RIP Khayyam: सीने में धड़कता था एक फौजी का दिल, संगीतकार बनने से पहले लड़ा था दूसरा विश्व युद्ध
RIP Khayyam 19 अगस्त की रात 9.30 बजे इस महान संगीतकार ने आख़िरी सांस ली। वो मुंबई के एक अस्पताल में पिछले कुछ दिनों से भर्ती थे।
नई दिल्ली, जेएनएन। Music Director Khayyam Passes Away: हिंदी सिनेमा को जिन संगीतकारों ने अपने सुरों से सजाया, संवारा और सुरीला बनाया, उनमें ख़य्याम साहब का नाम भी शामिल है। बतौर संगीतकार ख़य्याम साहब के सफ़र को तो सब जानते हैं, मगर यह कम ही लोगों को मालूम होगा कि इस संगीतकार के सीने में एक फौजी का दिल धड़कता था। फ़िल्मों में सुरों की आज़माइश करने से पहले ख़य्याम साहब ने बतौर सिपाही दूसरे विश्व युद्ध में भाग लिया था।
हिंदी सिनेमा को उमराव जान, कभी-कभी और बाज़ार जैसी फ़िल्मों के ज़रिए समृद्ध करने वाले ख़य्याम फ़िल्म इंडस्ट्री में करियर शुरू करने से पहले एक फौजी थे। ब्रिटिश इंडियन आर्मी की तरफ़ से उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध में अपनी बंदूक के जौहर दिखाये थे। फ़िल्मों में करियर तलाशने की ख़्वाहिश लेकर ख़य्याम लाहौर गये थे, जहां उन्होंने मशहूर पंजाबी संगीतकार बाबा चिश्ती से संगीत की शिक्षा ली।
1948 की फ़िल्म हीर रांझा से ख़य्याम ने हिंदी सिनेमा में डेब्यू किया, मगर इस फ़िल्म के क्रेडिट रोल्स में उनका नाम यह नहीं गया। दरअसल, इस फ़िल्म का म्यूज़िक शर्मा जी-वर्मा जी की जोड़ी ने तैयार किया था। इस जोड़ी के शर्मा जी ख़य्याम ही थे। इसके पीछे एक मज़ेदार कहानी है। 1961 की फ़िल्म शोला और शबनम ने ख़य्याम को एक बड़े संगीतकार के तौर पर स्थापित कर दिया।
19 अगस्त की रात 9.30 बजे इस महान संगीतकार ने आख़िरी सांस ली। वो मुंबई के एक अस्पताल में पिछले कुछ दिनों से भर्ती थे, जहां उनक वृद्धावस्था से जुड़ी बीमारियों के लिए उनका इलाज किया जा रहा था। ख़य्याम 92 साल के थे। मुंबई में वो अपनी पत्नी जगजीत कौर के साथ रहते थे। उनका पूरा नाम मोहम्मद ज़हूर ख़य्याम था, मगर चाहने वाले उन्हें ख़य्याम साहब कहकर ही बुलाते थे।