Move to Jagran APP

यूपी चुनाव: अखिलेश ने कहा, मेरे पास 5 साल का हिसाब, वे भी बताएं अपना काम

अखिलेश यादव को लगता है कि भाजपा और बहुजन समाज पार्टी के भ्रामक प्रचार के बाद भी जनता उनके भुलावे में नहीं आई और उसने काम के आधार पर सपा का समर्थन किया।

By Dharmendra PandeyEdited By: Published: Wed, 08 Mar 2017 07:52 AM (IST)Updated: Wed, 08 Mar 2017 08:46 AM (IST)
यूपी चुनाव: अखिलेश ने कहा, मेरे पास 5 साल का हिसाब, वे भी बताएं अपना काम
यूपी चुनाव: अखिलेश ने कहा, मेरे पास 5 साल का हिसाब, वे भी बताएं अपना काम
लखनऊ (जेएनएन)। मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मानते हैं कि उनकी सरकार गाजे बाजे के साथ एक बार फिर सत्ता लौट रही है। उन्हें लगता है कि भाजपा और बहुजन समाज पार्टी के भ्रामक प्रचार के बाद भी जनता उनके भुलावे में नहीं आई और उसने काम के आधार पर सपा का समर्थन किया।
अपने पांच कालिदास मार्ग स्थित सरकारी आवास में कल वह मिले तो चेहरे पर दो महीने से अधिक चले चुनाव प्रचार की थकान स्पष्ट थी। इसके बावजूद उन्होंने चुनाव, भाजपा और मुसलमान वोटों को लुभाने की कोशिशों पर बात की, पूरे विस्तार से बताया कि उन्होंने बहुत पहले प्रसिद्ध लेखक कृश्नचंदर की पुस्तक 'एक गधे की आत्मकथा पढ़ी थी और वह उन्हें बहुत पसंद आई थी। दैनिक जागरण के राज्य संपादक आशुतोष शुक्ल से उनकी बातचीत के अंश-
छह चरण हो गए। किधर जाता लग रहा है यह चुनाव?
- हम जीत रहे हैं। बहुत आराम से सरकार बना लेंगे।
आप चुनाव जीतते हैं तो वे कौन से काम होंगे जो प्राथमिकता के आधार पर आप करना चाहेंगे?
- चुनाव जीता तो 48 घंटे में शपथ लूंगा। एक्सप्रेस वे, मेट्रो रेल परियोजना, बिजली सुधार जैसे अपने पहले के कामों को ही आगे बढ़ाना चाहूंगा। हां, स्वास्थ्य सेवाओं में भी इस बार अलग से कुछ काम करने की इच्छा है। प्रधानमंत्री बार-बार बनारस को क्योटो बनाने की बात करते रहे हैं, मैं तो कहता हूं कि वह जो भी काम वहां करना चाहते हैं, हमें उसका नक्शा बनाकर भेज दें, काम मैं करा दूंगा।
...और चुनाव न जीते तो?
- तो परिणाम आने के एक हफ्ते बाद पार्टी का काम करने लगूंगा।
आपको क्यों लगता है कि लोग आपको दोबारा चुनेंगे?
- अपने काम के आधार पर। लोगों ने हम पर भरोसा किया है। मैं पहले दिन से काम की बात करता आया हूं। जहां गया या अब भी जहां जा रहा हूं, उस गांव, शहर और अपने प्रदेश की बात करता हूं। मेरी किसी से प्रतियोगिता नहीं है। मैं तो अपने पांच सालों का हिसाब देना निकला हूं। दूसरों से भी कहता हूं कि वे भी अपने काम का हिसाब दें लेकिन, वही भाग रहे हैं। वह कभी स्कैम की बात ले आते हैं तो कभी कसाब और कब्रिस्तान की। कभी बिजली की बात करते हैं तो कभी होली और रमजान की। उन्हें भी अपने तीन साल का हिसाब देना चाहिए।
आपको नहीं लगता कि इस बार चुनाव में भाषा की मर्यादा खत्म हो गई? 
- यही तो मैं कह रहा हूं कि दूसरे लोगों ने बहुत आरोप लगाए। मैं तो जब किसी को कुछ कहता हूं तो लोग हंस देते हैं। जैसे, मैं मायावती जी को बुआ कहता हूं तो लोग हंसते हैं लेकिन, जब दूसरे लोग यही कहते हैं तो उन्हें मजा नहीं आता। अब इसके लिए मैं क्या करूं कि वह बुआ मेरी हैं लेकिन, राखी भाजपा नेताओं को बांधती हैं। 
...लेकिन, आपने भी तो गधे वाली बात अकारण ही उठा दी?
- मैंने तो विज्ञापन की बात कही थी। असलियत यह है कि मेरे कहने के बाद बहुत से लोगों ने वह विज्ञापन देखा। मुझको इतना कुछ कहा जा रहा था तो मैंने भी पलट कर गुुजरात के विज्ञापन की चर्चा कर दी।
आप कहते हैं आपने काम किया, भाजपा कहती है आपने कारनामे किए?
- मैं धन्यवाद देता हूं मीडिया को। अखबार, टीवी और सोशल मीडिया को धन्यवाद कि उनके कारण लोग इस बार किसी बहकावे में नहीं आए। जनता का हमें जो प्रबल समर्थन मिला वह तो बनारस में हुए हमारे रोडशो में दिख गया। उधर प्रधानमंत्री जी हैं कि बनारस में गाय को हरा चारा खिला रहे हैं, तीन-तीन रोड शो करने को विवश हुए।
आपने कांग्रेस के साथ दोस्ती की। कितनी लंबी चलने वाली है यह दोस्ती ?
- कल की बात कल पर छोड़ते हैं। हमने तो बड़े दिल से दोस्ती की है। यह दो युवाओं की दोस्ती है, लंबा चलेगी।  
युवा ! राहुल गांधी 46 बरस के हैं? 
- तो क्या हुआ। आजकल 50 तक आदमी युवा होता है।
सपा ने कांग्रेस को 105 सीटें दी थीं लेकिन, आप दोनों ने ही समझौते से आगे जाकर चुनाव लड़ा। अमेठी, रायबरेली, सहारनपुर और लखनऊ आदि शहरों में 23 ऐसी सीटें हैं जहां कांग्रेस और सपा के प्रत्याशी आमने-सामने लड़े। यह कैसा गठबंधन हुआ ?
- इन 23 में कुछ सीटें हमने जानकर छोड़ दीं। ये वे थीं जहां हम कभी जीते ही नहीं थे तो वहां सीटों का बंटवारा स्थानीय स्तर पर छोड़ दिया गया। बस, यह कहना चाहते हैं हम कि इन छोटी-मोटी बातों से गठबंधन पर कोई फर्क नहीं पडऩा।
गठबंधन होते समय बहुत जोरशोर से प्रचारित किया गया था कि आप और राहुल गांधी मिलकर चुनाव प्रचार करेंगे जबकि सांसद डिम्पल यादव और प्रियंका गांधी एक साथ निकलेंगी। आप लोग तो निकले लेकिन, प्रियंका नहीं दिखीं आपके साथ?
- यह कांग्रेस का अपना मामला है।  
सपा और बसपा ने मिलकर इस चुनाव में 186 मुसलमान प्रत्याशी उतारे। क्या आपको नहीं लगता कि ऐसी बातों के रिएक्शन में ध्रुवीकरण होता है? जब एक पार्टी केवल एक ही वर्ग के मत पाने की कोशिश करती दिखेगी तो दूसरा वर्ग भी क्षुब्ध होकर कोई एक पक्ष चुन सकता है?
- यह पहली बार तो हुआ नहीं है। 2012 में सपा, बसपा, कांग्रेस और पीस पार्टी ने भी करीब 80-80 उम्मीदवार उतारे थे। तो यह तो 320 हो गए। सब जीत तो जाते नहीं और इस बार तो बसपा ने केवल हमारे लोगों को हराने के लिए अपने प्रत्याशी उतारे। जहां हमने मुस्लिम उम्मीदवार दिए, वहीं बसपा ने भी मुस्लिम प्रत्याशी खड़े कर दिए। गोंडा, बहराइच, बलरामपुर कई जगह यही हुआ। इसीलिए तो मैं कहता हूं कि यह पार्टी भाजपा से मिली हुई है। हमेशा उसकी मदद करती है। हमारा उम्मीदवार न जीत सके, इसके लिए मायावती ने अपने लोग लड़ा दिए। हमने तो हमेशा आचार संहिता का सम्मान किया और कभी मुस्लिम कहकर वोट नहीं मांगा। हमने केवल इतना कहा कि साइकिल को याद रखना। दूसरी तरफ मायावती हैं जिन्होंने मुसलमान कहकर वोट मांगे। 
गायत्री प्रजापति के मामले में फिर कानून का पालन क्यों नहीं किया गया? बसपा में गए मंत्री विजय मिश्र को तो आपने बीच चुनाव बर्खास्त किया था। 
- मैंने पुलिस से कह दिया है कि गायत्री को पकड़ो। 
गायत्री प्रजापति चुनाव प्रचार करते हैं, वोट डालने जाते हैं। वह सबको दिखते हैं बस, पुलिस को नहीं मिलते। उनके लिए एअरपोर्ट पर अलर्ट होता है, कुर्की की नौबत आ जाती है। आपको नहीं लगता कि इन्हीं बातों का गलत संदेश जाता है?
- मैंने गायत्री की गिरफ्तारी के लिए कह दिया है। वह पकड़ा जाएगा।
चुनाव के बाद शिवपाल यादव की भूमिका क्या होने वाली है?
- अभी नहीं। इस पर 11 मार्च के बाद बात करेंगे।
आपको क्या लगता है कि पिछले पांच साल में आपने क्या पाया?
- अनुभव। यह आगे काम आएगा।
...और क्या खोया?
उम्र।

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.