे।

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मामला यूं है कि फिल्म के लेखक जावेद अख्तर ने उन्हें एक टेप दिया था, जिसमें बताया था कि उन्हें कैसे डायलॉग को बोलना है। एक दिन अचानक से उन्हें शूटिंग के लिए बेंगलुरु बुलाया गया। उन्हें होटल में आराम करने को कहा गया। उस समय निर्देशक रमेश सिप्पी अन्य कलाकारों के साथ शूटिंग में व्यस्त थे। होटल में रहकर बोर रहे जगदीप ने प्रोडक्शन मैनेजर से एक हजार रुपये मांगे ताकि वह रेस में लगा सकें। मैनेजर ने मना कर दिया। इस बात से नाराज जगदीप ने अपना सामान बांधकर मुंबई वापस आने का फैसला कर लिया।

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उसी दौरान सिनेमेटोग्राफर द्वारका ने इस कहासुनी को सुना। उन्होंने प्रोडक्शन मैनेजर को तुरंत पैसा देने का निर्देश दिया। तब जगदीप ने गुस्सा शांत किया और रुके। फिर उन्होंने सिर्फ एक टेक में शॉट दिया था। यह सीन जगदीप के कॅरियर का यादगार लम्हा बन गया।

बचपन से हूं जगदीप साहब का फैन

सचिन पिलगावकर का कहना है, 'जगदीप साहब का मैं बचपन से प्रशंसक रहा हूं। किसी को हंसाना रुलाने से ज्यादा कठिन काम है। जगदीप साहब ने लोगों को सिर्फ हंसाया नहीं बल्कि शुरुआती करियर में गंभीर किरदार भी निभाए। उन्होंने बाल कलाकार के तौर पर बीआर चोपड़ा की फिल्म 'अफसाना' में काम किया था। उस फिल्म का चोपड़ा साहब ने बाद में दास्तान नाम से रीमेक किया था। उसमें युसूफ साहब यानी दिलीप कुमार के बचपन का किरदार मैंने निभाया था। इमोशनल रोल जगदीप साहब बहुत अच्छा करते थे। एक फिल्म 'परदे के पीछे' का जिक्र करना चाहूंगा। उस फिल्म में उन्होंने कॉमेडियन का किरदार किया था, जो बहन के साथ दुष्कर्म का बदला लेने के लिए कत्ल करता है। उन्होंने यह सीन बहुत इमोशन के साथ किया था। आज भी वह सीन मेरे जेहन में ताजा है। उन्हें तहे दिल से श्रद्धांजलि।'

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उनकी अदायगी का रंग था अनोखा

वहीं, शोले के निर्देशक रमेश सिप्पी ने कहा, 'शोले' में सूरमा भोपाली का किरदार बहुत कलरफुल था। अगले महीने 15 अगस्त को 'शोले' की रिलीज को 45 साल पूरे हो जाएंगे। इतने वर्षों बाद भी वह किरदार लोगों के जेहन में बसा है। यह जगदीप की अदायगी का कमाल है। उन्होंने किरदार को लोकल फ्लेवर दिया। ऐसे किरदार पहले लिखने में बनते हैं फिर कलाकार अपनी परफार्मेंस से उनमें रंग भरते हैं। शोले से पहले जगदीप ने मेरे साथ फिल्म 'ब्रह्मचारी' (1968) में काम किया था। वहीं से हमारी जान पहचान हुई थी। जब 'शोले' की स्क्रिप्ट में सूरमा भोपाली का किरदार आया तो लेखक सलीम-जावेद ने ही उनके नाम का प्रस्ताव दिया। मैं भी उससे सहमत था। जगदीप बेहतरीन एक्टर थे। 


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