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भाजपा के ही सामने है झारखंड में अपना गढ़ बचाने की सबसे बड़ी चुनौती, जानें कैसे

गठबंधन के तहत भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में एक सीट गिरिडीह आजसू पार्टी को दी है। इसका असर अन्य सीटों पर भी दिखेगा क्योंकि आजसू पार्टी का आधार वोट भाजपा को शिफ्ट होगा।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 17 May 2019 09:47 AM (IST)Updated: Fri, 17 May 2019 09:47 AM (IST)
भाजपा के ही सामने है झारखंड में अपना गढ़ बचाने की सबसे बड़ी चुनौती, जानें कैसे
भाजपा के ही सामने है झारखंड में अपना गढ़ बचाने की सबसे बड़ी चुनौती, जानें कैसे

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। देश भर में आखिरी चरण के चुनाव के साथ ही झारखंड में भी अंतिम चरण का मतदान 19 मई को निपट जाएगा। फिलहाल संथाल परगना की तीन सीटों पर मतदान होना बाकी है। अब तक राज्य की 11 सीटों पर हो चुके मतदान के बाद राजनीतिक दलों को अपना गढ़ बचाने की चुनौतियां हैं। वर्ष 2014 के मोदी लहर में भाजपा ने 14 में से 12 सीटों पर कब्जा कर लिया था। संथाल परगना की दो सीटों पर झारखंड मुक्ति मोर्चा ने जीत हासिल करने में कामयाबी पाई थी। इन दोनों दलों के अलावा किसी अन्य दल का खाता भी नहीं खुल पाया था। इस लिहाज से भारतीय जनता पार्टी के समक्ष चुनौतियां सबसे ज्यादा है कि वह सीटों पर कब्जा बरकरार रखे।

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गठबंधन के तहत भारतीय जनता पार्टी ने राज्य में एक सीट गिरिडीह आजसू पार्टी को दी है। इसका असर अन्य सीटों पर भी दिखेगा, क्योंकि आजसू पार्टी का आधार वोट भारतीय जनता पार्टी को शिफ्ट होगा। इससे इतर आजसू पार्टी को मोदी लहर का लाभ होगा और इस क्षेत्रीय दल का प्रतिनिधि अगर कामयाब हुआ तो पहली बार लोकसभा तक उनकी पहुंच होगी।

वैसे भाजपानीत एनडीए गठबंधन का दावा है कि सभी सीटों पर कामयाबी मिलेगी, लेकिन विपक्ष ने भी तगड़ी गोलबंदी की है। ज्यादातर सीटों पर सीधा संघर्ष हो रहा है। इससे यह स्पष्ट है कि जीत-हार का अंतर कम हो सकता है। फिलहाल संथाल परगना की तीन सीटों पर मतदान होने के बाद स्थिति पूरी तरह स्पष्ट होगी। इन तीन सीटों में से दो पर झारखंड मुक्ति मोर्चा का कब्जा है। संथाल परगना का क्षेत्र झामुमो का गढ़ माना जाता है और इसे बचाने के लिए उसने पूरी ताकत झोंकी है।हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत भाजपा के कई स्टार प्रचारकों के आने के बावजूद विपक्षी महागठबंधन यहां राष्ट्रीय स्तर के किसी प्रचारक को नहीं उतार पाया। पश्चिम बंगाल से सटे इस इलाके में बंगाल सरीखी राजनीति का पुट भी देखने को मिल रहा है। भारतीय जनता पार्टी का प्रचार करने संथाल परगना गईं रांची की महापौर आशा लकड़ा पर हमला इसकी बानगी है। स्थिति बिगड़ सकती थी, लेकिन समय रहते महापौर के सचेत हो जाने के कारण हमलावर सफल नहीं हो पाए। अब तक राज्य में कुछ स्थानों पर छिटपुट घटनाओं को छोड़ मतदान के दौरान ज्यादा ¨हसा नहीं हुई है। मतदान का प्रतिशत भी बेहतर रहा है, जिसे अच्छा संकेत माना जा रहा है।

लालू के तीर : वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव राजद प्रमुख लालू प्रसाद की गैर-मौजूदगी में लड़ा जा रहा है। चारा घोटाले में सजायाफ्ता होने की वजह से वे सक्रिय भूमिका में नहीं हैं। उनका स्वास्थ्य भी बेहतर नहीं है,लेकिन सोशल मीडिया के जरिये उन्होंने अपनी भूमिका कमोबेश बनाए रखी है। फिलहाल उन्होंने इसी के सहारे बयानों के तीर विरोधियों पर छोड़े हैं। बिहार में उनके निकटतम प्रतिद्वंद्वी जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं। नीतीश कुमार ने अपनी सभाओं में राष्ट्रीय जनता दल के चुनाव चिह्न लालटेन पर निशाना साधा तो लालू प्रसाद ने अपने अंदाज में ही उसका जवाब दिया। दो पुराने दोस्तों का यह संवाद राजनीति में दिलचस्पी लेने वालों के लिए आकर्षण का विषय रहा। नीतीश कुमार और लालू प्रसाद का राजनीतिक स्कूल एक ही रहा है और परिस्थितियों के मुताबिक, वे समझौता भी करते रहे हैं। यह दीगर है कि दोनों एक-दूसरे को निशाने पर लेने का कोई मौका नहीं चूकते। जब नीतीश कुमार ने बिहार में राजद को छोड़ भाजपा संग सरकार बनाई, तो लालू ने उन्हें पलटूराम की संज्ञा दे डाली।

इसी प्रकार लालू प्रसाद की पार्टी के चुनाव चिह्न लालटेन पर जब नीतीश कुमार ने तंज कसा तो लालू ने खुला पत्र लिखकर अपनी बातें रखीं। लालटेन को अंधकार से लड़ाई का प्रतीक बताया तो तीर को 'हिंसा का द्योतक'। वैसे लालू प्रसाद के लिए सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि वे कानूनी पचड़े में चौतरफा घिरे हैं और उत्तराधिकार को लेकर उनके दोनों पुत्र अक्सर उलझते हुए नजर आते हैं। कानूनी बाध्यता की वजह से सोशल मीडिया के अलावा कोई अन्य जगह उनके लिए मुफीद नहीं है, सो वे इसका भरपूर फायदा उठा रहे हैं। इसके अलावा उनके पास कोई चारा भी नहीं है। प्रावधान के मुताबिक, वे सप्ताह में एक दिन निर्धारित समय में लोगों से मुलाकात कर सकते हैं। चुनाव से पूर्व उनसे मुलाकात करने वाले लोगों की लिस्ट लंबी हुआ करती थी। लालू प्रसाद ने अस्पताल से ही महागठबंधन की सीटों का निर्धारण किया। इसके अलावा कुछ जटिल राजनीतिक मसलों को भी सुलझाया। टिकट की चाहत में उनके पास आने वाले लोगों की तादाद ज्यादा थी, लेकिन अब राजनीतिक गरज से उनके पास आने वाले लोगों की संख्या घटी है और करीबी रिश्तेदार मुलाकात करने और मिजाजपुर्सी को आ रहे हैं। बीमार रहने की वजह से उन्हें अदालत में सीधे पेशी से छूट मिल रही है, लेकिन अब चारा घोटाले की जांच कर रही सीबीआइ की अदालत ने उन्हें पेश होने का हुक्म दिया है। लालू प्रसाद के अधिवक्ता उनकी खराब तबीयत का हवाला देकर इसमें छूट की मांग कर सकते हैं।

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