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Lok Sabha Election 2024: यूपी की स‍ियासत में 'दल‍ित आबादी का दम', वोट बैंक में सेंध लगा रही भाजपा; सपा-कांग्रेस भी कोशिश में जुटे

जातीय समीकरणों की धुरी पर घूमती उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित आबादी की सदैव अहम भूमिका रही है। देश के सबसे बड़े राज्य में 21.1 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी) यानी दलितों की आबादी है। आजादी के बाद कांग्रेस के साथ खड़ा रहा दलित तकरीबन ढाई दशक तक बसपा के साथ रहा लेकिन अब उसमें भाजपा गहरी सेंध लगाते दिख रही है।

By Ajay Jaiswal Edited By: Versha Singh Published: Mon, 11 Mar 2024 01:11 PM (IST)Updated: Mon, 11 Mar 2024 01:11 PM (IST)
Lok Sabha Election 2024: यूपी की स‍ियासत में 'दल‍ित आबादी का दम'

लखनऊ, अजय जायसवाल। जातीय समीकरणों की धुरी पर घूमती उत्तर प्रदेश की राजनीति में दलित आबादी की सदैव अहम भूमिका रही है। देश के सबसे बड़े राज्य में 21.1 प्रतिशत अनुसूचित जाति (एससी) यानी दलितों की आबादी है। आजादी के बाद कांग्रेस के साथ खड़ा रहा दलित तकरीबन ढाई दशक तक बसपा के साथ रहा, लेकिन अब उसमें भाजपा गहरी सेंध लगाते दिख रही है। बसपा से खिसकते दलित वोट बैंक को सपा के साथ ही कांग्रेस भी हथियाने की कोशिश में है। सपा-कांग्रेस गठबंधन को उम्मीद है कि दलित-मुस्लिम गठजोड़ से उन्हें अबकी चुनाव में लाभ होगा। केंद्रीय सत्ता की लड़ाई में जिस तरह से दलों की पैनी नजर दलित वोट बैंक पर है, उसे बता रहे हैं राज्य ब्यूरो प्रमुख अजय जायसवाल।

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आजादी के बाद चार दशक तक केंद्र की सत्ता में रहने वाली कांग्रेस पार्टी की झोली में जाने वाले जिस दलित वोट बैंक को कांशीराम-मायावती अपना बनाकर एक नहीं, चार-चार बार उत्तर प्रदेश की सत्ता हासिल करने में कामयाब रही हैं, अब उस पर भाजपा सहित दूसरे दल नजरें गड़ाए हैं। भाजपा ने एक दशक पहले देश के बड़े दलित नेताओं से हाथ मिलाकर लोकसभा चुनाव में सफलता हासिल कर केंद्र में मोदी सरकार बनाई।

दलितों को रिझाने के लिए लगातार उनके हितों की योजनाएं चलाने वाली मोदी सरकार ने अहम पदों पर दलितों को तव्वजो भी दी। नतीजा यह रहा कि 24 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से अनुसूचित जाति की 17 आरक्षित सीटों पर बसपा सहित दूसरे दलों की पकड़ ढीली होती जा रही है।

वर्ष 2007 में सूबे में सरकार बनाने वाली बसपा वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में शून्य पर सिमट गई। पिछले चुनाव में धुर विरोधी सपा से गठबंधन कर बसपा चुनाव मैदान में उतरी तो माना गया कि गठबंधन कमाल करेगा, लेकिन तब भी बसपा को 17 में से सिर्फ दो सुरक्षित सीट लालगंज और नगीना में सफलता मिली। शेष 15 सीटों पर भाजपा ‘कमल’ खिलाने में कामयाब रही।

भाजपा के पूरी शिद्दत से दलित वोटरों में गहरी सेंध लगाने की कोशिश का नतीजा रहा कि पिछले विधानसभा चुनाव में बसपा एक भी सुरक्षित सीट पर जीत दर्ज नहीं करा सकी। अबकी लोकसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस साथ हैं, जबकि बसपा अकेले ही लड़ने को तैयार है। क्लीन स्वीप के लक्ष्य के साथ चुनाव मैदान में उतरी भाजपा सभी 17 सुरक्षित सीटों पर जीत सुनिश्चित करने के लिए अनुसूचित जाति महासम्मेलन, दलित सम्मेलन और दलित बस्तियों में भोजन के जरिए यह बताने में लगी है कि मोदी-योगी की सरकार ही अनुसूचित वर्ग का पूरा ध्यान रख रही हैं। कांग्रेस ने तो आंबेडकर के नाम पर अनुसूचित वर्ग की उपेक्षा की है। लोगों का प्रयोग सिर्फ वोट और सत्ता हथियाने के लिए किया गया।

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटें

नगीना, बुलंदशहर, हाथरस, आगरा, शाहजहांपुर, हरदोई, मिश्रिख, मोहनलालगंज, इटावा, जालौन, कौशाम्बी, बाराबंकी, बहराइच, बांसगांव, लालगंज, मछलीशहर व राबर्ट्सगंज।

इन जिलों में है 25 प्रतिशत से अधिक दलित आबादी

आंकड़े प्रतिशत में

सोनभद्र 41.92

कौशाम्बी 36.10

सीतापुर 31.87

हरदोई 31.36

उन्नाव 30.64

रायबरेली 29.83

औरैया 29.69

झांसी 28.07

जालौन 27.04

बहराइच 26.89

चित्रकूट 26.34

महोबा 25.78

मीरजापुर 25.76

आजमगढ 25.73

लखीमपुर खीरी 25.58

महामाया नगर 25.20

फतेहपुर 25.04

ललितपुर 25.01

कानपुर देहात 25.08

अंबेडकर नगर 25.14

सपा-कांग्रेस भी पीछे नहीं

भाजपा के मिशन-80 के विजय रथ को थामने के लिए समाजवादी पार्टी का अबकी पीडीए (पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक) पर पूरा भरोसा है। दलितों में पार्टी की पैठ बढ़ाने के लिए सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने जहां करोड़ों दलितों के श्रद्धा के केंद्र महू जाकर बाबा साहब डा. भीमराव आंबेडकर को श्रद्धांजलि दी, वहीं रायबरेली में बसपा के संस्थापक कांशीराम की प्रतिमा का भी अनावरण किया है।

दलितों को सपा से जोड़ने के लिए अखिलेश ने बाबा साहब भीमराव आंबेडकर वाहिनी भी बनाई है। रालोद का साथ छूटने पर अखिलेश अब भीम आर्मी के संस्थापक चंद्र शेखर के जरिए पश्चिमी उत्तर प्रदेश में दलितों को साधने में लगे हैं। चंद्र शेखर को सपा चुनाव भी लड़ा सकती है। कांग्रेस भी दलितों को एक बार फिर अपनी तरफ मोड़ने के लिए सक्रिय है। राहुल गांधी और प्रियंका वाड्रा खुद दलितों के बीच जाते रहते हैं। सपा से हाथ मिलाने पर कांग्रेस के नेताओं को लगता है कि दलित अब उनकी ओर आएगा क्योंकि मायावती से दलितों का मोह भंग हो चुका है।

यहां निर्णायक

राज्य की 80 लोकसभा सीटों में से भले ही 17 ही अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं, लेकिन तकरीबन 40 सीटें ऐसी हैं जहां की 25 फीसद से ज्यादा आबादी अनुसूचित जाति की है। इनमें वे सीटें भी हैं जो आरक्षित नहीं हैं, लेकिन उन पर जीत की चाबी दलितों के हाथ में है। खीरी, सीतापुर, मिश्रिख, हरदोई, मोहनलालगंज, उन्नाव, रायबरेली, प्रतापगढ़, अमेठी, अकबरपुर, फैजाबाद, बाराबंकी, बस्ती, खलीलाबाद, आजमगढ़, लालगंज, राबर्ट्सगंज, फूलपुर, इलाहाबाद, चायल, फतेहपुर, बांदा, हमीरपुर, झांसी, घाटमपुर, बिल्हौर, इटावा, हाथरस, अलीगढ़ व सहारनपुर सीटों पर अनुसूचित जाति की ठीकठाक आबादी है।

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