Lok Sabha Election 2019: जब संसद में नहीं गूंजी जम्मू कश्मीर की आवाज
राज्य में केंद्र सरकार ने आम्र्ड फोर्सिस स्पेशल पावर एक्ट लगाया था और राज्य में शांति बहाली के लिए काम किया जा रहा था।
जम्मू, रोहित जंडियाल। किसी भी राज्य के मुद्दों को संसद में उठाने की जिम्मेदारी वहां के सांसदों की होती है, लेकिन नब्बे के दशक से पहले छह साल 10वीं लोकसभा में ससंद भवन में जम्मू कश्मीर के मुद्दे उठाने वाला कोई भी नहीं था। यहां का कोई भी सांसद संसद भवन में नहीं था, जोकि राज्य के लोगों की आवाज संसद में उठा सकता। इसका कारण वर्ष 1991 में जम्मू कश्मीर में लोकसभा चुनाव का न होना था।
यह वह दौर था जब जम्मू कश्मीर में आतंकवाद चरम पर था और यहां पर चुनाव करवाने के लिए हालात अनुकूल नहीं थे। राज्य में केंद्र सरकार ने आम्र्ड फोर्सिस स्पेशल पावर एक्ट लगाया था और राज्य में शांति बहाली के लिए काम किया जा रहा था। राज्य में वर्ष 1989 में हालात खराब होना शुरू हुए। आतंकवादियों ने कश्मीर में लोगों को निशाना बनाना शुरू किया। एक-एक दो साल ऐसे थे जब लाखों की संख्या में कश्मीरी पंडित परिवारों ने घाटी के विभिन्न कोनों से पलायन कर जम्मू संभाग व अन्य स्थानों पर शरण लेना शुरू कर दी थी।
राज्य में कानून व्यवस्था पूरी तरह से चरमराई हुई थी। इसके बाद केंद्र सरकार ने जुलाई 1990 में जम्मू कश्मीर में आमर्ड फोर्सिस स्पेशल पावर एक्ट लगाया था। इसे देखते हुए जब वर्ष 1991 में देश में आम चुनाव हुए तो यहां की खराब कानून व्यवस्था को देखते हुए चुनाव आयोग ने चुनाव नहीं करवाने का फैसला किया था।
वर्ष 1996 तक जम्मू कश्मीर में कोई भी चुनाव नहीं हुए। विधानसभा के भी नहीं। साल 1990 से लेकर 1996 तक राज्य में राज्यपाल और राष्ट्रपति शासन रहा। वर्ष 1965 में देश के मुख्य चुनाव आयोग के दायरे में आने के बाद यह पहली बार था कि जम्मू कश्मीर में संसदीय चुनाव नहीं हुए। साल 1996 में जब देश में आम चुनाव हुए तो जम्मू कश्मीर में कांग्रेस ने चार, भाजपा ने एक और पहली बार जनता दल ने भी एक सीट जीती थी।
25 साल बाद फिर इतिहास दोहराया
जम्मू कश्मीर में करीब पच्चीस साल बाद एक फिर ऐसी ही परिस्थिति बनी। साल 2016 में जब तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती सईद का निधन हो गया तो इसके बाद उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती ने अनंतनाग सीट से त्यागपत्र दे दिया था। वह वर्ष 2014 के आम चुनाव में सांसद बनी थी। उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद भी चुनाव आयोग इस सीट के लिए चुनाव नहीं करवा पाया। हालांकि अनंतनाग सीट के लिए श्रीनगर संसदीय सीट के साथ ही उपचुनाव के लिए अधिसूचना जारी हुई थी, मगर मतदान से कुछ दिन पहले ही हालात खराब होने की बात कह कर इस सीट के लिए चुनाव स्थगित कर दिए गए थे। अब इस सीट पर तीन साल बाद चुनाव हो रहे हैं।