UP Election Result 2019: ... तो इस वजह से कस नहीं पाई गठबंधन की गांठ और बाजी मार गई भाजपा
UP Election Result 2019 उत्तर प्रदेश में ढाई दशक बाद दो धुर विरोधी दल सपा और बसपा के बीच चुनावी गठबंधन हुआ जिसमें राष्ट्रीय लोकदल को भी शामिल किया गया। हालांकि भाजपा बाजी मार गई।
नई दिल्ली (सुरेंद्र प्रसाद सिंह)। UP Election Result 2019 महज चुनाव में गठजोड़ कर राजनीतिक दबदबा कायम करने की मंशा रखने वाली पार्टियों को लोकसभा चुनाव में मतदाताओं ने करारा झटका दिया है। कई राज्यों में दलों के नेताओं के बीच का गठबंधन न उनके कार्यकर्ताओं को भाया और न ही वहां के मतदाताओं का उन्हें साथ मिला। लिहाजा लोकसभा चुनाव में उन्हें अपनी खामियों का खामियाजा उठाना पड़ा है। ज्यादातर राज्यों में गठबंधन नकार दिये गये अथवा उन्हें अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई है। राज्यों में अलग-अलग बना गठबंधन भाजपा का विजय रथ को रोकने में नाकाम रहे।
मकसद में नाकाम रहा गठबंधन
उत्तर प्रदेश में ढाई दशक बाद दो धुर विरोधी दल सपा और बसपा के बीच चुनावी गठबंधन हुआ, जिसमें राष्ट्रीय लोकदल को भी शामिल किया गया। यह गठबंधन पूरी तरह जातियों को गोलबंद करने के लिहाज से किया गया था। दलित, यादव और जाट मतदाताओं के साथ मुस्लिम मतदाताओं को एकजुट करने की मंशा से राज्य में यह गठबंधन बनाया गया। यह विशुद्ध रूप से पिछले चुनावों में तीनों दलों को मिले वोट प्रतिशत के जोड़ घटाने के हिसाब से बनाया गया।
काम कर गई अमित शाह की रणनीति
अंकगणित के आधार पर चुनाव में बाजी मारने की उनकी इस रणनीति पर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने स्पष्ट किया था कि राज्य में चुनाव में जातियों की अंकगणित से नहीं बल्कि उनकी केमिस्ट्री से होगा। यही वजह है कि कैराना जैसी मुस्लिम बहुल सीट पर भी गठबंधन को करारी मात मिली है। जाट मतों को पक्ष में करने के लिए जो गठजोड़ किया गया, उसमें जाट नेता चौधरी अजित सिंह मुजफ्फरनगर और उनके पुत्र जयंत चौधरी ही बागपत से चुनाव हार गये। सपा की अति सुरक्षित यादव बहुल बदायूं सीट पर तीन बार से जीत रहे धर्मेद्र यादव को करारी हार का सामना करना पड़ा है। इससे साफ है कि चुनाव में जातिगत गोलबंदी करने में गठबंधन विफल रहा है।
चार क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस संग बनाया महागठबंधन
दूसरे बड़े राज्य बिहार की 40 सीटों के लिए भी वहां के चार क्षेत्रीय दलों ने कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया था। लेकिन चुनाव में इन दलों के बीच समन्वय का अभाव आड़े आया और मात्र सीटों पर संतोष करना पड़ा। टिकट वितरण से लेकर चुनाव प्रचार तक में कोई तालमेल नहीं रहा। महाराष्ट्र में कांग्रेस व एनसीपी का परंपरागत गठबंधन को शरद पवार ने संभालने की कोशिश जरूर की, लेकिन कांग्रेस की अंदरुनी लड़ाई ने चुनाव अभियान को बुरी तरह प्रभावित किया।
समन्वय का रहा अभाव
भाजपा को रोकने के लिए दक्षिण भारत के प्रमुख राज्य कर्नाटक में कांग्रेस व जनता दल (एस) का गठबंधन बना था। बीते विधानसभा के गठन में दोनों दलों के बीच जबर्दस्त कड़वाहट बढ़ गई थी। उसका नतीजा यह हुआ कि लोकसभा चुनाव में दोनों दलों की रणनीति एक दूसरे के प्रत्याशी को जिताने की जगह हराने की हो गई। यानी समन्वय का अभाव गठबंधन को ले डूबा और भाजपा लोकसभा चुनाव में उच्चतम स्तर पर पहुंच गई।
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