LokSabha Election 2019: झारखंड में माओवादी जितने सबल हुए, उतना कमजोर हुआ लाल झंडा
झारखंड में वामपंथियों की कमजोर हालत को देखते हुए यूपीए गठबंधन ने वाम दलों को एक भी सीट नहीं देने का फैसला लिया है।
गिरिडीह, दिलीप सिन्हा। झारखंड बना था तो नक्सलवाद कम था, वामपंथी दलों का प्रभुत्व अपेक्षाकृत अधिक। महज चार जिलों में माओवाद का असर था। झारखंड की उम्र पांच साल हुई तो माओवादी सबल होते गए, वामपंथी दल निर्बल। 2004 में हजारीबाग से यूपीए गठबंधन के उम्मीदवार के नाते भुवनेश्वर मेहता ने जीत हासिल की थी। बगोदर से भाकपा माले के विधायक महेंद्र सिंह की अलग ख्याति थी। इसके बाद सारंडा से पारसनाथ तक माओवादी विस्फोट करते रहे, लाल खून बहाने का अनवरत सिलसिला शुरू किया। फिर माओवादियों का प्रभाव क्षेत्र संताल परगना तक पहुंच गया। माओवादियों का गांव गांव में दबदबा हो गया तो लोकतंत्र को मानने वाले वामपंथी दल भाकपा, माकपा, भाकपा माले, माक्सवादी समन्वय समिति का इस्तकबाल कमजोर होता गया।
संसदीय व्यवस्था को मानने वाले कॉमरेडों के लाल झंडे का रंग धीरे धीरे फीका पड़ता गया। हालत यह हो गई कि साढ़े तीन दशक में पहली बार धनबाद लोकसभा सीट से वामपंथी दल माक्र्सवादी समन्वय समिति ने चुनाव नहीं लडऩे का फैसला लिया है। माकपा, भाकपा, भाकपा माले एवं माक्र्सवादी समन्वय समिति में झारखंड स्तर के शीर्ष नेताओं का आकलन है कि झारखंड आंदोलन से दूर रहने से भी वामपंथ को नुकसान हुआ है। सिर्फ माक्र्सवादी समन्वय समिति ने झारखंड आंदोलन और आदिवासियों की लड़ाई का खुल कर साथ दिया था, त्याग भी किया था। यही वजह है कि कोयलांचल की संसदीय राजनीति में उसका दबदबा बना रहा है। अगर वह जीतने नहीं तो किसी को जिताने या हराने में जरुर सक्षम रही है। माकपा और भाकपा जैसे बड़े वाम दलों ने झारखंड आंदोलन में बड़ी भागीदारी नहीं निभाई। यही कारण है कि सीमित इलाके में भाकपा माले और माक्र्सवादी समन्वय समिति की सियासी उपस्थिति है। भाकपा और माकपा अपने वजूद के लिए छटपटा रहे हैं। भाकपा माले के केंद्रीय कमेटी सदस्य मनोज भकत स्वीकार करते हैं, झारखंड आंदोलन में भाकपा के खुल कर उतरने से इस सूबे में वामपंथ को नुकसान उठाना पड़ा है।
सूबे की आधी सीटों पर भी प्रत्याशी देने में हाफ रहे कॉमरेडः झारखंड में वामपंथियों की कमजोर हालत को देखते हुए यूपीए गठबंधन ने वाम दलों को एक भी सीट नहीं देने का फैसला लिया है। झारखंड की राजनीति में प्रासंगिक बने रहने के लिए सारे वाम दलों ने मिल कर वाम मोर्चा बनाया है। घोषणा की गई थी कि वाम मोर्चा झारखंड की सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगा। अभी हालत यह है कि सूबे की आधी सीटों पर भी उम्मीदवार उतारने में कॉमरेड हाफ रहे हैं। सिर्फ कोडरमा लोकसभा क्षेत्र में भाकपा माले दमदार दिख रहा है। हजारीबाग में भुवनेश्वर मेहता के लिए अपनी साख को बचाना बड़ी चुनौती है। भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भïट्टाचार्या कहते हैं, उनकी पार्टी कोडरमा एवं पलामू से लड़ेगी। कोडरमा में विधायक राजकुमार यादव एवं पलामू में सुषमा मेहता उम्मीदवार हैं। हजारीबाग, चतरा एवं दुमका में भाकपा चुनाव मैदान में उतरेगी। हजारीबाग से पूर्व सांसद भुनेश्वर मेहता एवं दुमका से सेनापति मुर्मू प्रत्याशी घोषित हो चुके हैं। मासस किसी भी सीट पर नहीं लड़ रही है। माकपा रांची एवं राजमहल सीट से चुनाव लडऩा चाहती है।
हजारीबाग, जमशेदपुर एवं धनबाद में चुने गए हैं कॉमरेडः झारखंड की हजारीबाग, जमशेदपुर और धनबाद से कॉमरेड सांसद चुने गए हैं। ए के राय धनबाद से तीन बार चुने गए हैं। हजारीबाग में भुवनेश्वर मेहता दो बार और रमेंद्र कुमार एक बार सांसद चुने गए हैं। 62 में जमशेदपुर से भाकपा के उदय कर मिश्र लोकसभा चुनाव जीते थे। कॉमरेड केदार दास भी वहां से एमपी बन चुके हैं। एक समय ऐसा था जब गिरिडीह, कोडरमा, दुमका, राजमहल एवं रांची सीट पर भी वामपंथी मजबूत उपस्थिति दर्ज कराते थे।