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Exclusive: श्रीदेवी के साथ 18 साल तक रहे उनके मैनेजर ने बताये ये दिलचस्प किस्से

श्रीदेवी पर काम का जुनून सवार था। वह सुबह चार बजे से लेकर रात के 12 बजे तक काम करती थीं।

By Manoj KhadilkarEdited By: Published: Mon, 26 Feb 2018 04:07 PM (IST)Updated: Mon, 26 Feb 2018 04:07 PM (IST)
Exclusive: श्रीदेवी के साथ 18 साल तक रहे उनके मैनेजर ने बताये ये दिलचस्प किस्से
Exclusive: श्रीदेवी के साथ 18 साल तक रहे उनके मैनेजर ने बताये ये दिलचस्प किस्से

अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। श्रीदेवी उस वक्त साउथ फिल्म इंडस्ट्री की सुपरस्टार बन चुकी थीं। वह लगातार साउथ के बड़े फिल्मकारों के साथ काम कर रही थीं। खास बात यह थी कि उनकी फिल्में कामयाब भी खूब हो रही थीं और श्रीदेवी कई किरदार निभा रही थीं। उन्होंने चार साल की उम्र से फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया था। सो, साउथ इंडस्ट्री में वह बड़ा नाम बन चुकी थीं लेकिन अब वह बॉलीवुड में भी कदम बढ़ाना चाहती थीं। उनके निर्देशक के बालचंदर ने एक ऐसे शख्स को यह जिम्मेदारी सौंपी, जो हिंदी फिल्मों और साउथ इंडस्ट्री के बीच तार बने हुए थे। नाम था हरि सिंह।

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हरि सिंह ने लगभग 18 साल तक श्रीदेवी के फिल्मी करियर का पूरा काम देखा। उनके जिंदगी के उतार-चढ़ाव देखे। जागरण डॉट कॉम से उन्होंने बातचीत में श्रीदेवी की जिंदगी से जुड़े कुछ दिलचस्प किस्से सुनाये।

के बालचंदर के प्रेमालय से बॉलीवुड तक

अब उनकी मां चाहती थीं कि श्रीदेवी को हिंदी फिल्मों की तरफ भी रुख करना चाहिए। खासतौर से तमिल सिनेमा में उन्होंने बड़ी पहचान बना ली थी। निर्देशक के बालाचंदर उन्हें लगातार अपनी फिल्मों में कास्ट कर रहे थे। कमल हासन और रजनीकांत के साथ तो के बालाचंदर ने उन्हें कई बार रिपीट किया। उस वक्त हरि सिंह, जिनका हिंदी फिल्म इंडस्ट्री के साथ-साथ साउथ की फिल्म इंडस्ट्री से भी अच्छे संबंध थे, खास बात यह भी थी कि हरि सिंह की भी चाहत थी कि वह फिल्मों के प्रोडक्शन में करियर बनायें, तो उन्होंने हिंदी सिनेमा में भी और साउथ सिनेमा में भी सामंजस्य बनाना शुरू कर दिया था। राजेंद्र किशन जो कि हिंदी सिनेमा से ताल्लुक रखते थे लेकिन उन्होंने साउथ की फिल्मों के लिए कई सारी फिल्मों का लेखन किया था, हरि उन्हें गुरुजी मानते थे और उनकी वजह से ही हरि की एंट्री साउथ सिनेमा में भी हो गयी थी। हरि राजेंद्र को अस्टिट भी किया करते थे. सो, ऐसे में प्रेमालय, जो कि दक्षिण सिनेमा का बड़ा स्टूडियो माना जाता था, हरि वहां प्रोडक्शन मैनेजर के रूप में जुड़ गये थे। वह सारी फिल्मों की मेकिंग देखा करते थे। शूटिंग पर मौजूद तो रहते ही थे। हरि सिंह बताते हैं कि एक दिन के बालाचंदर ने हरि को बुला कर कहा कि मुझे लगता है कि यह सही वक्त है, जब श्रीदेवी को हिंदी फिल्मों की तरफ भी रुख करना चाहिए। लेकिन उन्होंने इसके साथ ही हरि को यह भी बताया कि श्रीदेवी को अभी हिंदी नहीं आती है। इसलिए उसकी मदद करो और कम्यूनिकेशन का काम तुम संभालो। हरि बताते हैं कि उन्होंने फिर श्रीदेवी की मां से बात की, जिनकी दिलचस्पी भी श्रीदेवी के बॉलीवुड की तरफ रुख करने को लेकर थी। हरि, चेन्नई ( तब मद्रास) जाते तो उनके घर पर ही रुकते। वह कहते हैं कि श्रीदेवी की मां काफी सहज और सरल महिला थीं। उन्हें ग्लैमर इंडस्ट्री को लेकर कुछ भी अधिक जानकारी थी नहीं। उन्होंने पूरे विश्वास के साथ हरि को श्रीदेवी का काम सौंपा। हरि ने श्रीदेवी को यह जरूर समझा दिया कि उन्हें पूरी तरह से कभी भी साउथ की फिल्में करनी छोड़नी नहीं चाहिए। हिंदी में फिल्में करें लेकिन एक दो फिल्में साउथ की भी करती रहें और श्रीदेवी को लेकर वह मुंबई आ गये।

सोलहवां सावन फ्लॉप रही, हताश होकर श्रीदेवी वापस लौटीं

साल 1967-1975 तक चाइड आर्टिस्ट के रूप में वह बड़ा नाम बन चुकी थीं। फिर 1976-1982 तक उन्होंने साउथ की फिल्मों में लीड किरदार के रूप में सफलता हासिल कर ली। 1979 में आयी फिल्म सोलवां सावन के लिए हरि श्रीदेवी को बॉलीवुड ले आये लेकिन हरि बताते हैं कि फिल्म खास कामयाब नहीं हुई। खुद हरि ने भी इस फिल्म के डिस्ट्रीब्यूशन में निवेश किया था। बहरहाल श्रीदेवी हताश होकर लौट गयीं साउथ सिनेमा में। फिर चार सालों का लंबा गैप रहा लेकिन फिर हिम्मतवाला के बारे में हरि को जानकारी मिली कि के राघवेंद्र राव कोई फिल्म बना रहे हैं, जीतेंद्र को लेकर। श्रीदेवी को इस फिल्म में साइन किया गया और वह फिल्म उस साल की सबसे बड़ी हिट साबित हुई और दूसरी ही फिल्म से श्रीदेवी का नाम बॉलीवुड में बड़ी हस्तियों में गिना जाने लगा। हरि बताते हैं कि इसके बाद तो प्रोडयूर्स की लाइन लग गयी। हर निर्माता उन्हें लेने के लिए परेशान रहने लगा था। हरि बताते हैं कि श्रीदेवी चूंकि छोटी उम्र से काम करने लगी थीं, वह इस बात से वाकिफ हो गयी थीं कि हर फिल्म को साइन नहीं करनी है। इसके बावजूद हिम्मतवाला के बाद उन्होंने 16 फिल्में साइन की थी। तोहफा, जानी दोस्त, जस्टिस चौधरी, मवाली, बलिदान, सोने पे सुहागा. औलाद और सुहागन। घर संसार हिट रही. तो आग और शोला, हिम्मत और मेहनत जैसी फिल्में फ्लॉप हुई लेकिन उसी दशक में सदमा रिलीज हुई थी, जिसमें उनके अभिनय की खूब तारीफ हो गयी थी। हरि बताते हैं कि यह श्रीदेवी का ही जलवा था कि उन्हें जहां धर्मेंद्र के साथ भी काम करने का मौका मिला। उन्होंने उनके बेटे सनी देओल के साथ भी अभिनय किया.

चार शिफ्टों में एक साथ काम

हरि ने श्रीदेवी का पूरा कार्यभार संभाल लिया था। वह खुद स्वीकारते हैं कि श्रीदेवी की फिल्मों का काम इतना बढ़ गया कि उनकी अपनी प्लानिंग जो थी कि वह प्रोडक्शन में जायेंगे, वह पीछे न रह जाए। अब वह सेलिब्रिटी मैनेजर के रूप में श्रीदेवी का पूरा काम संभालने लगे थे। हरि बताते हैं कि किसी अभिनेत्री में इतनी ताकत नहीं रहती थी कि वह चार शिफ्ट में काम करे लेकिन श्रीदेवी पर काम का जुनून सवार था। वह सुबह चार बजे से लेकर रात के 12 बजे तक काम करती थीं। एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो जाया करती थी। एक कैरेक्टर से दूसरे कैरेक्टर में जाया करती थीं। अभिनय उन्हें गॉड गिफ्टेड था। कभी प्रेमिका और फिर दो घंटे में वही प्रेमिका मां तो कभी कुछ बन जाती है और एक कैरेक्टर का दूसरे कैरेक्टर पर कोई असर नहीं। हरि कहते हैं कि उनकी पूरी प्लानिंग एक रात पहले हो जाती थी कि कल क्या क्या शेडयूल है। वह प्लानिंग से चलना पसंद करती थीं। एक स्टूडियो से दूसरे स्टूडियो में जाते हुए ऐसा नहीं था कि वह सीन रिहर्सल करने लगती थीं। वह सेट पर पहुंच कर मेकअप करते वक्त तैयारी कर लेतीं।

कॉस्टयूम मेकअप को लेकर स्ट्रिक्ट

हरि बताते हैं कि श्रीदेवी सिर्फ अपनी एक्टिंग पर काम नहीं करती थीं। वह बतौर एक्टर पूरे अपीयरेंस पर भी काम करती थीं। उस दौर में वह पहली अभिनेत्री थीं जो रात में ही शूटिंग के एक दिन पहले पूरी तैयारी करती थीं। पूरी टीम को बुलाती थीं। कॉस्टयूम ट्राई करती थीं। एक दूसरे के ब्रेन स्ट्रॉमिंग करती थीं। उनकी कॉस्टयूम टीम इस बात का पूरा ख्याल रखती थीं। वक्त की पाबंद रहनेवालों में से थीं। अगर कॉल टाइम 8 बजे का है तो वह मेकअप के साथ 7 बजे तक ही तैयार हो जाती थीं। कॉस्टयूम बिल्कुल कैरेक्टर के मुताबिक हो इस बात का पूरा ख्याल रखती थीं।

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