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उत्तराखंड विधानसभा चुनाव: इस बार आसान नहीं चैंपियन की राह

उत्‍तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 इस बार कुंवर प्रणव के लिए चुनौती भरा होने जा रहा है। कांग्रेस से बागी होने के बाद भाजपा से टिकट से चुनाव लडऩा व जीतना किसी चुनौती से कम नहीं है।

By BhanuEdited By: Published: Wed, 18 Jan 2017 01:04 PM (IST)Updated: Wed, 18 Jan 2017 01:09 PM (IST)
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव: इस बार आसान नहीं चैंपियन की राह
उत्तराखंड विधानसभा चुनाव: इस बार आसान नहीं चैंपियन की राह

हरिद्वार, [जेएनएन]: भले ही भाजपा प्रत्याशी कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन खानपुर से तीन बार विधायक रह चुके हैं, लेकिन इस बार विधानसभा 2017 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी को ग्राम प्रधानों के गुट एवं भाजपा कार्यकर्ता के निर्दलीय चुनाव लडऩे के चलते बगावती तेवर झेलने पड़ेंगे।

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लंढौरा के रहने वाले कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन को राजनीति विरासत से मिली है। कुंवर प्रणव के पिता कुंवर नरेंद्र सिंह वर्ष 1985 से 1989 तक दलित मजदूर किसान पार्टी से विधायक रहे हैं। इसके बाद पिता की विरासत को कुंवर प्रणव सिंह ने आगे बढ़ाया है।

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कुंवर प्रणव सिंह ने उच्च शिक्षा हासिल करने के साथ ही सिविल सर्विसेज की तैयारी की, लेकिन पिता की विरासत को आगे बढ़ाने के लिए कुंवर प्रणव ङ्क्षसह चैंपियन ने वर्ष 2002 में निर्दलीय चुनाव लक्सर सीट से लड़ा था।

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इस सीट पर जीत दर्ज करने के बाद वर्ष 2007 में कांग्रेस ने कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन को टिकट दिया। पार्टी से टिकट के बाद दूसरी बार विधानसभा पहुंचे कुंवर प्रणव सिंह चैंपियन ने वर्चस्व कायम रखा और वर्ष 2012 में कांग्रेस से टिकट हासिल करने के बाद जीत हासिल की।

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इस दौरान जहां उन्होंने अपना कद बढ़ाया, वहीं अपनी पत्नी को राजनीति में स्थापित करने से नहीं चूके। वर्ष 2005 व 2010 में रानी देवयानी दल्लावाला सीट से जिला पंचायत सदस्य बनीं, जबकि परिसीमन के बाद वर्ष 2015 में रानी देवयानी प्रहलादपुर सीट से जिपं सदस्य चुनी गई हैं।

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उत्तराखंड विधानसभा चुनाव 2017 इस बार कुंवर प्रणव के लिए चुनौती भरा होने जा रहा है। कांग्रेस से बागी होने के बाद भाजपा से टिकट से चुनाव लडऩा व जीतना किसी चुनौती से कम नहीं है। स्थानीय तौर पर ग्राम प्रधान संगठनों ने भी चैंपियन का विरोध किया था, जबकि खानपुर संगठन ने चैंपियन का समर्थन किया था।

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वहीं, वर्ष 2012 में भाजपा से चुनाव लड़े रविंद्र पनियाला भी निर्दलीय लड़ने की तैयारी में है, जिसके चलते गुर्जर समाज का वोट बंटेगा। ग्राम प्रधान संगठन में दो फाड़ होने के चलते चैंपियन को मुश्किलें पेश आनी तय हैं।

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