Interview: 'स्त्री' सिर्फ हंसाएगी नहीं, एक अहम मुद्दे की भी होगी बात- निर्देशक अमर कौशिक
फिल्म स्त्री 31 अगस्त को सिनेमाघरों में दस्तक देने जा रही है। इस फिल्म को अमर कौशिक ने डायरेक्ट किया है।
अनुप्रिया वर्मा, मुंबई। स्त्री आ रही है, अब मर्द को दर्द होगा...। निर्देशक अमर कौशिक अपनी हॉरर कॉमेडी स्त्री फिल्म के माध्यम से महिलाओं से जुड़े एक अहम विषय को लेकर आ रहे हैं। अमर की यह पहली हिंदी फीचर फिल्म है। लेकिन इससे पहले उनकी शोर्ट फिल्म “आबा” ने लगभग 35 विश्व स्तरीय फिल्मोत्सव में काफी सफलता और सराहना हासिल की है। वह राजकुमार गुप्ता और ओनिर के साथ कई फिल्मों में बतौर सहायक निर्देशक जुड़े रहे हैं।
कानपुर शहर से खास संबंध रखने वाले अमर कहते हैं कि उन्हें लगता है कि छोटे शहरों में ऐसी हजारों कहानियां हैं, जिन्हें बड़े परदे पर कहानी का रूप दिया जा सकता है। स्त्री की कहानी चंदेरी के इर्द-गिर्द घूमती है। पेश है उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश -
स्त्री में एक खास बात
अमर ने अपनी बातचीत के दौरान बताया है कि यह सिर्फ एक हॉरर कॉमेडी फिल्म नहीं है। फिल्म सिर्फ मजे के लिए नहीं बनाई है। इसमें काफी लेयर भी हैं, जो कि आप फिल्म देखेंगे तो समझ जायेंगे कि क्या है इसमें कि हमने स्त्री ही क्यों रखा है। वह कहते हैं कि मैं इस फिल्म को लेकर अधिक भाषणबाजी नहीं करना चाहता था। यह एक अर्बन लेजेंड पर कहानी नहीं है, कई सारे पर है, इसमें से एक हमने उठाया है जो कि साउथ में होता था। आप जब नॉर्थ इंडिया में जाओगे तो वहां हर घर के बाहर एक साइन होता है तो हमने वह कंसेप्ट उठाया, फिर छोटे शहर में लोग कहते हैं कि पीछे मुड़ कर मत देखना तो वहां से हमने वहां से लिया है। अमर कहते हैं कि इस फिल्म में यूं ही प्रोमोशन में नहीं कहा है कि मर्द को दर्द होगा, उसके पीछे बड़ी और खास वजह है। फिल्म में स्त्री के नजरिये से बहुत महत्वपूर्ण बात कही जा रही है। आमतौर पर छोटे शहर में कहते हैं कि रात में लड़कियां बाहर न निकलें, लड़कें उठा के ले जायेंगे। हमने इस फिल्म में पूरा घुमा दिया है कि चार दिन ऐसे हैं, जहां मर्द को बाहर नहीं निकलना है, क्योंकि औरतें वहां सेफ हैं लेकिन मर्द नहीं हैं।
अंधविश्वास पर किस हद तक विश्वास
अमर कहते हैं कि मैं इस तरह की बातों पर उतना बिलीव तो नहीं करता था। कुछ-कुछ चीजें होती हैं, जो साइंस साफ़-साफ़ कहता है कि ऐसा नहीं हो सकता। लेकिन इस फिल्म की शूटिंग के दौरान कुछ देखा। मैंने हमेशा से ऐसी फिल्मों के साथ काम किया है, जहां हमेशा रियल लोकेशन पर ही शूट किया है। तो हमने तय किया कि हम भूतिया जगह पर ही शूट करेंगे। ऐसे में कुछ ऐसी जगहें थीं, जहां रात में ही शूट करना था। लेकिन मना कर रहे थे वहां के लोग। वो लोग कहते थे कि यहां कुछ है। लेकिन हम रेकी करने गये तो वहां का कोई भी लोकल व्यक्ति आया ही नहीं। जंगल था और वहां एक पगडंडी थी। लेकिन जब हम शूटिंग कर रहे थे तो वहां कभी कोई उलटी कर रहा है तो कभी कोई कुछ, तो कभी स्टेडी कैमरा नहीं चल रहा है। कभी फोकस नहीं आ रहा है। वहां लगभग दस लोगों के साथ ऐसा हुआ। हालांकि हमने फिर वहां शूट तो किया। तो ऐसी चीजों पर कभी विश्वास होता है, कभी लगता है कि हर चीज के पीछे कुछ साइंटिफिक चीजें होती होंगी। अमर कहते हैं कि हमने शूटिंग के वक़्त थोड़े रूल्स बना कर रखे थे कि परफ्यूम छिड़क कर मत आओ, झूंड में रहो, इस सब चीजों को फॉलो करने की कोशिश की था।
राजकुमार से लेकर ओनिर और राज डीके साथ काम
अमर कहते हैं कि मैंने राजकुमार गुप्ता से लेकर ओनिर, राज डीके सबके साथ काम किया है। राजकुमार के साथ तो आमिर फिल्म से जुड़ा रहा हूं। मुझ पर उनका प्रभाव तो है। लेकिन मेरा अपना सिनेमा होगा। आप उनसे क्राफ्ट बहुत सीखते हो। लेकिन आप उनकी नक़ल न करें। मैं भी अपने एक्सपीरियंस को लेकर आगे बढ़ना चाहता हूं। अमर कहते हैं कि मैंने अपने तरीके से एक अलग तरह की कहानी कहने की कोशिश की है। अब देखता हूं कि आगे क्या होता है।
राजकुमार राव-श्रद्धा कपूर के साथ अनुभव
अमर कहते हैं कि राजकुमार राव एक ऐसे अभिनेता हैं, जो पानी की तरह हैं, वह किसी भी आकार में ढल जाते हैं। ऐसे कलाकार के साथ आपका आधा काम यूं ही पूरा हो जाता है। वह बेस्ट प्लेयर हैं टीम से। मैंने जब उनको कहा कि इस फिल्म में उनको दर्जी बनना है तो उन्होंने कहा कि मेरे घर में मशीन भेज दो, मैं सीख लूंगा। डिक्शन पर काम करने को कहा तब भी तैयार हो गए। उनसे मोटिवेशन मिलता है और आप फुल चार्ज हो जाते हैं। ऐसा नहीं था कि मैं फर्स्ट टाइम डायरेक्टर हूं तो वह ध्यान नहीं दे रहे थे। वह पूरा ध्यान दे रहे थे। अमर कहते हैं कि मैंने जबसे सोचा था कि मुझे फिल्म बनानी है, तबसे मेरे दिमाग में था कि राजकुमार राव के साथ काम करना भी है। श्रद्धा कपूर के साथ काम करने के अपने अनुभव के बारे में अमर कहते हैं कि मेरे दिमाग में श्रद्धा का ही नाम था।लेकिन मुझे लगा था कि पता नहीं वो राजी होंगी कि नहीं, क्योंकि मैं फर्स्ट टाइम निर्देशक था। लेकिन राज डीके, दिनेश विजयन ने कहा कि वह बात कर लेंगे और श्रद्धा ने कहानी सुनी और तुरंत हां कह दिया। मुझे भी उनके जैसा ही नाम चाहिए था, जो छोटे टाउन के कैरेक्टर में फिट बैठ जाएँ। मैं कानपुर से हूं तो जानता हूं कि वहां की लड़कियां किस तरह की होती हैं। उसमें मुझे भोला-भाला इनोसेंस होता है। श्रद्धा में वह बात नजर आती हैं।
राजकुमार-पंकज त्रिपाठी की जुगलबंदी
अमर कहते हैं कि हमारी फिल्म की यह भी यूएसपी रही है कि दोनों की जुगलबंदी लोगों को इसमें भी देखने का मौक़ा मिलेगा। ट्रेलर में सिर्फ झलक मिली है। एक केमेस्ट्री है दोनों में। सेट पर आने से पहले हमलोग एक गेस्ट हाउस में रहते थे, जहां पर सब एक दूसरे के साथ थे। सबलोग ठंड का मौसम था, तो आग जला कर खाना खाते थे। हमलोगों की बॉन्डिंग हो गई थी।
सागर स्टूडियो में मैंने देखा कि वानर सेना दौड़ रही है
अमर बताते हैं कि मैंने अपने करियर की शुरुआत टीवी से की थी। दिल्ली में जन्में अमर ने कानपुर में लंबा समय बिताया है। साइंस ग्रेजुएट होने के बाद सबने घर में कहा कि मुझे इंजीनयर बनना है। लेकिन मैंने कहा कि नहीं मैं ये नहीं बनना चाहता था। मैंने कह दिया था कि मैं एयर फ़ोर्स में जाना चाहता हूं। लेकिन फिर मैंने कहा कि नहीं मुझे फिल्में बनानी हैं। मैं तो फिल्मी बफ शुरू से रहा हूं। कोई भी फिल्म मैं शुक्रवार को देख लेता था। मुझे वो दुनिया अच्छी लगती थी। आस-पास के लोग तो मुझे हीरो बोलते थे। उस वक़्त मैंने दिल्ली से जर्नलिज्म का कोर्स किया। मैं मुंबई आया। मेरा दोस्त ठाणे में रहता था। उसने मुझे कहा कि अंधेरी में काफी सारे स्टूडियो हैं। मैं अंधेरी ईस्ट चला गया था। मैं 2006 में आया था। वहां मैं सागर स्टूडियो में गया था। मैं किसी तरह अंदर आया तो मैंने देखा कि वानर सेना दौड़ रही है। मैं जाकर खड़े हुआ तो मुझे समझ आया कि ये रामायण वाला स्टूडियो है।वहीं मुझे एक लड़की मिली और उन्होंने कहा कि इस शो से जुड़ जाओ। तो मैं वहां जुड़ गया। इसी क्रम में मुझे राजकुमार गुप्ता के साथ जुड़ना हुआ और इसके बाद लोगों के साथ जुड़ता गया। अनुभव के साथ आगे बढ़ा। अमर बताते हैं कि जॉन और राजकुमार गुप्ता के साथ एक फिल्म बनने वाली थी। लेकिन फिर बात नहीं बन पाई।
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