Maharashtra assembly elections 2019 आज की शिवसेनाः बदले-बदले हुए सुरताल नजर आते हैं
Maharashtra assembly elections 2019 महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से ठीक पहले शिवसेना द़वारा मुस्लिमों आरक्षण की बात करने से लोगों का ध्यान शिवसेना की तरफ खिंच रहा है।
By Babita kashyapEdited By: Published: Thu, 10 Oct 2019 01:55 PM (IST)Updated: Thu, 10 Oct 2019 01:55 PM (IST)
मुंबई, ओमप्रकाश तिवारी। दशहरे की परंपरागत रैली में शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे द्वारा मुस्लिमों के आरक्षण का समर्थन करना अकेला मुद्दा नहीं है, जिस पर लोगों को अचरज हो रहा है। ऐसे कई मुद्दे हैं, जिनकी कल्पना शिवसेना के स्थापनाकाल से लेकर अब से कुछ वर्ष पहले तक भी नहीं की जा सकती थी। लेकिन सत्ता की मजबूरी में शिवसेना को अब वह सब कुछ करना पड़ रहा है।
हालांकि शिवसेना पहले भी गरीब मुस्लिमों के लिए आरक्षण की मांग का समर्थन कर चुकी है। उस समय भी यह सवाल उठा था कि क्या शिवसेना भी मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर चल पड़ी है ? अब चुनाव के समय फिर से मुस्लिमों को आरक्षण की बात करना फिर से लोगों का ध्यान शिवसेना की इस नई नीति की ओर खींच रहा है। ऐसा नहीं है कि शिवसेना हमेशा मुस्लिमों से दूर ही रही है। अपनी मुस्लिम विरोधी छवि के बावजूद 1995 में बनी उसकी पहली सरकार में ही साबिर शेख को श्रममंत्री बनाया गया था। शिवसेना संस्थापक बालासाहब ठाकरे के समय भी उनके कई भरोसेमंद शिवसैनिक एवं शाखा प्रमुख मुस्लिम हुआ करते थे। लेकिन शिवसेना की छवि मुस्लिम तुष्टीकरण की बात करने वाली पार्टी की कभी नहीं रही थी।
कुछ दिनों पहले ही जब शिवसेना के युवा नेता एवं युवा सेना के अध्यक्ष आदित्य ठाकरे वरली से नामांकन भरने जा रहे थे, तो वरली क्षेत्र में बड़े-बड़े होर्डिंग्स पर 'केम छो वरली ' लिखा दिखाई दे रहा था। यही नहीं, कहीं-कहीं तो इसी प्रकार का अभिवादन दक्षिण भारतीय समुदाय का भी होता दिखाई दिया।
बता दें कि अपने स्थापनाकाल में शिवसेना इन दोनों समुदायों पर कहर बरपाने के लिए जानी जाती है। शुरुवात में शिवसेना की ख्याति ही दक्षिण भारतीयों के विरुद्ध 'बजाओ पुंगी, भगाओ लुंगी ' के नारे के साथ हुई थी। उन दिनों शिवसेना मुंबई के सरकारी कार्यालयों में पढ़े-लिखे दक्षिण भारतीयों के नौकरी करने को लेकर यह प्रचारित कर रही थी कि इन दक्षिण भारतियों के कारण मराठी भाषियों का रोजगार मारा जा रहा है। लेकिन आज की शिवसेना उन्हीं दक्षिण भारतियों का अभिवादन करती नजर आ रही है।
गुजराती भाषा में 'केम छो वरली' के होर्डिंग्स पर तो कई मराठी भाषियों की भी प्रतिक्रिया देखने को मिली। कई मराठीभाषी यह कहते भी दिखाई दिए कि कहीं 100 गुजरातीभाषी मतों के चक्कर में शिवसेना एक लाख मराठीभाषी मत न गंवा बैठे।
कुछ लोगों का यह भी मानना है कि दक्षिण मुंबई में घटती मराठीभाषी आबादी और बढ़ती गुजराती भाषी आबादी को ध्यान में रखते हुए ही शिवसेना अब 'केम छो ' कहने को मजबूर हो रही है। ऐसी ही कुछ स्थिति हिंदी भाषी मतदाताओं के साथ भी इस बार नजर आ रही है। दिल्ली में अपनी बात हिंदी में ठीक से रखने के लिए शिवसेना संजय निरुपम जैसों को राज्यसभा तो भेजती रही है। लेकिन अब तक लोकसभा या विधानसभा में किसी को नहीं लड़वाया था। इस बार मूल रूप से मथुरा के रहनेवाले एनकाउंटर स्पेशलिस्ट प्रदीप शर्मा वसई से शिवसेना के उम्मीदवार हैं। हिंदी भाषी उम्मीदवार के रूप में प्रदीप शर्मा की चर्चा भाजपा के दो हिंदी भाषी उम्मीदवारों से कहीं ज्यादा हो रही है। प्रदीप शर्मा बाहुबली हितेंद्र ठाकुर के पुत्र क्षितिज ठाकुर को टक्कर दे रहे हैं।
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