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Lok Sabha Election 2019: ऊधमपुर-डोडा के चहेते रहे हैं सदर-ए-रियासत कर्ण सिंह

आपातकाल के बाद जब संसदीय चुनाव हुए थे तो उस समय कांग्रेस की देशभर में हार हुई थी। जम्मू-पुंछ संसदीय सीट भी कांग्रेस हार गई थी लेकिन डॉ. कर्ण सिंह तब भी इस सीट से जीते थे।

By Rahul SharmaEdited By: Published: Thu, 14 Mar 2019 03:25 PM (IST)Updated: Thu, 14 Mar 2019 04:26 PM (IST)
Lok Sabha Election 2019: ऊधमपुर-डोडा के चहेते रहे हैं सदर-ए-रियासत कर्ण सिंह
Lok Sabha Election 2019: ऊधमपुर-डोडा के चहेते रहे हैं सदर-ए-रियासत कर्ण सिंह

जम्मू, रोहित जंडियाल। जम्मू-कश्मीर में हर सीट के अपने राजनीतिक मायने हैं। छह जिलों में फैली ऊधमपुर-डोडा संसदीय सीट पर राज्य के प्रमुख नेता चुनाव लडऩे को प्राथमिकता देते हैं। यही कारण है कि जब राज्य में पहली बार 1967 में संसदीय चुनाव करवाने की घोषणा हुई तो पूर्व सदर-ए-रियासत डॉ. कर्ण सिंह ने इसी सीट से चुनाव लड़ा। भारी मतों से जीत भी हासिल की। डॉ. कर्ण सिंह को कांग्रेस ने प्रत्याशी बनाया था। यही नहीं जीत हासिल करने पर उन्हें पार्टी ने केंद्र में मंत्री भी बनाया था। वह तब मंत्रिमंडल में सबसे युवा मंत्री थे।

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आपातकाल में जब कांग्रेस देश भर में हारी थी, कर्ण सिंह जीते थे

डॉ. कर्ण सिंह 1971, 1977 और 1980 में हुए चुनावों में भी जीते। 1977 में देश में आपातकाल के बाद जब संसदीय चुनाव हुए थे तो उस समय कांग्रेस की देशभर में हार हुई थी। जम्मू-पुंछ संसदीय सीट भी कांग्रेस हार गई थी, लेकिन डॉ. कर्ण सिंह तब भी इस सीट से जीते थे। इस सीट पर उनकी गहरी पैठ थी। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में लोग उन्हें महाराजा कहकर बुलाते थे। आज भी उनकी ऐसी ही छवि है। इस बार फिर से उनके बेटे विक्रमादित्य सिंह के चुनाव लड़ने की प्रबल संभावना है।

कई दिग्गत नेता भी इस सीट पर लड़ चुके हैं चुनाव

डॉ. कर्ण सिंह के बाद इस सीट पर एक और कद्दावर कांग्रेस नेता गिरधारी लाल डोगरा ने साल 1984 में चुनाव लड़ा था। मौजूदा केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उन्हीं की बेटी से शादी की है। पूर्व केद्रीय मंत्री प्रो. चमन लाल शर्मा ने तीन बार 1996, 1998 और 1999 में इस सीट पर विजय दर्ज की। वह इस सीट पर जीतने वाले पहले गैर कांग्रेसी सांसद थे। पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद ने भी साल 2014 से इस सीट पर अपनी किस्मत आजमाई थी, परंतु वह मोदी लहर में जीत नहीं पाए और पीएमओ में राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह से हार गए थे। डॉ. जितेंद्र सिंह ने जब पांच साल पहले इस सीट से चुनाव जीता था तो इस संसदीय क्षेत्र के बहुत कम मतदाता उन्हें जानते थे। उनकी छवि एक मधुमेह रोग विशेषज्ञ और 2008 में हुए अमरनाथ भूमि आंदोलन से उबरे एक प्रखर वक्ता की थी।

अब बदले हैं हालात

जम्मू संभाग की उधमपुर-डोडा संसदीय क्षेत्र 20,230 वर्ग किलोटर में फैला है। संभाग के छह जिले, किश्तवाड़, रामबन, डोडा, कठुआ, रियासी, ऊधमपुर इसमें आते हैं। यही एक ऐसी सीट है जिसमें छह जिले आते हैं। इस सीट में पिछले कुछ वर्ष में बहुत कुछ बदला है। अपने समय में ऊधमपुर से भाजपा के दिग्गज नेता रहे लाल शिवचरण गुप्ता के बेटे पवन गुप्ता ने पहले पार्टी छोड़ कर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ा और वह विधायक बन गए। अब संसदीय चुनावों से पहले वह फिर से भाजपा में शामिल हो गए हैं। वहीं कांग्रेस के दिग्गज नेता गुलाम नबी आजाद की भी इस सीट पर पकड़ मजबूत है। डोडा, रामबन, किश्तवाड़ जैसे जिले उनके गढ़ थे। हालांकि भाजपा ने इनमें सेंध भी लगाई है। वहीं पहले कांग्रेस से भाजपा में शामिल हुए कठुआ जिले के नेता लाल ङ्क्षसह इस बार अपनी डोगरा स्वभामिमान ट्रस्ट के बैनर तले चुनाव लडऩे जा रहे हैं। इस सीट पर पैंथर्स पार्टी के चेयरमैन हर्ष देव ङ्क्षसह भी इस बार चुनावी मैदान में हैं। ऊधमपुर जिले में उनकी भी अच्छी पैठ है।


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