LokSabha Election 2019: जब नेहरू की चिट्ठी दिखा धनबाद से चुनाव जीते एआइसीसी सचिव पीआर चक्रवर्ती
चक्रवर्ती को धनबाद की जनता क्या कांग्रेस कार्यकर्ता भी नहीं पहचानते थे। वे दिल्ली स्थित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के संसदीय विभाग में सचिव थे। नेहरू की चिट्ठी लेकर धनबाद आ गए।
धनबाद, रोहित कर्णः धनबाद में आम चुनावों को लेकर एक से एक रोचक प्रसंग जुड़े हुए हैं। ऐसा ही प्रसंग जुड़ा है यहां से सांसद रहे पीआर चक्रवर्ती के साथ। बात 1962 के आम चुनाव की है। तब धनबाद के निवर्तमान सांसद थे डीसी मल्लिक। वे 1959 में प्रभातचंद्र बोस के निधन के बाद हुए उपचुनाव में धनबाद के सांसद चुने गए थे। वे पूरी तरह आश्वस्त थे कि टिकट उन्हें ही मिलेगा। धनबाद के सबसे बड़े ट्रांसपोर्टर परिवार से जुड़े मल्लिक की कांग्रेस में धाक थी। लेकिन तब हर कोई हक्का-बक्का रह गया जब मल्लिक का टिकट कट गया। धनबाद से चुनाव लडऩे की हरी झंडी मिली पीआर चक्रवर्ती को।
चक्रवर्ती को कांग्रेसी भी नहीं पहचानते थेः चक्रवर्ती धनबाद की जनता क्या, कांग्रेस कार्यकर्ता भी नहीं पहचानते थे। प्रथम सांसद पीसी बोस के पुत्र व इंटक नेता शंकर बोस के मुताबिक के दिल्ली स्थित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के संसदीय विभाग में सचिव थे। चक्रवर्ती कांग्रेस कार्यालय में ही रहते थे। जब वे चुनाव का नामांकन पत्र भरने पहुंचे तो उनकी जेब में तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की एक चिट्ठी भी थी। शंकर बोस के मुताबिक चक्रवर्ती ने नेहरू का जो पत्र दिखाया उसमें था कि चक्रवर्ती ने कांग्रेस पार्टी की काफी सेवा की है लिहाजा उन्हें उनका (नेहरू का) प्रतिनिधि मान कर चुनाव में अपना वोट दें और विजयी बनाएं। पत्र का कार्यकर्ताओं और धनबाद के लोगों पर जबरदस्त असर पड़ा। चुनाव में चक्रवर्ती को 75,170 वोट मिले। उन्होंने एसडब्ल्यूए के सच्चिदानंद त्रिगुनैत को 24,170 वोट से हराया।
जिसका टिकट काटा उसके घर रहकर ही जीते चुनावः इस चुनाव की एक और खास बात यह रही कि पीआर चक्रवर्ती ने जिस डीसी मल्लिक का टिकट काटा उसी के घर रहकर उन्होंने चुनाव प्रचार किया। इंटक नेता व अधिवक्ता शंकर बोस बताते हैं कि डीसी मल्लिक का परिवार जोड़ाफाटक रोड के हावड़ा मोटर के पास था। वे दो भाई थे। मल्लिक ब्रदर्स तब धनबाद के रईसों में गिने जाते थे। डीसी मल्लिक ने शादी नहीं की थी। चक्रवर्ती धनबाद आए तो उन्हीं के घर ठहरे। वे लगभग एक महीने यहां रहे और चुनाव प्रचार में हिस्सा लिया। यह अपने आप में अनूठा था। आज के दौर के द्वेषपूर्ण राजनीतिक वातावरण में इन दोनों नेताओं का चरित्र नई राह दिखाने वाला है। मल्लिक ने न सिर्फ चक्रवर्ती को पनाह दी बल्कि उन्हें जिताने में कोई कोर कसर भी नहीं छोड़ी। इसका उन्हें प्रतिदान भी मिला जब पंडित नेहरू ने उन्हें राज्यसभा में भेजा। बाद में भी चक्रवर्ती जब कभी धनबाद आए वे मल्लिक के आवास में ही ठहरे। हालांकि उन्हें भी दूसरी बार टिकट नहीं मिला। कार्यकाल पूरा होने के बाद चक्रवर्ती भी धनबाद में नहीं दिखे।
ढाका विश्वविद्यालय के प्राध्यापक थे चक्रवर्तीः पीआर चक्रवर्ती के बारे में आज भी चुनिंदा कांग्रेसियों के अलावा किसी को अधिक जानकारी नहीं है। शंकर बोस के मुताबिक पीआर चक्रवर्ती ढाका विश्वविद्यालय में प्राध्यापक थे। देश विभाजन के बाद उनका परिवार पुरुलिया आकर बस गया। चक्रवर्ती दिल्ली चले गए और कांग्रेस से जुड़ाव होने के कारण पार्टी मुख्यालय में पनाह ली। धनबाद से लोकसभा चुनाव जीते और कार्यकाल समाप्त होने के बाद वे देवघर स्थित ठाकुर अनुकूलचंद्र के आश्रम चले गए जहां उनके शिक्षण संस्थानों से जुड़ गए।
जब कॉलेज के छात्रों ने लिया ऑटोग्राफः माक्र्सवादी समन्वय समिति के अध्यक्ष व सिंदरी विधानसभा सीट से चार बार विधायक रहे आनंद महतो के साथ भी पीआर चक्रवर्ती का एक रोचक प्रसंग जुड़ा है। उस दौर को याद करते हुए महतो कहते हैं कि तब कांग्रेस की तूती बोलती थी। पीआर चक्रवर्ती जैसे व्यक्ति को जिसे कोई नहीं जानता था टिकट दे दिया गया और वह जीत भी गए। कांग्रेस केंद्रीय कार्यालय से जुड़े होने को इस तरह प्रचारित किया गया कि जैसे वे कोई राष्ट्रीय नेता हों। कुछ लोग तो उन्हें कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष भी बताते थे। धनबाद में उनका स्टारडम कायम हो गया। जीत के बाद एक बार वे आरएसपी कॉलेज भी पहुंचे। तब उनके स्टार स्टेटस को देखते हुए उनसे ऑटोग्राफ लेने को छात्रों की भीड़ लग गई। उन्होंने भी चक्रवर्ती से ऑटोग्राफ लिया। चक्रवर्ती ने लिखा- गुड लक टू यू- पीआर चक्रवर्ती।