लोकसभा चुनाव 2019: बिहार में हीरो कौन-पीएम मोदी या सीएम नीतीश, जानिए
लोकसभा चुनाव को लेकर बिहार में एक ओर केंद्र सरकार अपने मुद्दे लेकर जनता के बीच जाएगी तो वहीं राज्य की नीतीश कुमार सरकार भी अपनी बात जनता को बताएगी। हीरो कौन होगा जनता तय करेगी।
पटना [मनोज झा]। राजनीतिक रूप से बेहद अहम बिहार में न तो मुद्दों की कमी है और न ही सियासी किरदारों की। राजग के घटक भाजपा, जदयू और लोजपा ने अपने-अपने कोटे की सीटों पर नाम तय कर लिए हैं। राजग के साथ एक प्लस प्वाइंट यह भी है कि उसके घटक दल शुरू से न सिर्फ एकजुट दिख रहे हैं, बल्कि वोटरों तक भी यह संदेश पहुंच रहा है।
उधर, महागठबंधन में भी ज्यादातर नाम तय किए जा चुके हैं, लेकिन वहां कई सीटों पर अभी पेच फंसा हुआ है।कुल मिलाकर चुनावी रण में दोनों खेमे मोर्चाबंद हो गए हैं। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि दोनों खेमे किन मुद्दों को लेकर कैसी व्यूहरचना के साथ और किन-किन महारथियों के बूते रणक्षेत्र में उतरने जा रहे हैं।
राजग के लिए बिहार में सबसे बड़ा और दमदार मुद्दा विकास ही है। इसी क्रम में केंद्र की कुछ प्रमुख योजनाएं बड़ा चुनावी मुद्दा बनने जा रही हैं। यदि संप्रग की मनरेगा योजना को अपवाद मान लें तो यह बात भी
अपनी जगह दुरुस्त है कि हाल के वर्षों में केंद्र सरकार की किसी योजना का गांवों तक शायद ही प्रभावी असर दिखाई दिया हो।
मोदी सरकार ने उज्ज्वला सरीखी योजनाओं के जरिये इस रवायत को तोड़ा है। नई-नवेली किसान सम्मान योजना को लेकर भी अन्नदाताओं का मनमिजाज बदला-बदला सा दिखाई देता है। केंद्र की इन योजनाओं से अलग यदि बिहार में प्रदेश सरकार के कामकाज की बात करें तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के पास खम ठोंकने के लिए कई ठोस मुद्दे हैं।
नीतीश कुमार का दावा है कि बिजली और सड़क के मोर्चे पर उनकी सरकार ने बहुत काम किया है, लेकिन विरोधी दल हाल की कुछ घटनाओं का हवाला देकर कानून एवं व्यवस्था के मुद्दे पर नीतीश सरकार को घेर रहे हैं।
नीतीश ने शराबबंदी को भी अपनी एक बड़ी सफलता के रूप में बिहार में पेश किया है।
महिलाओं के बीच इस मुद्दे का असर है। दुरुपयोग की कुछ शिकायतों के बाद शराबबंदी के कानून में सुधार भी किया गया है। जब चुनाव प्रचार जोर पकड़ेगा तो बिहार में विकास के साथ राष्ट्रवाद का भी मुद्दा जोर-शोर
से उछलेगा।
भाजपा मोदी को एक मजबूत, निडर और ईमानदार शासक के तौर पर पेश करेगी। इसके साथ ही बिहार में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का दावा भी मजबूती से किया जाएगा। मुद्दों को लेकर जहां तक महागठबंधन की बात है तो उसका जोर मोदी और नीतीश सरकार की खामियां गिनाने पर होगा।
राफेल के अलावा रोजगार, आरक्षण, कानून एवं व्यवस्था, बिहार को विशेष दर्जा, किसान आदि ऐसे मुद्दे हैं जिनको लेकर कांग्रेस और राजद पुरजोर हमला बोलेंगे। हालांकि यह बात अभी समय के गर्भ में है कि वोटरों पर इनका असर कितना होगा।
चूंकि वोटरों पर इन मुद्दों का असर अनिश्चित है, लिहाजा महागठबंधन जातीय गोलबंदी की दृष्टि से भी अपनी चुनावी व्यूहरचना कर रहा है। यह बात भी अपनी जगह सही है कि दोनों खेमों की ओर से सीटों को जीतने का
फार्मूला जातीय गुणा-गणित और ध्रुवीकरण के हिसाब से भी तय किया जा रहा है।
हालांकि इस चुनाव में जातीय समीकरण की सफलता को लेकर अभी दोनों ओर संशय भी है। चुनावी चौसर पर तैयारियों के लिहाज से देखें तो केंद्रीय स्तर पर अमित शाह की रणनीति के अलावा बिहार में नीतीश कुमार ने राजग की गोटें बेहद करीने से सजाई हैं। ऐसे में विपक्ष के सूरमाओं के लिए मोदी-नीतीश की जोड़ी की घेरेबंदी उतनी आसान भी नहीं दिखाई देती।