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जन्म के बाद अनाथालय तक छोड़ आए थे पिता, एक दिन बन गयीं टॉप की एक्ट्रेस

मीना कुमारी ने अपने कैरियर में जितनी बुलंदियां हासिल की हैं निजी ज़िंदगी में उतनी ही मुश्किलें भी झेलीं। जन्‍म से लेकर अंतिम घड़ी तक उन्‍होंने दुख ही दुख झेला।

By Hirendra JEdited By: Published: Fri, 31 Mar 2017 10:14 AM (IST)Updated: Sat, 01 Apr 2017 08:14 AM (IST)
जन्म के बाद अनाथालय तक छोड़ आए थे पिता, एक दिन बन गयीं टॉप की एक्ट्रेस
जन्म के बाद अनाथालय तक छोड़ आए थे पिता, एक दिन बन गयीं टॉप की एक्ट्रेस

मुंबई। अपने दौर की मशहूर एक्ट्रेस ट्रेजेडी क्वीन मीना कुमारी का करिश्मा कुछ ऐसा था कि आज भी उनका जादू सिर चढ़ कर बोलता है। उनके जाने के 45 साल के बाद भी उनके द्वारा बनाया गया मुकाम अब तक कोई और छू नहीं सका है। मीना कुमारी अपने जीवन में कामयाबी की जितनी बुलंदियों तक पहुंचीं, उन्होंने दुःखों के उतने ही ऊंचे पहाड़ों को भी झेला है। आइये जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी सच्चाइयां जो हमें हैरान भी कर सकती हैं!

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अनाथालय की सीढ़ियों से उठा कर लाये पिता

1 अगस्‍त, 1932 को जन्मीं मीना कुमारी का मूल नाम महजबीन था। जब उनका जन्म हुआ तब पिता अली बख्‍श और मां इकबाल बेगम (मूल नाम प्रभावती) के पास डॉक्‍टर को देने के पैसे नहीं थे। हालत यह थी कि दोनों ने तय किया कि बच्‍ची को किसी यतीमखाने के बाहर सीढ़‍ियों पर छोड़ दिया जाए और छोड़ भी दिया गया। लेकिन, पिता का मन नहीं माना और वो पलट कर भागे और बच्‍ची को गोद में उठा कर घर ले आए। किसी तरह मुश्किल भरे हालातों से लड़ते हुए उन्होंने उनकी परवरिश की।

कम उम्र में ही हासिल की बड़ी कामयाबी

महजबीन (मीना कुमारी) ने छोटी उम्र में ही घर का सारा बोझ अपने कंधों पर उठा लिया। सात साल की उम्र से ही फ़िल्मों में काम करने लगीं। वो बेबी मीना के नाम से पहली बार फ़िल्म ‘फरजद-ए-हिंद’ में नजर आईं। इसके बाद लाल हवेली, अन्‍नपूर्णा, सनम, तमाशा आदि कई फ़िल्में कीं। लेकिन उन्‍हें स्‍टार बनाया 1952 में आई फ़िल्म ‘बैजू बावरा’ ने। इस फ़िल्म के बाद वह लगातार सफलता की सीढियां चढ़ती गईं। ‘बैजू बावरा’ ने मीना कुमारी को बेस्‍ट एक्‍ट्रेस का फिल्‍मफेयर अवॉर्ड दिलवाया। वह यह अवॉर्ड पाने वाली पहली एक्‍ट्रेस थीं। इसके बाद तो उन्‍होंने एक से बढ़ कर एक फ़िल्में दीं। परिणीता, दिल अपना प्रीत पराई, श्रद्धा, आजाद, कोहिनूर...बहरहाल, 1960 तक आते-आते वह एक बहुत बड़ी स्‍टार बन गई थीं।

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बेस्ट एक्ट्रेस की लिस्ट में अपने नाम से ही था मुकाबला

उनके क़द का अंदाजा आप यूं लगाइए कि 1963 के दसवें फिल्‍मफेयर अवॉर्ड में बेस्‍ट एक्‍ट्रेस कैटेगरी में तीन फ़िल्में (मैं चुप रहूंगी, आरती और साहिब बीवी और गुलाम) नॉमिनट हुई थीं और तीनों में मीना कुमारी ही थीं। बता दें कि उन्हें यह अवॉर्ड 'साहिब बीवी और गुलाम' में उनके निभाए गए ‘छोटी बहू’ के किरदार के लिए मिला था। वैसे, मीना कुमारी ने अपने कैरियर में जितनी बुलंदियां हासिल की हैं निजी ज़िंदगी में उतनी ही मुश्किलें भी झेलीं। जन्‍म से लेकर अंतिम घड़ी तक उन्‍होंने दुख ही दुख झेला। कामयाबी का जश्‍न मनाने का वक्‍त आता, उस से पहले ही कोई न कोई हादसा उनका पीछा करता ही रहता।

ज़िंदगी की ट्रेजेडी

मीना कुमारी और कमाल अमरोही की शादी के किस्से भी बड़े दिलचस्प हैं। लेकिन, उनके रिश्ते कभी मधुर नहीं रहे। कमाल अमरोही जब ‘पाकीजा’ बना रहे थे, तब वो बुरी तरह आर्थिक संकट में फंस गए थे। मीना ने अपनी सारी कमाई देकर पति की मदद की। इसके बावजूद इस फ़िल्म के दौरान दोनों के संबंध लगातार खराब हो गए। नौबत तलाक तक पहुंच गई। मीना कुमारी की तबीयत भी खराब रहने लगी थी। पैसे भी नहीं थे। मीना कुमारी इतनी बीमार हो गईं कि उनका इलाज कर रहे डॉक्‍टर ने सलाह दी कि नींद लाने के लिए एक पेग ब्रांडी लिया करें। डॉक्‍टर की यही सलाह भारी पड़ गयी और मीना कुमारी को शराब की लत लग गई। इस बीच पति से मतभेद और आर्थिक तंगी और उनकी बीमारी की वजह से ‘पाकीजा’ का निर्माण भी रुक गया।

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जब इस 'पाकीजा' ने कहा दुनिया को अलविदा

‘पाकीजा’ कमाल अमरोही की महत्‍वाकांक्षी फ़िल्म थी, लेकिन वो इसे आगे नहीं बढ़ा पा रहे थे। सुनील दत्‍त और नर्गिस के कहने पर वर्षों बाद इसकी शूटिंग शुरू हुई। मीना कुमारी ने तलाख के बाद भी कमाल अमरोही के इस फ़िल्म का हिस्सा बनी रहीं। 14 साल बाद 4 फरवरी, 1972 को फ़िल्म पर्दे पर आई। तब तक मीना की हालत काफी बिगड़ गई थी। बीमारी की हालत में भी वह लगातार फ़िल्में कर रही थीं, लेकिन रोग असाध्‍य हो गया था। अंतत: 31 मार्च 1972 को लिवर सिरोसिस के चलते मीना कुमारी ने दुनिया को अलविदा कह दिया और तमाम मुश्किलों से आजाद हो गईं।


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