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लोकसभा चुनाव 2019: उर्मिला मातोंडकर कांग्रेस के लिए बलि का बकरा या जीत का मोहरा

गोविंदा के लिए भी राम नाईक से टक्कर लेना आसान नहीं रहा। अपनी सारी लोकप्रियता के बावजूद गोविंदा राम भाऊ को सिर्फ 48271 मतों से पराजित कर पाए थे।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sat, 30 Mar 2019 09:54 PM (IST)Updated: Sat, 30 Mar 2019 09:54 PM (IST)
लोकसभा चुनाव 2019:  उर्मिला मातोंडकर कांग्रेस के लिए बलि का बकरा या जीत का मोहरा
लोकसभा चुनाव 2019: उर्मिला मातोंडकर कांग्रेस के लिए बलि का बकरा या जीत का मोहरा

मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। चार दिन पहले तक मुंबई कांग्रेस के अध्यक्ष रहे संजय निरुपम जिस लोकसभा सीट की उम्मीदवारी से कन्नी काटते रहे, उस पर कांग्रेस सिने अभिनेत्री उर्मिला मातोंडकर को उतारकर गोविंदा जैसी जीत दोहराने का सपना देख रही है। जबकि आम जनमानस उर्मिला को बलि का बकरा मान रहा है।

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कभी पालघर तक फैली रही उत्तर मुंबई लोकसभा सीट के सांसदों का स्वर्णिम इतिहास रहा है। दिग्गज वामपंथी नेता श्रीपाद अमृत डांगे 1952 में पहला चुनाव यहां से जीते थे। फिर 1957 और 1962 में यहां के लोगों ने नेहरू मंत्रिमंडल में सबसे ताकतवर माने जाने वाले वीके कृष्णा मेनन को भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के निशान पर चुनकर भेजा।

आपातकाल के तुरंत बाद 1977 के चुनाव में इस सीट का नेतृत्व सुप्रसिद्ध समाजवादी नेता मृणाल गोरे ने किया। लेकिन यह सीट याद की जाती है, तो सिर्फ राम नाईक के नाम से क्योंकि सबसे लंबे समय तक यहां टिके वही। इस समय उत्तर प्रदेश के राज्यपाल की जिम्मेदारी निभा रहे राम नाईक ने 1969 में जनसंघ से अपनी राजनीति की शुरुआत की थी।

इस क्षेत्र के लोग प्यार से उन्हें 'राम भाऊ' कहकर बुलाते हैं। 1978 से 1989 तक महाराष्ट्र विधानसभा के सदस्य रहे राम भाऊ को राम लहर के शुरुआती दौर, यानी 1989 में ही भाजपा ने इस सीट से उम्मीदवार बनाया। तब से लगातार पांच लोकसभा चुनाव जीतकर 15 साल इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हुए उन्होंने इस क्षेत्र में भाजपा की जड़ें इतनी गहरी जमा दीं कि उन्हें हराने के लिए कांग्रेस को उस दौर के लोकप्रिय अभिनेता गोविंदा को उनके सामने उतारना पड़ा।

गोविंदा के लिए भी राम नाईक से टक्कर लेना आसान नहीं रहा। अपनी सारी लोकप्रियता के बावजूद गोविंदा राम भाऊ को सिर्फ 48,271 मतों से पराजित कर पाए थे। इसके बाद 2009 के लोकसभा चुनाव में शिवसेना छोड़कर कांग्रेस में आए संजय निरुपम ने राम नाईक को चुनौती थी।

उन दिनों शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के उत्तर भारतीयों पर कहर के कारण हिंदी भाषी मतदाताओं का झुकाव कांग्रेस की ओर था। हिंदी भाषी कृपाशंकर सिंह के मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए चुनाव में कांग्रेस ने मुंबई की सभी छह सीटों से शिवसेना-भाजपा का सफाया कर दिया था।

उस लहर में भी संजय निरुपम राम नाईक को सिर्फ 5,779 मतों से पराजित कर पाए थे। लेकिन किस्मत 2014 में निरुपम के साथ नहीं थी। प्रबल मोदी लहर में निरुपम को भाजपा प्रत्याशी गोपाल शेट्टी से करारी मात खानी पड़ी। निरुपम करीब साढ़े चार लाख मतों से हारे।

गोपाल शेट्टी भी राम नाईक की तरह ही उत्तर मुंबई के जमीनी नेता रहे हैं। लोग उनके काम से प्रभावित हैं। यही कारण है कि इस बार संजय निरुपम की मुंबई कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए भी उत्तर मुंबई सीट से उतरने की हिम्मत नहीं पड़ रही थी। अब सियासत के क ख ग से अपरिचित उर्मिला मातोंडकर कांग्रेस की झोली में यह सीट कैसे डाल पाएंगी, पता नहीं।

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