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Maharashtra assembly elections 2019: नारायण राणे के कारण दो जिलों में आमने-सामने हैं शिवसेना-भाजपा

Maharashtra assembly elections 2019 महाराष्ट्र में भले शिवसेना-भाजपा गठबंधन मिलकर चुनाव लड़ रहे हों लेकिन सिंधुदुर्ग और रत्नागिरि में भाजपा की कमान नारायण राणे के हाथों में है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Wed, 16 Oct 2019 10:37 AM (IST)Updated: Wed, 16 Oct 2019 10:37 AM (IST)
Maharashtra assembly elections 2019: नारायण राणे के कारण दो जिलों में आमने-सामने हैं शिवसेना-भाजपा
Maharashtra assembly elections 2019: नारायण राणे के कारण दो जिलों में आमने-सामने हैं शिवसेना-भाजपा

सिंधुदुर्ग, ओमप्रकाश तिवारी। पूरे महाराष्ट्र में शिवसेना-भाजपा गठबंधन करके चुनाव लड़ रहे हैं, लेकिन कोंकण के दो सागरतटीय जिलों सिंधुदुर्ग और रत्नागिरि में ये दोनों दल आपस में ही ताल ठोंकते दिखाई दे रहे हैं। यहां भाजपा की कमान नारायण राणे के हाथों में है, जो शिवसेना को फूटी आंखों नहीं सुहाते। 

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कभी शिवसेना के ही मुख्यमंत्री रहे नारायण राणे बेहतर भविष्य की तलाश में 2005 में शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में चले गए थे। उद्धव ठाकरे के नेतृत्व का विरोध करने के कारण तब शिवसेना प्रमुख बालासाहब ठाकरे द्वारा उन्हें बाकायदा निष्कासित किया गया था। तभी से उनकी शिवसेना से खटकी हुई है। शिवसेना से निष्कासन के बाद तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रभाराव इस मराठा नेता को इस आश्वासन के साथ कांग्रेस में लाई थीं कि उन्हें जल्दी ही मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा। हालांकि, प्रभाराव का यह आश्वासन कभी पूर्ण नहीं हुआ। कांग्रेस में विलासराव देशमुख के बाद कभी अशोक चह्वाण तो कभी पृथ्वीराज चह्वाण मुख्यमंत्री बनते रहे, लेकिन राणे का नंबर कभी नहीं आया। यहां तक कि 2014 के बाद शुरू हुई महाराष्ट्र कांग्रेस की दुर्गति के दौर में भी इस तेजतर्रार नेता का कांग्रेस ने कोई उपयोग नहीं किया तो राणे ने 'महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष'  नाम से अपना अलग दल बनाकर आगे बढ़ने का फैसला किया। 

सिंधुदुर्ग में राणे के कार्य को याद करते हैं लोग 

दरअसल राणे को अब सिर्फ अपने नहीं, बल्कि अपने दो पुत्रों नीलेश और नीतेश के भी भविष्य की चिंता थी। शिवसेना में रहते नारायण राणे ने कोकण के सिंधुदुर्ग और रत्नागिरि में अपना अच्छा दबदबा कायम किया था। खासतौर से उनके गृहजनपद सिंधुदुर्ग के लोग उनके कामों को याद भी करते हैं। कांग्रेस में जाने के बाद वह मंत्री तो रहे, लेकिन कोकण की राजनीति में उनका दखल सीमित हो गया, क्योंकि वह कांग्रेस के सहयोगी दल राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के हिस्से का क्षेत्र माना जाता था। वहीं, राणे संपूर्ण कोकण में खुलकर खेलना चाहते हैं। यह अवसर भाजपा में उपलब्ध था, क्योंकि भाजपा कभी भी कोकण के सिंधुदुर्ग, रत्नागिरि और रायगढ़ जिलों में मजबूत नहीं रही। 2014 में शिवसेना से खटास पैदा होने के बाद तो मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस को शिवसेना के प्रभाव वाले कोकण में भाजपा को मजबूत करने की और ज्यादा जरूरत महसूस होने लगी। यही जरूरत राणे को भाजपा के करीब लाई। 

 शिवसेना से नाराजगी मोल नहीं लेना चाहते थे भाजपा आलाकमान 

पिछले दो-तीन वर्षों से राणे के भाजपा में जाने की अटकलें लगती रही हैं,लेकिन इसी बीच शिवसेना से भाजपा के संबंध पुनः अच्छे होने लगे। भाजपा आलाकमान राणे को लेकर शिवसेना से नाराजगी मोल नहीं लेना चाहता था। इसके बावजूद कोंकण में राणे की उपयोगिता देखते हुए भाजपा ने उन्हें अपने कोटे से राज्यसभा की सदस्यता दी। यह शुरुआत थी शिवसेना को कोंकण में चुनौती देने की। जब शिवसेना के साथ 2019 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन तय हो गया, तो भाजपा ने अगला कदम बढ़ाया राणे की परंपरागत कणकवली सीट से उनके छोटे पुत्र नीतेश राणे को भाजपा का आधिकारिक टिकट देकर। नीतेश इसी सीट पर 2014 में कांग्रेस के टिकट पर जीतकर पहली बार विधायक बने थे। शिवसेना को यह पसंद नहीं आया। जवाब में उसने राणे के ही 25 साल सहयोगी रहे सतीश सावंत को नीतेश राणे के विरुद्ध टिकट देकर रार की नई राह खोल दी।

इसके बाद तो भाजपा को मौका मिल गया। उसने सिंधुदुर्ग और रत्नागिरि में कई जगह प्रत्यक्ष या परोक्ष शिवसेना के विरुद्ध उम्मीदवार खड़े कर दिए। जैसे सावंतवाड़ी सीट पर नारायण राणे के ही दाहिने हाथ रहे राजन तेली शिवसेना के दीपक केसरकर को निर्दलीय चुनौती दे रहे हैं। उनको भाजपा का पूरा समर्थन मिल रहा है। दीपक केसरकर देवेंद्र फडणवीस की ही सरकार में गृह राज्यमंत्री रहे हैं, लेकिन भाजपा और नारायण राणे की संयुक्त ताकत के साथ लड़ रहे राजन तेली के सामने उनकी हालत पतली है। 

उद्धव बनाम नारायण राणे

देश का पहला पर्यटन जिला घोषित हो चुके गोवा से सटे सिंधुदुर्ग और अपने हापुस आमों के लिए पूरी दुनिया में मशहूर रत्नागिरि की और भी कई सीटों पर शिवसेना उम्मीदवारों को राजन तेली जैसे ही भाजपा-राणे समर्थित उम्मीदवारों का सामना करना पड़ रहा है। कुल मिलाकर इस क्षेत्र में लड़ाई उद्धव बनाम नारायण राणे हो चली है, लेकिन भाजपा इसे 'दोस्ताना टकराव' तक ही सीमित रखना चाहती है, क्योंकि उसे चुनाव बाद उसी शिवसेना के साथ मिलकर सरकार भी चलाना है। यही कारण है कि मंगलवार को नीतेश राणे के प्रचार के लिए कणकवली पहुंचे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने नीतेश को संयम से रहने की सलाह दे डाली।

आक्रामकता के साथ-साथ संयम की जरूरत

फडणवीस ने कहा कि नीतेश राणे ने अपने पिता नारायण राणे से आक्रामकता सीखी है। अब वह हमारी पाठशाला में आ रहे हैं, जहां उन्हें थोड़ा संयम भी सीखना पड़ेगा, क्योंकि राजनीति में आक्रामकता के साथ-साथ संयम की भी जरूरत पड़ती है। भाजपा जानती है कि शिवसेना को अपने इस गढ़ में किसी और की घुसपैठ रास नहीं आएगी। जरा-सी भी असावधानी संबंधों में खटास पैदा कर सकती है। भाजपा इससे बचते हुए कोंकण की खूबसूरत हरियाली के बीच अपना रास्ता बनाना चाहती है, जिसके अगुआ होंगे नारायण राणे। देवेंद्र फडणवीस द्वारा पढ़ाया गया संयम का पाठ थोड़ा-थोड़ा राणे ने भी सीख लिया है। यही कारण है कि मंगलवार की सभा में राणे ने एक शब्द भी शिवसेना के विरुद्ध नहीं बोला।

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